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गुरू मंत्र व प्रभु का रूप

Sept 26, 2018

प्रश्न आया कि मुझे भगवान कृष्ण से रोम रोम से प्रेम है। दीक्षा परम पूज्य़श्री स्वामीजी महापाजश्री से ली है किन्तु मेरा मन गुरू मंत्र की बजाए कृष्ण नाम जपने को करता है ।

जब दीक्षा मिलती है तो उसे नव जन्म कहते हैं।

जब असली में जन्म होता है तो केवल देह नया होता है किन्तु संस्कार पुराने होते हैं।

इसी तरह जब गुरू अकारण कृपा कर जीवन में आते हैं और झोली में नाम दान देते हैं तो उसका मतलब कि वे पुराने संस्कारों को बदलने के लिए आ गए हैं। जहां पहले थे वहाँ से आगे बढ़ने का समय आ गया है।

मूर्ति पूजा यदि स्वाभाविक लगती थी तो मानो वह पुराने संस्कारों के कारण । उपवास रखने, व अन्य विधि करनी सब पुराने संस्कार । किन्तु गौण !

मूर्ति पूजा से जब हम मानसिक पूजा की ओर बढ़ते हैं तो वह भीतर की यात्रा का आग़ाज़ होता है। जो करना हमारे लिए स्वभाविक है किन्तु गौण और गुरू की शिक्षाएँ बहुत भिन्न हैं जैसे आत्मचिन्तन तो मानो गुरू बहुत ही उच्च उत्थान के लिए मिले हैं।

उत्थान किन्तु गुरू आज्ञा में सम्भव है । गुरू मंत्र से सम्भव है।

मन वहीं खींचता है जहां उसे आदत है। किन्तु उसका रुख़ गुरू आज्ञा के कारण बदलना बहुत बड़ा त्याग है ।

मंत्र राम लेना अनिवार्य है। किन्तु मन में रूप कोई भी ले सरते हैं व किसी भी रूप से प्रेम कर सकते हैं। जैसे भगवान कृष्ण, धनुषधारी प्रभु राम, भगवती मइय, गुरूजन , ज्योति , सूर्य , राम शब्द या शून्य। ऐसा पूज्य गुरूदेव कहते हैं।

नाम से प्रीति हो जाए ! ऐसी प्रार्थना करते रहनी है। नाम ही भीतर की गहराइओं में स्वयं लेकर जाएंगे।

परमेश्वर रूप व नाम से पार है ! वे अथाह मौन में पाए जाते हैं जहां सब रूप नाम विलीन हो जाते हैं।

स्वयं को शक्ति से भरें

Sept 21, 2018

आज एक प्रश्न आया कि मेरे प्यार करने के बावजूद पति बिल्कुल क़दर नहीं करता, न कमाई में सहयोग देता है, न बात चीत करता है,

पूछने पर भी कुछ नहीं कहता, पीता रहता है, और घर से गायब रहता है। सास ससुर भी सहयोग नहीं देते।यहाँ तक घर पर काम वाली भी रखने नहीं देते । मैं क्या करूं कि मुझे शान्ति मिले !

ऐसे बहुत सारे आजकल प्रसंग सुनने को मिलते हैं। शायद बाहर आ रहे हैं। हमारी हिन्दु संस्कृति ही हमें तब भी बाँधे रखती है। साथी जैसा भी हो हम फिर भी प्यार करते हैं और आस लगाते हैं कि सब ठीक हो जाएगा । या फिर हमें अकेले जीवन व्यतीत करने में भय

लगता है क्योंकि समाज अकेली महिला को छोड़ता नहीं !

तो ऐसी चीज़ें हमें अत्यन्त दुखी करती हैं। कारण ? हमारी खुशी का केंद्र कोई और है ! वह हमसे प्यार नहीं कर रहा तो हम बहुत दुखी हो जाते हैं। हम भक्ति की ओर जाना हैं पर जा नहीं पाते । हमें रात को नींद नहीं आती ।

क्या करें ?

सबसे पहले यह निश्चय कर लें कि जो हमारी हालत हो रही है उसको ठीक करना है ।

कैसे करें ?

