Category Archives: Action ( Karma )

जैसी करनी वैसा फल आज नहीं तो निश्चित कल  

June 3, 2017

जैसी करनी वैसा फल आज नहीं तो निश्चित कल  

आज एक साधिका परम पूज्यश्री महाराजश्री के पाय गई । बहुत पीड़ित थी । रो रही होंगी । विनती की महाराज मेरा पति मुझे बहुत बेरहमी से मारता है । कृपया इसका कारण बता दीजिए मैं शान्त हो जाऊँगी । पूज्यश्री महाराजश्री ने कहा कि आप पिछले जन्म में इसकी मां थी । और इसके विवाह में बहुत बाधा बनी थी ! वह बस अपना बदला चुका रहा है ! 
परम पूज्यश्री महाराज़श्री कहते हैं कि हम कर्म करते हुए सजग नहीं होते , ध्यान नहीं देते पर फल भुगतते समय बहुत पीडा होती है । उनके अनुसार कई कर्मों का फल इसी जन्म में मिलता है कईयों का भुगतान जन्मों जन्मों करना पड़ता है । 

पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि इस जीवन में हमें जो भी सुख या दुख मिलता है वह कर्मों के अनुसार ही मिलता है । 
सदना कसाई संत बन गए । बकरे ने कहा सदना कितने जन्में से कभी मैं बकरा कभी कसाई कभी तू बकरा तू कसाई बनते आ रहे हैं । यह तू मेरा काम काट कर क्या नया शुरू करने दा रहा है ? सदना ने बकरे को न मारा । साधना आरम्भ की ! संत बन गए । साधना की शक्ति देखने संसार में निकले हैं । किसी नगर में गए और रात रहने के लिए एक दम्पति के घर आश्रय लिया । पत्नि सदना पर मोहित हो गई । रात में आई उसके पास। पर सदना ने इन्कार कर दिया । पत्नि क्रुध हो गई बोली अब भुगत ! उसने पति री हत्या कर दी और इल्ज़ाम सदना पर डाल दिया । लोगों ने सदना के हाथ काट दिए । सदना न रोए । शान्त रहे । परमेश्वर की लीला देख रहे थे । कटे हुए हाथों सेजगन्नाथ पुरी के लिए निकले । प्रभु आए । सदना बोले – प्रभु यह सब क्या ? भगवन बोले – सदना पिछले जन्म में तूने एक गाय को बिना किसी कारण रोक लिया था । पीछे दौड़ता हुआ आदमी आया बोला यह मेरी गाय है । तूने गाय दे दी । वह कसाई था । यह स्त्री वह गाय है । उसका पति कसाई । गाय ने अपना बदला लिया । जिन हाथों से तूने उसे रोका था वह हाथ तेरे गए। सदना बोले पर प्रभु आप मेरे अपराध क्षमा भी कर सकते थे ! भगवन बोले यदि अब क्षमा कर देता तो तुझे किसी और जन्म में भुगतान करना पडता !
परम पूज्य महराजश्री बड़े बलाड्य शब्दों में कहते हैं कि जैसी करनी वैसा फल , आज नहीं तो निश्चित कल ! यदि हम साधक होकर नहीं सम्भलते , तो उसके भुगतान के लिए तैयारी करनी है ! 
पर जो पीड़ित हो रहा है उसके कर्म भक्ति द्वारा ही समाप्त हो सकते हैं । तभी पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि परमेश्वर से बल माँगिए । दुख दूर हो जाए यह नहीं शक्ति मिले कि हम सहन कर सकें , क्षमा कर सकें । जन्म मरण का चक्कर कर्मों के भुगतान से , निष्काम कर्म से , भक्ति से ,खरबों राम नाम से , सम्पूर्ण समर्पण से समाप्त हो जाते हैं । 
श्री श्री चरणों में

