Feb 28,2016
Thought of the day
परम पूज्य श्री महाराजश्री के मुखारविंद से
कर्म कैसे बंधन से मोक्ष का साधन बने
यदि आप कर्मयोगी बनना चाहते हो तो इस ढंग से कर्म करो कि बीज अंकुरित ही न हो। यह कैसे होगा ?
कर्म जड़ है । उसे बिल्कुल पता नहीं कि मैं बंधन का कारण बनने जा कहा हूँ या मोक्ष का साधन।
यह सब किस पर निर्भर करेगा ? आपके भाव पर ।
भगवानश्री कहते हैं – कर्म को कर्मयोग बनाने के लिए आसक्ति का त्याग करो । यदि व्यक्ति कर्म आसक्ति से युक्त होकर करता है तो उसका कर्म बंधन का कारण बन जाता है। कौन नहीं चाहता कि हम अच्छा कर्म करें और अच्छा कर्म बार बार करें । यह है कर्म के प्रति आसक्ति।
दूसरी चीज – जो कर्म मुझे शुभ फल दे मैं वही कर्म करूँगा । इसका आधार क्या है – शुभ फल ।
मैं वही काम करूँगा जिससे मैं बडा बनूँगा । यह हुई कर्मफल के प्रति आसक्ति ।
तीसरी – कर्ता पन का अभिमान का त्याग ।
चौथी – कर्म न करने में भी तेरी रुचि न हो ।
इन सभी के पश्चात कर्म परमात्मा को अर्पित करने के योग्य बन जाता है। यही कर्म पूजा के पुष्प बन जाते हैं ।
कर्म के प्रति अनासक्ति । राग द्वेष परमेश्वर ने हमें दो अस्त्र शस्त्र दूसरों के लिए दिए हुए हैं । पर हम मूढ अपने लिए इस्तेमाल कर लेते हैं । हमें परमात्मा ने राग किस लिए दिया हुआ है कि हम परमात्मा से प्रीति करें, हमारा अनुराग परमात्मा से हो जाए। कुसंग के प्रति द्वेष , विषयों के प्रति द्वेष , इनके प्रति द्वेष हो जाए तो जीवन सफल हो गया। यह राग द्वेष का सदुपयोग है। यदि मोह ममता में घिर गए तो आप अपने कर्तव्यों का पालन तो नहीं कर सकोगे।
आसक्ति रहित कर्म कीजिएगा । यदि संसार में रहते हुए आपकी दृष्टि परमेश्वर पर रहती है तो आपके कर्म पूजा बन जाएँगे । वह कर्म कर्मयोग बन जाएगा । अनासक्त व्यक्ति को कोई फ़र्क़ नहीं पडता कि वह श्रीरामशरणम बैठ हुआ है, घर पर बैठा हुआ है , दुकान पर बैठा हुआ है। हमारा व्यवहार इसीलिए अलग है कि हम यहाँ अलग हैं, घर में अलग हैं । कर्मयोग घर से शुरू होता है। यदि व्यक्ति घर को छोड़ बाहर कर्मयोग की चर्चा करता है तो वह पाखण्डी है।
आसक्ति रहित कर्म – कर्तापन का अभिमान ।
साधना तैयारी है भगवान का विराट रूप देखने के लिए । अर्जुन भगवान का विराट स्वरूप देखकर भयभीत हो गया था । अर्जुन साधक नहीं था । जहाँ दृष्टि दिव्य है वहाँ न किसी प्रकार का सुख न दुख है। पार्थ यह मैंने मार रखे हुए है। औरों को दिखाई दे कि पार्थ मार रहा है पर मार तो मैंने रखे हैं । यह यश यह श्रेय यह शोभा मैं तुम्हें दिलाना चाहता हूँ । यह परमात्मा की प्रभुता है। सब कुछ करते हुए भी आपको श्रेय देते हैं । वाह बेटा वाह तू अपने परिवार का पालन पोषण कितने अच्छे से कर रहा है। परमेश्वर कहते हैं कि यह सब करने का बल मैंने तुझे दे रखा है । पर हम यह पहचानते नहीं हैं । हमें तो केवल स्टेज पर करना है । सब कुछ परमात्मा ने कर रखा है।
न कर्म में आसक्ति
न कर्म फल में आसक्ति
न कर्तापन का अभिमान
इसप्रकार से कर्म कर्मयोग बन जाएगा ।
धन्यवाद