सोच बदल कर ।

सबसे पहले अपने मानसिक स्वास्थ्य के लिए जिन लोगों से जो बिन कारण पीड़ा देते हैंवहां दूरी यदि बना सकें बना लें। यदि नहीं तो प्रतिक्रिया बंद कर दें । उदाहरण – पति तो रहता नहीं घर । सासससुर बेवजह अपमान करें या काम काज की अपेक्षा करें तो मौन हो जाएं ।

पति जब भी घर में आए तो कर्तव्य निभाएँ और मुस्कुरा कर कह दें – good to see you after a long time ! Hope u are well! इतने दिनों बाद देखकर बहुत अच्छा लगा ! आशा हैं सब ठीक है। कुछ चाहिए हो तो जरूर कहिएगा !

रोना नहीं ! कि कहां थे !कुछ नहीं करते ! मैं चिन्ता कर रही थी ! इत्यादि ! बहुत रो लिए !

ऐसा सब करने की शक्ति कहां से आएगी ? परमेश्वर की उपासना से।

श्रीअमृतवाणी जी का पाठ कीजिए ५-७ बार । इसमें से एक अमृतवाणी पति के नाम की । कि जो पीड़ा इनके व्यवहार से हो रही है उसके लिए उन्हें क्षमा ! उनपर कृपा बरसे ! इससे हम स्वयं भी आरोग्य होंगे ।

अब यही पति जो कुछ योगदान नहीं देता वह पाठ ,नाम दीक्षा के लिए मना करे तो सोचिए कि जीवन साथी तो बन नहीं पा रहा अच्छे काम में भी रोकता है। तो पूछने की व बताने की आवश्यकता नहीं । खूब पूजा पाठ कीजिए । प्रभु आपको मौक़े दे रहे हैं । वे घर नहीं आते आप के पास समय है नाम आराधन का !

स्वयं की सुंदरता जो दूसरे को दिख नहीं रही वह हम अपने से भी लुप्त कर देते हैं । उसे ज़िंदा रखना है ! वह तभी होगा जब हम अपनी नज़र अपने पर करेंगे ! अपना ध्यान रखेंगे ! अपने को प्यार देंगे ! और खुश होइए कि जितनी पूजा वे इस अवस्था में करवाएँगे उतनी हमने आज तक जीवन में नहीं की होगी ! यह परिस्थिति हमें उस परम प्यारे का नाम लेने का सुअवसर प्रदान कर रही है !

धन्य मानिए ! अति अति धन्य मानिए !

जब विवाह के संयोग न बनें

Sept 21, 2018

कुछ दिन पहले प्रार्थना आई कि संबंधी की बिटिया ३३ वर्ष की हो गई है किन्तु विवाह नहीं हो रहा, बहुत तनाव है।

ऐसे बहुत से बच्चे हैं जिनका विवाह समय रहते ( सामाजिक व जैविक समयानुसार) नहीं हो रहा होता ।

यदि साधक हैं तो यक़ीन मानिए इसमें भलाई ही है । प्रयास करते रहना चाहिए क्योंकि वह कर्तव्य है किन्तु बिना तनाव के। एक साधक यह मानता है कि जो हो रहा होता है उसमें मेरी भलाई है। किन्तु तनाव में हमें समझ नहीं आता । और हम और नकारात्मक हो जाते हैं।

इसमें एक और पहलु भी है । बच्चों से पूछ लेना चाहिए कि कोई उन्हें पसंद है क्या ? कई बार बच्चे कि अपनी इच्छा इतनी प्रबल होती है कि वह माता पिता के ढूँढे रिश्ते पर नहीं जाना चाहता और भीतर से चाहता रहता है कि भगवन! कोई रिश्ता न आए !

आज के समय में अलगाव का होना , मन का न मिलना, व एक दूसरे को जैसे हैं वैसा न अपना पाना बहुत सहज हो गया है । इस कारण यदि बच्चे अपनी पसंद के लड़के या लड़की से विवाह करना चाहते हैं तो करने देना चाहिए यदि बच्चा जीवन साथी का पोषण करने लायक है तो । दोनों बच्चे एक दूसरे का पोषण कर सकें ऐसा देखना आवश्यक है।

कई बच्चे ऐसे होते हैं कि उनकी कोई पसंद नहीं होती । वे माता पिता पर ही निर्भर होते हैं । वहाँ माता पिता जरूर ध्यान दें कि बच्चा अपने पैरों पर खडा है । उसे खूब व्यस्त रखें । काम काज में सेवा में इत्यादि । यदि कमा नहीं रही या रहा कृपया ऐसे प्रबंध जरूर करें कि या तो वे आगे पढ सके या कमाएँ ।

