Category Archives: Attachment / ममता

मानव जीवन की महत्ता 2f

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr09b)

मानव जीवन की महत्ता 2f

21:00 – 26:26

अनेक प्रकार के मोह हैं। गंधारी की बात चल रही है। मर गए सब पुत्र । 101 पुत्र थे, मर गए सब मैदान में, माँ गंधारी अति शोकग्रस्त है। कुरुक्षेत्र के मैदान में अपने पुत्रों के शव देखने के लिए चली गई है। पट्टी तो उतर गई। धृतराष्ट्र बेचारा तो देख नहीं सकता गंधारी चली गई है। भगवान श्रीकृष्ण मिलते हैं, मात्र क्या कर रही हो यहाँ पर? पुत्र तो आपके मर गए। गंधारी ग़ुस्से होती है, दूर हो जा मेरी आँखों से, यह सब कुछ तेरे ही कारण हुआ है। माँ गंधारी ने जो कहा ग़लत नहीं कहा। सब कुछ होता तो उन्हीं के कारण है। ठीक कहा। दूर हो जा मेरी आँखों से। यह सब कुछ तेरे ही कारण हुआ है।भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, माँ कितनी देर तक यहाँ बैठी रहोगी ? जो चले गए हैं, वह इतनी आसानी से लौटने नहीं वाले, चलो घर। भूख लगेगी, तड़पाएगी, कितनी देर तक शोकग्रस्त होकर बैठी रहोगी ?

माँ गंधारी मानती नहीं। आपकी इच्छा मातेश्वरी । प्रणाम करके इजाज़त लेते है माँ गंधारी से।

समय बीतता है भूख तड़पाती है। भूख के प्रति मोह, बड़ा अनोखा मोह। यह पुत्र के प्रति नहीं, संतान के प्रति नहीं, धन के प्रति नहीं, भूख के प्रति मोह । नित देखने में यह भूख के प्रति मोह आता है। किस प्रकार व्याकुल हो जाते हैं, एक दो दिन कुछ खाने को नहीं मिलता तो! भूख के प्रति मोह ।

आज गंधारी को भूख लग गई है और वह ज़िद के कारण जा नहीं रही है।भगवान श्रीकृष्ण का कहना भी नहीं माना बहुत भूख लग गई है। एक पेड़ के ऊपर देखती है, कोई मांस का टुकड़ा लटक रहा है।कैसे उतारे? कहानीकार कहते हैं, अपने ही पुत्रों की लाशोॉ को एक के ऊपर एक रख के जैसे ही उस माँस के टुकड़े को हाथ लगाया, भगवान श्री कृष्ण आते हैं और कहते हैं कि यह कुत्ते का मीट है। मैं खाना लाया हूँ तेरे लिए। मुझे पता था तू भूख से तड़पेंगी । हर एक को तड़पाती है यह भूख । चल माँ । जो होना था वह हो गया, घर चल। भूख के प्रति मोह ।

हमारी कितनी भूल है । कहीं हम धन के प्रति मोहित हैं, कहीं पुत्र के प्रति कहीं यशमान के प्रति, कहीं प्रशंसा के प्रति कहीं मेरा बोल बाला बना रहे, इस बात के प्रति, मेरा जो इज़्ज़त मान बना हुआ है मुझे सफलता ही सफलता मिलती रहे। अनेक प्रकार के मोह हैं। कभी सोच विचार के देखो, जिस धन के प्रति आपको मोह है, क्या उस धन को भी आपसे मोह है? नहीं। आप लाख मकान को अपना अपना कहते रहो, मकान नहीं कहता कि मैं आपका। बहुत लोग सिर हिला रहे हैं कि यह बात बिल्कुल ठीक है। It is unilateral. एक तरफ़ा । और जो एक तरफ़ा है, वह ठीक तो नहीं है।जल मछली के बिना रह सकता है, लेकिन मछली जल के बिना रह नहीं सकती । एक तरफ़ा प्रेम है। जो दो तरफ़ा हुआ करता है, उसे दिव्य प्रेम कहा जाता है। वह दिव्य प्रेम है। वह परमात्मा और दिव्य के सिवाय किसी में नहीं पाया जाता।

पर यह हमारा मोह तो जाना चाहिए।

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मानव जीवन की महत्ता 2e

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr09b)

मानव जीवन की महत्ता 2e

18:16 – 21:00

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं जिसकी आँखों पर ममता की पट्टी बंधी है वह वास्तविक अंधा है। धृतराष्ट्र का भी यही हाल है।उसकी आँखों पर भी मोह एवम् ममता की पट्टी बंधी हुई है। हर वक्त अपने पुत्र की याद अपने पति की याद अपने परिवार की याद अपनों की याद । भगवान तो बेचारा किसी क़िस्मत वाले को याद आता है। हमें तो हर वक्त इन्हीं की याद आती है। क्यों ? आँखों पर भी तो मोह की पट्टी बंधी हुई है।

दुर्योधन चल पड़ा है। माँ गंधारी के पास। कहीं ऐसा लिखते हैं, कहीं ऐसा कि भगवान श्रीकृष्ण मिलते हैं या देवऋषि नारद मिलते हों। कोई भी मिलते हों। दुर्योधन को नंगे देखा , छी छी छी छी । नंगा धड़ंगा अपनी माँ के पास जा रहा है। बेचारा सकुचा गया, ऐसे हो गया। मेरे से ऐसे शर्माते तो अपनी माँ के पास कैसे जाओगे। कम से कम एक छोटा सा कपड़ा तो बांध यहाँ पर । एक छोटा सा कपड़ा बंधना दिया । जाओ अब ।

कपड़ा बांध कर जब दुर्योधन अपनी माँ के पास गया है। माँ ने पट्टी खोली है, शरीर तो उसका वज्र का हो गया लेकिन यह शरीर जहां कपड़ा बांध रखा था वह वज्र का नहीं हुआ । कैसी दृष्टि ? सारे शरीर को वज्र करने वाली दृष्टि इतने से कपड़े को भेदन नहीं कर सकी । कैसे करती ? वह मात्र कपड़ा थोड़ी है, उसके पीछे तो मेरे राम का संकल्प है।उसे कौन भेदन करे। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, भगवान वास्तव में अंधी हो गई है। क्या वह नहीं जानती कि मैं कृष्ण कौन हूँ ? मैं पार ब्रह्म परमात्मा हूँ और मेरा संकल्प क्या है? जिसे मैं मारना चाहता हूँ उसे कौन माई का लाल है जो संसार में बचा सकेगा। उसका ज्ञान खत्म । वह अज्ञानों गई हुई है, अंधी हो गई हुई है। उसे कुछ दिखाई नहीं देता । देखो न अपने पुत्र को अमर बनाने जा रही थी। आज अपनी ही गलती के कारण सबको बता दिया है कि मेरा पुत्र यदि मरेगा तो भई उसको यहाँ मारना, बस मर जाएगा । अमर नहीं बना सकी अपने पुत्र को। ऐसी ममता ममत्व के कारण अनेक गलतियां करते हैं जिसके कारण हमारा यश धूमिल हो जाता है।

Contd.