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केवल राम नाम 

Aug 4, 2017

केवल राम नाम 

जब चाह नहीं तो आह भी नहीं जब लेना नहीं तो संशय किसका ? 

जब अपना कुछ नहीं .. तो बटोरना क्या ? 

जब केवल नाम से मतलब तो स्वार्थ कहां ? 
कल स्वामी विवेकानन्द जी का एक पोस्ट पड़ा .. जिसका मूल भाव था कि आसक्ति के कारण हम में स्वार्थ आ जाता है जिससे हम में गलत विचार भी आ जाते हैं ! यह बात घर कर गई । 
कई बार आध्यात्मिक उनन्ति व गुरूजन की कृपा रहे या उनके प्रेम के पात्र बनें यहाँ भी माया जाल बिछा देती है … जिसके कारण बहुत गलत भावनाएँ उपजती हैं । 
पूज्य महाराजश्री तभी कहते हैं कि नाम के सिवाय कुछ करना नहीं कुछ चाहना नहीं जब .. तो बाकि सब तो माया है ! और कुछ नहीं ! 

आध्यात्मिक उन्नति की इच्छा की बजाए राम नाम पर गहन गहनतम होते जाएँ तो स्वयमेव ही सब हो जाता है ! पात्र भी स्वयमेव ही बन जाते हैं व कृपा स्वयमेव ही बरसती है । 
धन्यवाद प्रभु !

FAQ – इच्छाएं व समर्पण 

July 16, 2017


प्रशन : ईश्वर हर किसी स्वरुप मे सिर्फ वही अपनी प्रतिनिधी आत्मा देते है । पर हर किसी का मन, बुद्धि, और कर्म अलग अलग।ये हमारे पिछले जन्मो के कर्मो या प्रारब्धो के अनुसार। यही हमारी आत्मा पर जन्म लेते के साथ ही चढे होते है । इसलिये हर किसी के मन मे उठने वाली कामनाएँ भी इसी मन बुद्दि और कर्मो अनुसार अलग अलग, जबकि सबके शरीर मे आत्मा तो वही सत्य शुद्ध ईश्वर का स्वरुप।यदि किसी की इच्छा चोरी की होती है, यदि किसी की इच्छा किसी स्त्री के साथ गलत व्यवहार की होती है, यदि किसी की इच्छा दूसरो को कष्ट देने की होती है, तो इन सब इच्छाओ को हम प्रभु के द्वारा ही प्रकट की गयी इच्छाए कैसे मान सकते है। या ये कैसे कह सकते है कि ये सब प्रभु से ही उत्पन्न हुई चीजे । ये तो हमारे मन, बुद्धि और कर्मो के अनुसार उपजने वाली इच्छाए है? 
गीता जी में स्पष्ट लिखा है कि तीनों तरह के गुणों से जीवात्मा बंधा हुआ है । परमेश्वर के इलावा इन गुणों को कौन उत्पन्न कर सकता है ? संत गण कहते हैं कि परमेश्वर ने यह देह व इसकी इंद्रियाँ उसे जानने व स्वयं को जानने के लिए दी । पर यदि जीव ने अपनी इच्छा से इनका रुख संसार की ओर कर दिया तो यह उसका निजी चयन रहा है । 
यह बिल्कुल सही है कि हर जीवात्मा अपने कर्म संस्कारों से बद्ध है और उसके भीतर जो तीन गुण हैं वे समय समय पर उभर कर नाच नचाते हैं । 
जो सो भीतर से जो इच्छाएं उपजती हैं वे इन्हीं बीजों के कारण उपजती हैं । 
सो साधना निर्विकार व निर्विचार करने की ओर की यात्रा है । 