जो कर्ता होगा वही भर्ता भी होगा 

May 24, 2017

जो कर्ता होगा वही भर्ता भी होगा 

यदि हर भाव , हर अभिव्यक्ति , हर सोच , हर विचार , व्यक्ति परमेश्वर से आता हुआ कहे या माने और समझे हर हर चीज का कर्ता धर्ता वही है, इस देह को इसकी इंद्रियों को वही चलाता है … सो कैसी सोच होती होगी ऐसे व्यक्ति की ? 
राममय !! 
जीवन में कुछ आया तो राम के कारण । जीवन में कुछ किया तो राम ने । जीवन में कुछ घटा, वह राम इच्छा से । जीवन में किसी ने सराहा तो राम को ! जीवन में किसी ने विपरीत कहा तो वह राम में ही स्थित ! क्यों ? जब वह कुछ करता है नहीं तो यदि कोई विपरीत भी कहता है तो वह उसे नहीं !! वह केवल क्षमा ही मांग सकता है ! पर वैसे वह राम में ही रहता है । और सत्य भी यही है ! राम ही है केवल सत्य बाकि सब उनकी लीला । पर यदि उनकी लीला में हम केवल राम में ही स्थित रहते हैं , राम को सर्व करन करावनहार जानते हैं तो वह लीला आनन्दमयी ! पर यदि उस लीला में हम स्वयं को दोषी या अपराधी या सही मानते हैं तो भुगतान तो हमें ही करना पड़ता है । पर यदि सब करने वाले वे हैं तो वे ही जानें व वे ही देखें !! हमें तो राम से लेना है ! 
कर्तापन मैं से ही सम्बंधित है । जहाँ मैं वहाँ पीडा ! पीड़ा ही पीड़ा !! जहाँ देहअभिमान वहाँ पीडा व दुख ! केवल पीडा व दुख ! 
हम तो भ्रम में ही जी रहे हैं !! सब भूलते जाते हैं ! बारिश हुई तो भूल गए ! तूफ़ान आया तो भूल गए ! कीचड़ पड़ा तो भूल गए !! 
प्रभु आपका नाम न बिसरे के साथ ही आप ही कर्ता हैं यह भी न बिसरे !! कृपा करें भगवन

सकाम व निष्काम कर्म 

Jan 28, 2017


प्रशन : फल को ध्यान में रख कर किया गया कर्म क्या सही है?आम जीवन में ज्यादातर कर्म फल को ध्यान में रख कर होता है। चाहे हम कितनी भी कोशिश करें फल की चाह के बिना के कर्म की कहीं गहरे में फल की इच्छा दबी होती है। 

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गुरूजन कहते हैं फल पर नज़र का मतलब “चाह” है जीवन में । महाराजश्री कहते हैं खाना बना रहे हैं पति को पसंद आए .. चाह है कि पति पसंद करे । काम पर जाते हैं … अवार्ड या काम सराहे जाने की चाह ! सेवा कर रहे हैं कि शायद इससे कुछ मिले …. लोगों से मिल रहे हैं , बना कर रखते हैं .. कि मुसीबत के समय काम आएं !! कोई अच्छे से बात नहीं कर रहा चाहे अपनी संतान ही क्यों न हो, यह चाहना कि वह कहना माने… भी इच्छा !!

ऐसा ही होता होगा सकाम कर्म !
तो इन सब के पीछे चाह है । इच्छाएं हैं । जब कर्म केवल करने हेतु हो , केवल कर्तव्य की दृष्टि से हो, सहज से हों , बिना किसी चाह के वे निस्वार्थ कर्म ।
इसमें एक और बात भी निहित है – मैं कर रहा / रही हूँ । कर्तापन ! इसके कारण जो जो कर रहे हैं व जो जो इच्छाएं कर रहे हैं सो कर्म फल तो कर्ता का ही होता है ! सो जन्म व मृत्यु के चक्कर जारी ।
पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि निष्काम कर्म में कर्ता परमेश्वर हैं । वे करने व करवाने वाले। और सत्य भी यही है। यहाँ फिर जो कर्मों के बीज सूख जाते हैं , अंकुरित नहीं होते ! साधना का लक्ष्य ही यही है कि यह जान सकें कि करन करावन हार परमात्मा है ।
गुरूजन कहते हैं कि परमेश्वर की चाह , उनका तारक मंत्र नाम, हर तरह की इच्छाएं समाप्त कर देती है । उसकी चाह के आगे सब इच्छाएं मिट जाती हैं .. फिर हर कार्य वह ही करवा रहा होता है … चाहे बर्तन माँजना , या दफ़्तर जाना … फिर नीजी हित नहीं रहता !
गुरूजन कहते हैं समर्पण – जब समर्पण हो जाता है तो निजी इच्छा नहीं रहती । जैसे तू राखे । जो तू दे दे । सब स्वीकार । संसार से कुछ मिले न मिले , कुछ माएने नहीं रहता ! सो समर्पण में भी इच्छाएं समाप्त हो जाती हैं । पर इसका तात्पर्य यह नहीं कि कर्तव्य नहीं निभते ! कर्तव्य कर्म तो अति आवयशक हैं निभाने पर वे निभाए जाते हैं मात्र कर्तव्य के रूप में ।
सो गुरूजनों ने सकाम कर्म से ऊपर निष्काम कर्म को ही माना है और उसे ही प्रार्थमिकता दी है ।