परमेश्वर के आगे ज़बरदस्ती कृपया न करें कि वे इच्छा पूर्ण कर दें । वे किसी कारण ही विलम्ब कर रहे होते हैं । हमें ऐसी परिस्थितियों से रास्ता निकालना आना चाहिए , व परमेश्वर इच्छा मे सहर्ष रहना चाहिए । जाप पाठ बिना फल की इच्छा के बढ़ा देना अवश्य चाहिए ।

एक परिवार में एक साधिका के लिए पूज्य महाराजश्री ने स्वयं ही कहा कि लड़का देखना आरम्भ कर दो । माता जी लग गए । वर्ष बीतते गएकुछ नहीं हुआ । माता जी गए । कि आपने तो कहा था बस थोड़ा समय और पर कितने वर्ष बीत गए । पूज्य गुरूदेव बोले कि ऐसे ही थोड़ी न बच्ची को गाय की तरह कहीं भी बाँध देना है !

सो कृपया चिन्ता न करें । धैर्य व विश्वास रखें कि मंगल ही हो रहा है ।

सबका मंगल हो ।

बच्चों को करके दिखाए कर्तव्य निभाना

Sept 18, 2018

प्रश्न आया कि बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता

जिस तरह जाप में मन नहीं लगता या ध्यान में मन नहीं लगता पर करना होता है ..

इसी तरह बच्चों का जब पढ़ाई में मन नहीं लगता तो पढ़ाना होता है।

जिस तरह जाप में मन न लगने के कारण हमारी अपनी वृत्तियाँ होती हैं, उसी तरह बच्चों का पढ़ाई में मन न लगने का कारण उनकी अपनी वृत्तियाँ होती हैं।

हम ही बच्चों को खुली छूट टी वी व फ़ोन इत्यादि की दे देते हैं, जिस कारण उनका अपने कर्तव्यों के प्रति रुझान हट जाता है।

यह बताना होता है कि पहले कर्तव्य बाद में स्व entertainment. यह training देनी होती है। स्वयं नहीं आती ।

जब हम भोजन बनाते हैं तो कहिए कि देखो मैं अपने कर्तव्य कर रही हूँ आप अपना कर्त्वय कीजिए । आज भोजन न बनाऊँ तो गड़बड़ हो जाएगी ।टी वी पर ही बैठूँ गड़बड़ हो जाएगी । सो आपको भी ऐसा नहीं करना । चाहे पसंद है या नहीं कर्तव्य तो निभाने हैं।

गुरूजन कहते हैं कि यह हमें ही करके समझाना पड़ेगा । दिखाना पड़ेगा कि कैसे कर्तव्य निभाए जाते हैं। फिर उन्हें साथ लेकर करवाना पड़ेगा ।

सर्व श्री श्री चरणों में

झुकना मतलब ?

Sept 18, 2018

आज प्रश्न आया कि पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि झुकना , करुणा, दया के गुण एक के प्रति नहीं बल्कि हर एक के प्रति होने चाहिए। यदि एक के प्रति हैं तो वह मोह है । यह रोग है दुर्गुण है। पर मैं दुकान पर काम करता हूँ और यदि मैं सख़्त नहीं होंगी तो सब सिर पर चढ़ना आरम्भ कर देते हैं।

झुकने का क्या मतलब है ? सब एक हैं । सब में मेरे प्रभु हैं ऐसी दृष्टि । इस दृष्टि के कारण हम में किसी के प्रति राग द्वेष नहीं होता ।

पर प्रभु ने हमें विभिन्न कर्तव्य दिए हैं। किसी को लीडर बनाया है, किसी को चेयरमैन, किसी को टीचर , किसी को डॉक्टर, किसी को पोलीसमैन, किसी को सेनानायक इत्यादि। इन कर्तव्यों के साथ इनका अपना किरदार होता है । कर्तव्य होता है। कही कड़क होना पड़ता है तो कहीं चतुर । यदि हम यह कर्तव्य सही तरह से नहीं करेंगे तो प्रभु के कार्य सुचारू रूप से नहीं चलेंगे ।

सो अपने कर्तव्य, अपने किरदार सही से निभाने हैं किन्तु हृदय में किसी के भी प्रति मैल नहीं लाना । वह जैसा है उसे प्रभु का बंदा ही मानना है । किसी के प्रति भेद भाव नहीं करना । सब के साथ भीतर से एक सा भाव रखना है ।