गुरूदेव कहते हैं कि जब साधक ऐसा हो जाता है तो भीतर की यात्रा आरम्भ होती है । उससे पहले तो मात्र चमकारे ही मिल रहे होते हैं। 
महाराजश्री कहते हैं कि सम्पूर्ण समर्पण क्यों कठिन है क्योंकि साधक यहाँ निर्विचार व निर्विकार हो चुका होता है । सम्पूर्ण सम्पर्ण मानो परमेश्वर साक्षात्कार ! उदाहरण हमारे गुरूजन, मीरा बाई, गुरू नानक देव, रमण महर्षि , श्रीरामकृष्ण परमहंस , इत्यादि ! 
जो सम्पूर्ण सम्पर्ण की अवस्था होती है वहाँ तो निजी विचार ही नहीं उठते वहाँ मन ही नहीं होता वहाँ राम के सिवाय कुछ न दिखता है न होता है ! मन समिष्टी मन हो गया होता है ! वहाँ जो देह है वह राम के कर्म करती है , ऐसा सब गुरूजनों ने कहा है। पूज्यश्री स्वामी जी महाराजश्री ने समर्पण कर्म के पश्चात राम के कर्म का भी उल्लेख किया है कथा प्रकाश में ! मानो कि राम यहाँ स्वयं कार्य कर रहे हैं ! यह समर्पण कर्म के पश्चात कहा है ! 
महाराजश्री तभी कहते हैं यात्रा बहुत लम्बी है । अंतिम स्वास तक नहीं रूकना ! 
महाराजश्री कहते हैं स्वयं को देखना है व स्वय को सुधारना ही आध्यात्म है । बाकि सब धार्मिकता है – सत्संग जाना, मंदिर जाना, हनुमान जी को मत्था टेकना, माता रानी को टेकना, श्रीरामशरणम् जाना, अमृतवाणी जी का पाठ करना , इत्यादि , इत्यादि , धारमिकता है ! हमें आध्यात्मिक बनना है ! स्वयं को देखना व स्वयं को सुधारना !  
श्री श्री चरणों में

FAQ- कामना व प्रार्थना 

July 16, 2017


प्रश्न : आज प्रार्थना कोष में किसी साधक ने प्रार्थना डाली । उस प्रार्थना के प्रतिओत्तर में जो जो लोगों ने सुझाव दिए उससे मन बहुत खराब हो गया । क्या किया जाए ? 
यह गुरूजनों की हम सब के लिए बहुत सुंदर लीला थी । ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था । हर प्रार्थना पर कृपा कृपा परमेश्वर कृपा जैसे आशीष ही जाते थे । पर इस बार यहाँ नहीं ! 
हम इस लीला को दो नजरिओं से देखेंगे । एक पीड़ित व दूसरी प्रार्थना करने वालों की । 
यहाँ यह भी जानना आवश्यक है कि सभी राम नाम को मानने वाला समाज नहीं है बल्कि प्रार्थना को मानने वाला समाज है । 

पर विनती साधक द्वारा थी । 
देखते हैं गुरूजन ने क्या सिखाया है हमें । 
पूज्य़श्री महाराजश्री कहते हैं कि हर परिस्थिति जीवन में जो हमें मिली है वे हमारे कर्म हैं व प्रसाद है । उन्हें सहर्ष स्वीकार करना चाहिए । और परमेश्वर से बल माँगना चाहिए कि हम सहन कर सकें । कामना पूर्ति के लिए साधना कही है, सवा करोड संकल्प , श्री अमृतवाणी पाठ, सुन्दर काण्ड पाठ, मंगलाचार, इत्यादि । 
यदि फिर भी प्रार्थना स्वीकार नहीं होती तो प्रार्थना सभी में देता है कि मुझे बल मिले शक्ति मिले। 
यदि फिर नहीं स्वीकार होती तो परमेश्वर मेरा हित कर रहे हैं , ऐसा मान कर परमेश्वर की इच्छा में संतुष्ट रहता है ! ( रहना चाहिए ! ) 
पर यदि साधक यह सब नहीं करता और प्रार्थना सभाओं में जाता है अपनी परेशानी लेकर तो गुरूजन कहते हैं चलो दिखाऊँ कि बाहर कितना बडा संसार व दल दल है ! 
जब राम नाम पर विश्वास न हो तो जीवन दल दल बन जाता है । और वही हुआ ! अनन्त सुझाव !! प्रभु ने अनन्त माया बिछी दी ! ढूँढते रहो कि क्या करना है । 
अब जो साधक प्रार्थना की सेवा करते हैं – उन्हें तो जो प्रार्थना आती है वह अपने प्रभु के समक्ष रख देनी होती है कि दीनाबन्धु ! यह तुम्हारे हैं तुम जानो ! यदि इसमें इनकी भलाई है, यदि इससे इनकी साधना बढ़ेगी तो कृपया कृपा कर दें ! 
पर प्रार्थनाएं सामाजिक दिखावा नहीं बल्कि गुप्त व चुप चाप व भावात्मक होनी आवश्यक हैं । 
प्रार्थना का फल इंसान के हाथ नहीं परमात्मा के हाथ होता है ! 
सो प्रभु हर लीला से सिखाते हैं ! हमें सीखते रहना है ! 
श्री श्री चरणों में