नाम की कमाई जमा करनी व लुटाना हमारे ही हाथ में है 

Dec 26, 2016


परम पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि खूब कमाई करिएगा और ख़र्चा कम से कम। तभी कमाई जमा हो पाएगी । 

परम पूज्य गुरूदेव यहाँ नाम धन की कमाई कह रहे हैं। सत्कर्मों की कमाई । वह कमाई जो हमें परमेश्वर के और निकट कर दे । वह कमाई जो हमें उसकी गोद तक ले जाए! 

कैसे ख़र्च होती है यह अति बहुमूल्य कमाई ? महाराजश्री कहते हैं हम ही लूट जाते हैं अपनी राम नाम की कमाई को। कामनाओं व इच्छाओं की पूर्ति में यह कम हो जाती है। हमें रोग आया है हमारे प्रियजन को रोग आया है, वह ठीक हो जाए, हम खाली। हमें या हमारे प्रियजन पर प्रतिकूल परिस्थितियाँ आई हैं, हमने स्थिति सुधरने की कामना की और लुट गई कमाई ! हम बल ,शक्ति व धैर्य माँगने की बजाए कामना करते हैं तो राम नाम की कमाई लुटा देते हैं।

 हम क्रोध करते हैं, छल कपट करते हैं, निंदा चुग़ली करते हैं कमाई लुटा देते हैं । चाहे कमाई इस जन्म की हो या पूर्व जन्म की वह सब लुटी जाती है । 

किसी साधक को एक नव युवक मिला। वह १८ वर्ष का था पर नवीं कक्षा में । बात चीत में साधक को पता चला कि वह युवक तो अपनी देह से बाहर भी निकल जाता है जब ध्यान करता है ! उसको क्रोध के दौरे बहुत पड़ते। साधक को कुछ समय पश्चात पता चला कि वह युवक तो पैरोल पर था ! और जब वे उसकी गतिविधियाँ देखते तो वे नकारात्मक दिशा की ओर ही दिख रही होती। वह युवक ऐसे कार्य नहीं करता था जिससे उसका आत्मिक उत्थान हो सके! जब की ज्ञान उसको काफ़ी था ! 

सो पूर्व जन्मों की कमाई भी हम स्वयं ही बढा सकते हैं व स्वयं ही लुटाते हैं । प्रभु अतिशय कृपा करके, गुरूजनों के रूप में मार्गदर्शन नित निरन्तर करते रहते हैं । पर चयन सदा हमने ही करना होता है । चयन गुरूजन हमारे लिए नहीं कर सकते ! 