कभी कर्मचारी को जरूरत पड़ी या विपदा आए तो चुपके से मदद भी करनी है। किन्तु जो व्यवसाय के नियम हैं वह तो अच्छे से ही निभाने हैं।

परम पूज्य महाराजश्री ने इसी पर बहुत सुंदर कथा सुनाई कि एक बार एक जंगल में गाँव के किनारे साँप रहता था । जो रास्ते में आता जाता डंक मार देता । बहुत ख़ौफ़ था उसका। एक बार एक संत वहाँ से गुज़रे । उन्हें पता चला कि वहाँ वह साँप रहता है। तो वे उसे बोले तू प्रभु प्राप्ति क्यों नहीं करता । हिंसा छोड दे । साँप ने अब शिकार करना भी छोड दिया जो उसका आहार था । सूखे पत्ते खाता। लोगों को डंक मारना छोड़ दिया। लोगों ने उसे पत्थर मारने आरम्भ कर दिए । वह सूख कर लहु लोहान पड़ा रहा । एक महीने के पश्चात जब उसके गुरू लौटे तो उसकी हालत देख कर बहुत दुखी हुए । सब सुनने के बाद वे बोले कि मैंने डंक मारने के लिए मना किया था हिसने के लिए नहीं !!

किन्तु मोह बहुत बुरा है । मोह से तामसिक वृत्तियाँ जाग जाती हैं। मैं मेरा का प्रबलत्व हो जाता है। पाप कर्म अतिश्य बढ जाते हैं। बुद्धि अविवेक युक्त हो जाती है। और पतन को प्राप्त होते जाते हैं।

सो संसार के किरदार दत्तचित हो कर निभाने हैं ! किन्तु भीतर उससे एक ! वहाँ किसी के प्रति कोई भेद भाव नहीं ।

लोग मतलब लेते हैं हम सेवा कर डालें

Sept 17, 2018

आज प्रश्न आया कि परिवार संबंधी मतलब के लिए काम ले लेते हैं और फिर मुड़ कर नहीं देखते । परिवार में हम कुछ कह नहीं पाते ।

यह बहुत सुंदर प्रश्न है और सबने ऐसा कभी न कभी महसूस भी किया होगा ।

एक साधक जी थे । उनके पास भी ऐसा कोई गुण था कि सब पूछने आते किन्तु सामाजिक स्तर पर अकेला छोड़ देते । तो उनको समाजिक रवैया से बहुत पीड़ा हुई । एक दिन वे परमेश्वर से खुली आकाश की ओर देखकर बोले कि आप जितना मेरा इस्तेमाल करना चाहते हैं कीजिए मेरे द्वार पूर्ण रूप से खुले हैं। इस सात्विक भाव के बाद उन्हें कभी चुभन व पीड़ा न हुई समाज के रवैइए से ।

संतों को हम देखें । लोगों जाते ही उनके पास हैं अपने काम व समस्याएँ सुलझाने के लिए । जरूरी नहीं मुड़ कर भी आएं ।

सो हमें अपने में सात्विक भाव जागृत करना है कि भगवन आपके हम यंत्र बनें वह भी बिन अपेक्षा के । हमें चुभन इसलिए होती है क्योंकि हमें धन्यवाद की अपेक्षा होती है । किन्तु न प्रकृति न परमेश्वर को धन्यवाद की अपेक्षा होती है ! हम परमेश्वर के अंश हैं। हमें उन जैसा बनना है । बल्कि हमारी कोशिश होनी चाहिए कि कैसे किसी के काम आ सकूँ । और प्रभु से कहना चाहिए कि भगवन जब आप मुझसे मेरी देह से मेरे मन से या मेरी आत्मा से कोई काम लें तो मुझे महसूस न हो ! मुझे पता ही न लगे लेश मात्र एहसास न हो ! मैं तो बस आपका बना रहूँ ! आपमें खोई रहूँ ! आपके काम आप जानो !

इत्र की तरह बन जाएं । जहां जाएं वहीं वातावरण सुगंधित कर दें । पर किसी को पता भी न चले कि मेहक कहां से आई !!!