कामना से उपासना तक 

July 15, 2017


जिस स्थान पर आकर आपकी सारी मनोकामनाएँ समाप्त हो जाएँ , जहाँ आकर कोई इच्छा ही शेष न रहे ; वही स्थान सही माएने में सबसे शक्तिशाली स्थान है ! 
एक युवक आज स्वामीजी के पास गया । बोला स्वामीजी मेरी नौकरी नहीं लग रही । 

स्वामीजी सिद्ध स्वामी थे पर प्रभु भक्त भी । बोले बेटा सब लीला है । 

निराश युवक वापिस चला गया । पर कुछ ही दिनों में नौकरी लग गई । बहुत खुश । मिठाई का डिब्बा लेकर आया । बोला स्वामीजी नौकरी लग गई । स्वामीजी बोले – बेटा सब लीला है ! 
कुछ वर्ष बाद युवक फिर स्वामीजी के दर्शन करने आया बोला स्वामीजी बहुत राजनीति है । मेरी प्रमोशन नहीं हो रही । 

स्वामीजी बोले – बेटे सब लीला है ! 
युवक के घर पहुँचते ही ख़बर आई कि प्रमोशन हो गई ! बडा खुश ! स्वामीजी को फ़ोन करके धन्यवाद कहा और स्वामीजी बोले – बेटा ! सब लीला है ! 
कुछ महीने पश्चात उसी कम्पनी में आग लग गई और कम्पनी बंद हो गई ! युवक फिर गया और चुप करके बैठ गया उनकी श्री चरणों में । स्वामीजी बोले – क्या हुआ ? आज कुछ नहीं माँगना ! 
बोला – अब शादी कैसे होगी ? नौकरी भी चले गई ! 
स्वामीजी बोले – सब लीला है बेटा ! 
युवक बोला – आप हर बात पर सब लीला है क्यों कहते हैं स्वामीजी ? 

स्वामीजी बोले – क्योंकि बेटा यह एक चक्र है और चक्र का तो अंत ही नहीं होता । 

कुछ वर्ष पहले एक दम्पति आए । दस साल से बच्चा नहीं था । बच्चा हो गया । पर बीमार रहता । कभी औपरेशन कभी यह डॉक्टर कभी वह डॉक्टर । फिर एक एक । बडा हुआ बिगड़ गया । फिर आए मा बाप ! बिगड़ गया तो बुरी संगति में पड़ गया । फिर आए माँ बाप । फिर एक दिन शराब के नशे में पिता को चपत दे मारी । विवाह नही हो रहा था । मन पसन्द का विवाह किया ! माता पिता को बाहर निकल फेंका । कल ही आश्रम में जगह दी है सिर ढकने के लिए ! 
सो बेटा ! यह जीवन तो चक्र में ही उलझाए रखता है । 
युवक बोला – क्या इस चक्र से निकला नहीं जा सकता ? 
स्वामीजी की आँखें चमकी युवक के प्रश्न पर ! बोले – जैसे हो वैसे मौज मनाओ ! तो जीवन में मुस्कुराहट भी है व ख़ुशिया भी ! 
युवक बोला – पर कैसे इच्छाओं को समाप्त करें ? 
स्वामीजी बोले – कामना को उपासना में बदल कर ! परमेश्वर से जोड़ कर व दूसरों को देकर ! 
आज युवक अपने आपको इतना हल्का महसूस कर रहा था ! जैसी परिस्थिति थी वैसे ही जीने का निश्चय किया । जब तक खाली था आश्रम के कार्य करने लग गया ! 
जीवन में ख़ुशियाँ लौकिक कामनाओं की पूर्ति में नहीं उनकी निवृति में है !

देने से तत्काल शान्ति 

May 11, 2017

देने से तत्काल शान्ति 

परम पूज्यश्री महाराज़श्री कहते हैं कि एक साधक वह जो देना जाने । 
यदि हमारा अर्जित करने की बजाए , देने का स्वभाव बन जाए तो शान्ति हमारी मित्र ही बन जाती है । 
एक कर्मचारी के काम पर लोगों का आपस में वातावरण तीखा सा था । चीज़ें न होने पर रोते धोते रहना । किसी ने कुछ लौटाया नहीं तो शिकायत कर देना , इत्यादि इत्यादि । 
तो यह कर्मचारी मौक़ा ढूँढते कि कब किसी को वे कुछ दे सकें । कुछ अपने पास ज्यादा दिखा तो बांट देते । यह कह कर कि कृपया लौटाइएगा नहीं !! 