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि परमेश्वर यदि कभी कहे कि माँगो कुछ तो केवल कृपा माँगिएगा । प्रभु कहें किस चीज की कृपा। तो कहिएगा कि आपका नाम सिमरन में नित निरन्तर रहें इसकी कृपा। आपके  सत्संग में हर पल रहें इसकी कृपा। नर नहीं नारायण समझ कर सेवा करें इसकी कृपा। जीवन में सहनशीलता आए इसकी कृपा। जीवन में संतोष आए इसकी कृपा। जीवन में अहम् की निवृत्ति हो इसकी कृपा। 

कृपा कीजिए प्रभु कृपा 🙏। सारी कमाई गुरूजन की है। सारी मेहनत उनकी है ! सब उनका ! उनकी कमाई धरोहर रहे, अपनी नालायकी के कारण नष्ट न करें, सो कृपा कीजिए भगवन, कृपा कीजिए। 

श्री श्री चरणों में 

साधक व स्वार्थ 

Nov 15, 2016


किसी ने प्रश्न किया कि जब सब कुछ मिल रहा होता है तब तो धन्यवाद कम ही करते हैं पर यदि कुछ करने की बारी आई, हल्कि सी तकलीफ़ का समाना करना पड़ा तो सहन नहीं करते ल्कि सही कार्य करने वाले पर दूसरों को दोषारोपण करते हैं ~ यह प्रश्न मोदी जी की भ्रष्टाचार के प्रति निडर अभियान के अंतर्गत पूछा गया ! 
इस पर पूज्यश्री महाराजश्री की वह कथा स्मरण आती है कि कलयुग एक संत के पास आया। कहने लगा तुम राम नाम क्यों फैला रहे हो ? संत कहने लगे – मैं तो राम राज्य में रहता हीं सदा। मुझे तुम्हारा भय नहीं। तुमने जो करना है कर लो। मैं तो राम नाम का प्रचार करता रहूँगा । कलयुग बोला – यह तुम्हें महँगा पड़ेगा । सो अगले दिन एक आदमी आया और बोला बाबा ! आपने जो शराब की बोतलें मंगवाईं थी उसके पैसे नहीं मिले ! संत शान्त रहे। वे जानते थे कि यह कलयुग की चाल है ! अगले दिन जो पूजा करते थे वे थू थू करने लगे। पर संत शान्त रहे। कलयुग बोला – देखा मेरा कमाल! अभी भी मेरा साथ दे दो! अरे कल सारे तुम्हारी वाह वाह करने लगें गे ! संत बोला- वह कैसे? कलयुग बोला – देखना ! 
अगले दिन एक कोड़ी बोला – मुझे बाबा के पास ले जाओ! मुझे भगवान ने सपने में आकर कहा है कि बाबा यदि मुझे हाथ लगाएँगे तो मैं ठीक हो जाऊँगा! ऐसा ही हुआ ! कलियुग बोला – देखा मेरा कमाल!! संत बोले- तुमने मेरे राम का कमाल नहीं देखा? तुमने अपमान दिया, वाह वाह दी, मुझे कुछ न हुआ ! सो तुमने जो करना है कर लो । मैं राम के सहारे राम राज्य में रहता हूँ और राम नाम का प्रचार करता रहूँगा ! 

सो मोदी जी जो कर रहे हैं वे उनका कार्य है , पर एक साधक होने के नाते, यह अवसर, हमारे कर्मों के शुदिंकरण का समय है । सात्विक कर्म अर्जन करने का समय है ! सहन करके बल्कि सेवा में कूदने का समय है । जो रो धो रहे है अपनी कमाई जाने के लिए या कष्ट के लिए, स्मरण रखिए वे सदा ही रोते धोते हैं ! उन्हें अपने स्वार्थ के सिवाय नहीं कुछ दिखता। मेरा पैसा, मेरा कष्ट ! सो स्वार्थ में आदमी सदा बहुत कुछ करता आया है व करता रहेगा! 
पर हम तो साधक हैं । भेद भाव से ऊपर कोशिश करते हैं रहने की । हम सात्विक कमाई , सदाचारी जीवन के अनुयायी हैं । क्योंकि हमारे गुरूजन यह सिखाते हैं। कई बार कइयों के परिवार जन ऐसी कमाई नहीं करते पर हमारे विचार सात्विक होति हैं , सो गुप्त प्रार्थनाएँ करते जाइएगा ! बुरा न मानिए क्यों यह उनकी सोच नहीं है और जरूरी नहीं सात्विक कर्म भी हों । सो सहनशीलता के लिए परिवार, समाज व देश के लिए गुप्त प्रार्थनाएँ गुरूजन भी करते हैं सो हम भी करें ! 
श्री श्री चरणों में