विपदाओं में केवल नाम चिन्तन माँगिए

Sept 17, 2018

प्रश्न आया कि बहुत ज्यादा विपदाएँ एक साथ आ गई हैं । काम चलना बहुत कम हो गया है, पैसा बीमारियों पर जा रहा है, बच्चा बुरी संगति में पड़ रहा है । इतने तनाव से बीमारी पर बीमारी ।

पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि विपदा , संकट, दुख में राम नाम बढ़ा देना चाहिए ।

हमें लगता है कि सब खत्म हो जाएगा । किन्तु ऐसा विश्वास रखना है कि स्वामीजी महापाजश्री के बच्चों का कभी कुछ खत्म नहीं होता ।

यह समय पहले नहीं था तो आगे भी नहीं होगा । अपने आप से कहना है कि नहीं ! समय है ! हर दिल की धड़कन के साथ राम नाम बढ़ा देने है । सोच में न बीमारी लानी है, न कमाई लानी है , न कुछ और । केवल राम नाम ।

गुरूजनो से बल माँगना है । कृपा माँगनी है ।

शरीर सोच की वजह से ही खराब हो रहा है । चिन्तन में राम लाना है । नहीं तो न साधना हो पाएगी न घर के कर्तव्य ।

ऐसी हालत में गुरूजनों से प्रार्थना करनी है कि यह बच्चे आपके । आप ही पार लगाएँ ।

राम का चिन्तन करना है। विपदाओं का नहीं । समय पार करने के लिए शक्ति माँगनी है। स्वयं भी यह महसूस करना है कि मेरे भीतर अथाह शक्ति का स्रोत है । मैं कहीं से कमजोर नहीं हूँ । मेरे भीतर राम विराजित हैं । वे आरोग्यता के स्रोत हैं । जब असहनीय पीड़ा उठे – हे राम ! शक्ति दें ! ही केवल माँगना है ।

किन्तु इंतजार नहीं करना कि कब समय यह ठीक होगा ।

राम नाम में लगे रहें ! यही माँगना है। परीक्षाएँ समझिएगा । जितना बन सके नाम पर निर्भर रहना है और, और नाम की याचना करनी है ।

जीवन की परीक्षाएँ

Sept 15, 2018

आज प्रश्न आया कि यदि हम बार बार एक ही परीक्षा में विफल हो रहे हैं तो क्या हमें उसे छोड देना चाहिए राम इच्छा समझ कर या फिर उसी में लगे रहना चाहिए ?

यह प्रश्न दो तरह से देखा जा सकता है । एक, जीवन की परिस्थिति । और दूसरा जो हम पढ़ाई या व्यवसाय के लिए परीक्षा देते हैं।

जीवन की परिस्थितियाँ जो बार बार हमारे सामने आती हैं चाहे लोभ, काम, मान, प्रशंसा , ईर्ष्या , इत्यादि के रूप में वे पूज्य गुरूदेव के अनुसार हमारा सलेबस होती हैं। हर जीव का अपना सलेबस। वह प्रकृति सामने लाती है। ताकि हम उन नकारात्मकताओं से पार हो सकें। जब हम पार हो जाती हैं तो हमारे समक्ष यदि वे आएं भी तो हमें फ़र्क़ नहीं पड़ता । मानो हमने वह सलेबस पास कर लिया। बार बार विफलता यदि दिखती है तो उसके लिए प्रार्थना सबसे सुगम साधन है। नाम जाप बढ़ा देना आवश्यक है। वे विफलताएँ परमेश्वर कृपा से ही केवल दिखती हैं।

भौतिक कार्यों की परीक्षा । किसी exam में या entrance में बार बार विफल हो रहे हैं, सम्पूर्ण मेहनत करने के बावजूद पूर्ण लगन के बावजूद तो समझना आवश्यक है कि यह हमारा मार्ग नहीं । इसमें परेशान होना नहीं बल्कि यह सोचना है कि परमेश्वर ने कुछ भिन्न व सर्वोच्य मेरे लिए सोच रखा है ! पूज्य गुरूदेव ने एक जगह लिखा है कि यदि परमेश्वर ने आपको डॉक्टर नहीं बनाना तो आप कुछ मर्जी कर लीजिए नहीं बन सकते। किन्तु यदि बनाना है तो वह बनने से कोई आपको रोक नहीं सकता । तभी हमने कितनी बार सुना होता है कि नं० कितनी पीछे था किन्तु आगे के सारे परीक्षार्थी आए ही नहीं ! और हम पहले नं० पर आ गए !