इससे क्या हुआ कि उन कर्मचारी के आस पास सकारात्मक ऊर्जा शक्ति स्थापित हो गई । इसमें वे अपने गुरूजनों का हाथ ही मानते हैं ! 
इसी तरह से घर परिवारों में बँटवारे नराजगियां होनी बहुत आसान हैं । पर यदि हम वहाँ बिना रोए धोए देना सीख जाएँ तो वातावरण बहुत शान्त बना रह सकता है । 
परिवार में यदि हमें पता चला है कि किसी को दूसरे की भी सम्पति लेने की नज़र बन गई है तो गुरूजन कहते हैं दे दीजिए । पूज्य महाराज़श्री के अनुसार जिसे देना आ गया वह कभी खाली नहीं रहता ! दिव्यता उसे भर कर रख देती है ! उसे कभी हाथ फैलाने नहीं पडते !! 
दूसरों को बदलने की बजाए हम स्वयं बदल जाएँ तो जीवन बहुत सुखद हो जाए ! परमेश्वर का है सब । मेरा घर , मेरी ज्यएदाद ! सब उसका है !! सो यदि कोई उसकी चीज हमसे चाहता है तो परमेश्वर कृपा करें कि हम देने में कभी भी हिचहिचकाएं न !! 
सब आपका व सब आपसे ! 

कामना 

परम पूज्य श्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री के मुखारविंद से 

                        कामना 
साधक को एक ही चीज से, जिसपर उसका वश है , उससे बचने की ज़रूरत है, और वह है कामना । जहाँ कामना होगी वहाँ क्रोध भी होगा, ईर्ष्या भी होगी । बचने की चीज कामना । 
आचार्य बहिदर हुए हैं । उन्होंने वेदों पर भाष्य लिखा है । एक बार बिमार हुए।भाष्य लिखना बंद हो गया । प्रार्थना की । ठीक हो गए। फिर लिखना आरम्भ कर दिया। थोड़े दिनों बाद फिर से बिमार हुए। इस बार बहुत बिमार हो गए । प्रार्थना की । पर इस बार एक बार प्रार्थना से काम नहीं बना। रात भर प्रार्थना करते गए । रात में झपकी लग गई । प्रभु आए । कहा तुम्हें तो मैंने अपना कार्य करने भेजा था पर तुम तो मुझसे ही कार्य करवाने लग पड़े । एक बार बिमार हुआ तो मुझे कहा। दूसरा बार बीमार हुआ फिर मुझे कहा। जा अमुक डॉ के पास जा। जो काम वैद्य कर सकता है उसके लिए परमात्मा को क्यों कष्ट देना । यह एक साधक की भावना होनी चाहिए । 
एक साधक साधक जनों यदि अपने लिए कुछ माँगता है तो उसे कामना कहते हैं । यह उसकी साधना में बहुत बड़ी बाधा है । औरों के लिए माँगने में कभी कंजूसी न कीजिएगा । वह तो परमात्मा का काम है। आप उसके काम में सहायक हो रहे हैं । लेकिन अपने लिए कुछ माँगते हो, किसी भी प्रकार का , रोग निवारण , business ठीक नहीं चल रहा, कोई मुक़दमा आ गया है, विपत्ति आ गई है, इत्यादि इत्यादि । तो परमेश्वर क्या करता है? आपसे बंधन छुड़ा लेता है। तूने किया है तू भुग्त । मेरे पर छोड़ा हुआ होता, तो मैं तेरा सब कुछ सम्भाल लेता। तू तो हर छोटे काम के लिए मुझे ही कष्ट देता है। 
तो स्पष्ट होता है साधक जनों कि परमेश्वर ने हमें किसी काम के लिए किसी कर्तव्य निभाने के लिए अपना काम करवाने के लिए हमें भेजा हुआ है, न कि हम उससे अपना काम करवाएँ । 
जहाँ कामना होगी वहाँ अभिमान भी होगा । माँगने की तो यह चीज है परमात्मा से, परमात्मा बल दे, परमात्मा कृपा कर । यह मेरा कट्टर शत्रु अभिमान है इसका हनन कर । यह कामना नहीं है। परमात्मा से परमात्मा को माँगना ,परमात्मा से अपने दुर्गुणों दोषों को दूर करवाने की याचना करना कामना नहीं है। 
परमात्मा कहता है तू मेरी तरह बनना चाहता है, वह बना देता है। एक एक करके सारे दुर्गुण दोष दूर करता चला जाता है। बस भौतिक माँग बीच में न आए । तो वह आपका है। आपके लिए सब कुछ करने के लिए तैयार है। वही करने वाला है। वही सब कुछ करता है। कभी इन बातों को परख के देख लेना ।