Being aware- is Grace of God

Nov 12, 2016 


I prostrate at Your Lotus feet O Ram! I prostrate at the Lotus feet of my beloved Gurujans who introduced me to You! Forever and ever indebted ! Nobody can understand You or Them, till You all allow ! Nobody! It’s with Your benevolent Grace that You make us know Your Love, You make us understand what You wish from us! Without You we are blind, deaf and mute towards You O My most loving Ram! It’s only with a Master’s Grace that we understand our Master… not otherwise, never!! 

Param Pujya Shri Shri Swamiji Maharajshri says, amongst my duties and responsibilities, may I always be aware. In doing service and practice , may I never turn a blind eye towards it. 

To be “aware” . It seems that we can! But this is a gift bestowed only by Grace! To be aware of our actions, thoughts! It’s that Supreme One who allows it to happen! Why do saints say that we have wasted so many births and even this birth in sleep? What sleep are they talking about? It’s the illusive sleep we all are sleeping with eyes open! 

Saints say we are One! We see differentiation. Saints say there is only One God!We see our God, his God, her God ! Saints say, there is nobody except Ram! It’s Ram in you me her, him, in Nature, animals, everywhere ! But we see differently! Why is there so much of difference! That’s the sleep they are talking of! 

To be aware of who we are ! And to stay positioned in it, is sadhna! That’s the whole point of human birth.. but it does not come without Grace! 

Why do we need to be aware? Why is it so important? The reason is then how will we watch our actions? Our thoughts make us act and our actions with our thoughts form our karmas! If they are not appropriate or righteous, then we suffer, we suffer the consequences of our own thoughts! 

We are able to see that we are blessed only because of the awareness! We are able to be grateful only because of that awareness! We are able to experience humility only because of us being aware! Let’s say,  We were experiencing Divine love! But we brought our mind, our I into it, we lost those precious moments! We got involved in our thoughts rather than experiencing Divinity! That’s the reason when  sometimes we enjoy heights of bliss and then we get dry, it’s only because we were not aware of our mind, our “I” creeping in. If we are aware of this false I, we could stay in an anandmaye, Rammaye state for a much much longer period! 

But again, it’s due to Grace that we remain aware. All due to Grace! 

All at Your Lotus feet 🙏

कर्मों को सहन करने का बल 

Nov 5, 2016


एक बार एक साधिका अपने गुरूजी के पास गई कि प्रभु मेरा पति मुझे बहुत पीटता है। गुरूजी ने जाप पाठ करने को कहा और बोले- रोटी तो देता है न ! अगले वर्ष वह फिर अपने गुरू जी के पास गई और बोली – महाराज ! कुछ ठीक नहीं हुआ ! वह बहुत पीटता है। बाबा फिर बोले – रोटी तो देता है न !

तीसरे वर्ष जब वह दर्शन करने हेतु गई तो तिलमिला कर बोली – बाबा ! तीन वर्ष हो गए! अभी भी वह पीटता है ! 

बाबा बोले – बेटा ! तू पिछले जन्म में उसकी सौतेला माँ थी ।बहुत पीटती थी उसे ! यहाँ तक कि खाने को भी नहीं देती थी ! देख तुझे वह रोटी तो दे रहा है न !!! 