इस लिए मेहनत हृदय से संयुक्त हो कर करना है । यदि वह द्वार बंद मिल रहा है तो मानो प्रकृति कहीं और का द्वार खोले बैठी है !

जब उससे संयुक्त हो जाएं तो वे स्वयं ही मार्ग प्रशस्त करते हैं । वे स्वयँ ही सारथी बनते हैं ।

तू मेरा जीवन आसरा मेरे शहनशाह मोरियाँ अँखियाँ दे तारे

मैं ते बस हुन जी रही आं इक तेरे सहारे

राम नाम के सिवाय और क्या?

Sept 13, 2018

प्रश्न आया कि मंदिर में जाकर गेवी देवताओं का ध्यान करना चाहिए या राम गुरूजनों का ?

देखिए जब राम जी का विवाह हो गया न तो उन्होंने सपने में भी सीता जी के इलावा किसी को न देखा । यहाँ तक जब अश्वमेघ यज्ञ में पत्नी की आवश्यकता पड़ी तो भी नहीं ।

सो जब साधक का राम नाम से विवाह हो गया है तो वह कहीं मर्जी किसी परिस्थिति में भी किसी अन्य को न देखता है न मन में लेकर आता है न किसी और को पुकारता है ! उसके राम नाम ही उसके सब कुछ !

इसी लिए साधक को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता वह गुरुद्वारे में है यह कीर्तनों में आमंत्रित ! उसने आँखें बंद की नहीं कि उसके प्यारे आए नहीं !

केवल राम नाम !

सपने में भी न बिसरे नाम

राम राम राम राम राम

मूर्ति पूजा व मंत्र आराधना

Sept 12, 2018

दो प्रश्न कुछ एक ही प्रकार के आए –

हमें लड्डू गोपाल मिले हैं । बहुत भाव चाव से सेवा करती/ करता हूँ ।

क्या राम नाम साधक होकर क्या मुझे इसके रीति रिवाज निभाने हैं या मैं जैसे प्यार करता हूँ वैसे कर सकती हूँ ?

क्योंकि मुझे लड्डू गोपाल से बहुत प्यार है क्या मैं इनका नाम ले सकता हूँ जाप में ?

परम पूज्य श्री स्वामीजी महाराजश्री की साधना मानसिक आराधना है। बहुत उच्च कोटि की साधना है । किन्तु वे अन्य भावों को मना नहीं करते । वे हर साधक की अवस्था व मार्ग को समझते हैं। पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि हम पत्थर में तो भगवान मानते हैं , इंसान की बनाई मूर्ति में भगवान मानते हैं किन्तु परमेश्वर के बनाए इंसानों में नहीं मानते !

बाहर की पूजा जब भीतर की पूजा बन जाए … मानो हम हर पल अपने ईष्ठ के संग मन ही मन लग गए तो समझिए आराधना रंग ला रही है।

मंत्र जाप से , गुरू के मंत्र से ही भीतर ईश्ठ के लिए प्रेम उपजता है । उस मंत्र के विधि पूर्वक जाप से ही भीतर की यात्रा होती है । इसी मंत्र से भीतर शुचिता आती है और आत्मा के ऊपर पड़े आवरण गिरते हैं।

राम मंत्र तो सर्वोच्य मंत्र है । इससे ऊपर तो कुछ नहीं । यह स्वयं भगवान शिव ने कहा है ऐसा परम पूज्य गुरूदेव ने कथाओं में कहा व शास्त्र में वर्णित है। गुरू मंत्र के सिवाय और किसी मंत्र से प्रेम हो ऐसा सपने में भी नहीं सोचना । यही मंत्र तो हमें परमेश्वर से एक करवाएँगे । यही मंत्र तो आखिरी स्वाँस में निकले कि आवागमन से निस्तार मिले । एक साधक का सर्व सहारा सर्व पूँजी यही है ।

सब सहारे छोड जाते हैं पर मंत्र देव राम नाम नहीं छोड़ते संग । बाहर चाहे सब कुछ समाप्त हो जाए पर राम मंत्र एक सच्चे साथी, एक प्रिय सखा , एक माँ बाबा, एक गुरू एक प्रियतम के रूप लेकर संग रहते हैं । मंत्र में तो प्रभु का वास है सो हम कैसे कुछ और लेने की सोच सकते हैं !

किसी भी रूप को आराधिए भौतिक या मानसिक , सब रूप राम से ही आते हैं । राम ही हर रूप का स्रोत हैं । केवल राम ।