पूज्य महाराजश्री व संतगण यूँ ही नहीं कहते कि परमेश्वर से बल माँगिए , सहन करने के लिए । यदि अभी नहीं किया तो किसी और जन्म में मोल चुकाने के लिए आना पड़ेगा !! मोल चुकाए बिना नहीं रहा जा सकता ! उसका प्रभाव कम हो सकता है राम नाम से, पर गुज़रना तो हर एक को पडता है । अनिवार्य है ! 
पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि तुलसीदास जी की टाँग में एक बार फोड़ा हो गया ! घाव ठीक होने में ही न आया। अति पीड़ा ! तुलसी जी ने प्रभु से पूछा – भगवन ! इतनी देर हो गई! अभी तक घाव नहीं ठीक हुआ ! भगवन बोले तुलसी ! तेरे बिन अब रहा नहीं जा रहा ! तुम्हारे कर्मों के अनुसार अभी दो जन्म तुम्हें और लेने आना पड़ना था ! मैंने सोचा सब एक में ही कर डालूँ ताकि तुम्हें और जन्म न लेने पड़ें !!! 
जो साधनारत साधक होते हैं और बार बार प्रभु में एक हो जाने के लिए, उसमें विलीन हो जाने के लिए प्रार्थना करते हैं, बुहार लगाते रहते हैं, परमेश्वर बहुत बार कितने जन्मों की सफाई एक में ही कर देते हैं ! इसलिए घबराना नहीं चाहिए ! प्रभु ही रोग, विपदा का रूप बनकर आते हैं ताकि कर्मों की सफाई व धुलाई हो सके ! 
राम ! केवल राम ! परमेश्वर हम सबको को गुरूजन का साथ निभाने का बल दें , शक्ति दें कि जैसी भी परिस्थिति हमारे आगे आए , हम उनके होकर, सहन कर सकें !! गुरूजन ही कर्मों को काटते हैं, वे ही परिस्थितियाँ बनाते हैं कि कर्मकाण्ड साफ़ हो , सो राम नाम लेकर सहन करना ही श्रेयस्कर है ! सब को बल मिले! सब पर कृपा बरसे! 
हे राम ! आप से कभी यह नज़र न हटे ! चाहे जैसी मर्जी लीला आप रचें ! आप श्री के चरणों के सिवाय कोई चाहत न कभी उमड़े ! 
श्री श्री चरणों में

करनकरावनहार केवल वह ! 

Nov 1, 2016


“बंदा सोचे मैं किया करनहार करतार” परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री की यह बहुत ही सुंदर धुन और अटल सत्य !

गुरूजन सिखाते हैं जीवन की हर घटना से लेकर छोटी से बात चीत तक उसकी इच्छा से होती है । पर हमारे अहम् व माया की जो झल्ली अर्थात् परत जो ऊपर चढ़ी होती है वह यह सब अनदेखा कर देती है !
परमेश्वर ही सब कुछ करने वाले हैं । जो साधारण जन हैं या साधक भी उसी में अभी शामिल कर लीजिए, प्रभु हमारे कर्मों के अनुसार हमारी बुद्धि ऐसे बना देते हैं कि हम कुछ कह देते हैं, या कुछ खास कर देते हैं , कोई रचना कर डालेंगे , लड़ाई कर आएँगे, सेवा कर लेंगे, किसी का हाल चाल पूछ लेंगे, इत्यादि , इत्यादि । पर यह सब होता हो प्रभु के इशारे से ही है। बुद्धि का पलटना – कर्मों के संग ! पर हमें लगता है हम सब करके आए !

गुरूदेव सिखाते हैं कि माँ कैकई सबसे सुंदर उदाहरण हैं । गलत संगति से व कर्मों की लीला से बुद्धि पलटी और सब घटना क्रम आरम्भ हुआ !
हमारे साथ भी यही होता है !
किसी की गोली मार कर हत्या हो गई , बाढ़ में कितने मारे गए, परिवार में किसी को अवॉर्ड मिल गया , सब वह देवाधिदेव और कर्म ।
पर जो साधक समर्पण कर चुके होते हैं, या अपनी ओर से कह चुके होते प्रभु मैं आपका, तो भगवन उन्हें अपने ढंग से चलाते हैं !
मन में जो भी भाव उठते हैं वह उन्हीं से तो आते हैं ! ओह ! उसके लिए प्रार्थना करूँ । यह परमेश्वर ही तो चाह रहे होते हैं। चलो उसका हाल चाल पूछलूं .. यह परमेश्वर ही तो करवाते हैं ! चलो यह सेवा करने का मन हो आया ! परमेश्वर ही तो करवा रहे होते हैं! चलो आज FB पर जाते हैं । सत्संग मिला , रोज आना आरम्भ कर दिया, यह उसकी की तो कृपा है ! भाव बदलने आरम्भ हो गए, विरह हो रहा है ! हमें लगता है हम कुछ हो गए ! यह सब गुरूजन ही तो कर रहे होते हैं । ढेर सारे लेख लिखे गए, पर किसी ने न पढे, सब वह करने वाला! लेख लिखा, सारी दुनिया ने पढा , सब उसकी लीला। वही कर रहा होता है सब , हर चीज !
अब क्यों करता है जैसे वह करता है , यह भेद गुरूजन कहते हैं वह सबको नहीं देता !!

आप पूछो – भगवन यह करूँ या न करूँ ? कोई उत्तर नहीं आया ? क्या उसने सुना नहीं ? सुना ? वह तो साँस से भी निकट है ! फिर बोला क्यों नहीं ? क्योंकि अगला क़दम जो हम उठाएँगे वे उसकी इच्छा से ही होगा ! वह उसका निर्णय ही होगा । हमारी बुद्धि से वह बात कर लेगा! हमारी बुद्धि को वैसे चला देगा !

पूज्य गुरूदेव ने तो यहाँ तक कहा कि जो संत घण्टों समाधि में रहते उनका देह के सुश्रवा के कार्य भी वह सम्भाल लेता है!

आज की सीख 🙏😇

समर्पित हैं या नहीं … हर कार्य वही करता है । समर्पित नहीं तो कर्मों के अनुसार बुद्धि बना देता है। समर्पित हैं तो अपनी इच्छा से चलाता है । सो करन करावनहार तो वही है , अपना राममममममममममममममम
और महाराजश्री कहते हैं कि उसकी करनी में कोई दोष नहीं ! लेष मात्र भी नहीं ! वही तो एक परम सुहृद है। वही तो केवल प्यारों से प्यारा है ! मेरे रामममममममममममम

श्री श्री चरणों में 🙏

मनोमुखी हैं हम या गुरूमुखी… यह व्यवहार व सोच से पता चलता है .. !! 

Sept 3, 2016


मेरे राम ! मेरे सर्वस्व ! मेरे गुरूजन , आपश्री के कमल चरणों में कोटिश्य प्रणाम ! 

परम पूज्य श्री स्वामीजी महाराजश्री कह रहे हैं कि साधना बर्तने में आनी चाहिए । कि साधना का असर व्यवहार में दिखना चाहिए । इसका रंग चढ़ना आवश्यक है !! 

पूज्य महाराजश्री ने कहा कि परमात्मा की कृपा हो गई, सो संत से मिलन हो गया। संत की कृपा भी हो गई। ग्रंथ पढते हैं तो शास्त्र की कृपा हो गई । एक कृपा जब तक नहीं होगी तब तक साधक नहीं बन सकते । सब कृपाएँ धरी की धरी रह जाएँगी !! वह है स्वयं पर मन की कृपा । 

मन को सिधाना । मन के प्रलोभनों के प्रति सजग रहना व इन से बचना ! पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि करोड़ों नाम जाप भी किया, इतने वर्ष सेवा की पर जीवन वैसे का वैसा ! कोई बदलाव ही नहीं आया !! 

एक साधक बोले जब महाराजश्री देह में थे हर भौतिक समस्या के लिए मैं उन्हें पत्र लिखता। मुझे पता था वे दिव्य हैं मेरा काम बन जाएगा। पूज्य महाराजश्री ने मना भी किया कि मत लिखा करो भौतिक माँगों के लिए ! पर न माने । आज भी वे समस्याओं से घिरे हैं। आज भी वे वही कर रहे हैं । संसार सँवारने में लगे हैं, कर्मों को कटवाने में लगे हैं क्षमा मांग रहे हैं कि संसार सँवर जाए !! 

महाराजश्री कहते हैं कि जब संत का मूल्य ही नहीं जाना तो कौड़ी की चीज माँगते रहते हैं। कल भी, आज भी और कल भी !! 

छोटी छोटी बातों में झूठ, चालाकियाँ करना, हेर फेर, दूसरों को नीचा दिखाना, या रास्ते से हटाना कह कर अभिमानी है , मान की चाह , इत्यादि इत्यादि कर्म , साधना का रंग नहीं चढ़ने देते ! जब तक जीवन में सुधार के लिए  करुण क्रंदन प्रार्थना हृदय से न निकले, जब तक अपनी असीम कुटिलता का अहसास न हो और उसके लिए शुचिता चाहने के लिए प्रार्थना याचना न निकले, तब तक माया नचाती रहती है !!! मायावी अंधकारमय जीवन बना रहता है। we are perfect ! We don’t need any change ! Our thoughts are perfect ! माया नचा रही होती है । 

पूज्य महाराजश्री कहते हैं कोई गुरू की शिक्षाओं पर चलने वाला हो, कोई गुरू की आज्ञा मानने वाला हो, कोई गुरूमुखी हो, कोई उसकी कृपा का पात्र हो , तो वह माया की रची गई परीक्षा में पास हो सकता है अन्यथा नहीं !! 

पर हम सब मानते हैं कि हम वैसे ही चल रहे हैं जैसे गुरूजन चाह रहे होते हैं!!!

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है कि साधना व्यवहार में आई कि नहीं !!! साधना का रंग चढा के नहीं ! दैनिक कार्यों में हम साधक रहे कि कोई दूसरा मुखौटा डाला। हमने दूसरे के साथ ऐसे शुचिता से लेन देन किया जैसे गुरू महाराज से ! पर यदि गुरूदेव से छल करते आए हैं उसका क्या कहें ….. 

मेरी आज की सीख 

शिष्य सदा बने रहना है मुझे , अंत समय तक। सीखते जाना है,हर ओर से, श्री चरणों में पूर्ण समर्पण की अनुमति वे कृपालु दें, तो तन मन धन के समर्पण के साथ सर्व श्री श्री चरणों में । वे ही करन करावनहार हैं। उनका ही है सब। हर शब्द, हर भाव, हर स्वास! जो चाहें वे इस देह से कार्य ले लें !! मेरे रामममममममममममम ! आपका है सब ! हम तो केवल कुछ पलों के मेहमान ! पर आप आदि से अन्त तक यहाँ ! हर चीज आपकी ! सबकुछ आपका ! मेरे राममममममममममममममममममममम

जय जय राम 

Attributes of a Ram Naam pracharak

March 8, 2016

Thought of the hour

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Param Guru Ram and My Gurujans, who are none other than Ram, kindly accept my  humblest salutations at Your Lotus feet. O My Ram, look at me, filled with so many imperfections, the holes just never seem to fill up ! But O compassionate One! Never seem to give up on me !!! My Lord, I prostrate at Your Lotus feet O kind One !

Param Pujya Swamiji Maharajshri today talks about missionary of Ram Naam. Pracharak. One who spreads Ram Naam, amongst people, such that they know about it and are able to transform their lives accordingly.

Pujya Swamiji Maharajshri says that a Ram Naam pracharak should be peaceful, should have a good character, must be civilized, a noble person and should possess qualities of a saint. He should not criticize others. He should be far from name and fame . Selfless work needs to be his attitude. He should win over likes and dislikes and varied desires! To be dependent on Sri Ram is a responsibility of  the sewak !

Gurujans say, that if one is totally surrendered on Ram totally dependent on Him, then the sewak accepts, whatever comes in his plate, as a prasaad. It’s very difficult . Gurujans say, it’s not  an easy job to become a sewak. He will face insults, mockery, discontentment of others, etc. but all these are a part of the package of doing service ! These situations teach a sewak, to be patient, to persevere, to become more humble, to ignore! But these are not easy things to acquire. Ram Naam and the surrendered attitude gives a sadhak the energy to absorb all the powerful forceful forces that attack from outside and the reactions that come up from within.

O Lord! I am nothing. No attributes I possess even to serve You ! O Raaaum ! My Lord and everything ! I am at Your lotus feet, just a mere tool I consider myself,nothing more, as I have nothing to qualify for anything ! But You O compassionate One holds me tight! You know my ins and out , O Raaaum , all I know is that I am yours , that’s it , I am Yours !

Saadar Pranaam . Jai Jai Ram 🙏