Category Archives: Garden series learning

लीला गेंदे के फूलों की

Oct 10, 2018

आज एक साधक जी का संदेश आया । वही जो युवा अवस्था में मन ही मन प्रभु को गेंदे के फूलों का हार चढ़ाते थे और फिर एक बार प्रभु बोले भी कि आज मोतिए का हार पहनाओ ! और अब उनके घर गेंदे के फूल लग आए हुए थे ।

आज वे खिलखिला कर हंस रहे थे । बोले मुझे लगा कि मौसम बदल गया है मैंने सूखे गेंदे सब फेंक भी दिए पर आज देखता हूँ तो गेंदे के पौधे इतनी मात्रा और भर गए और फूल देते जा रहे हैं। और किसी पौधे की जगह तक नहीं छोड़ी !!! और वे छोटे छोटे पौधे नहीं बल्कि बड़े और घने !

मानो कि भगवान कह रहे हैं कि बस तेरी फुलवारी में फूलों की जगह में बस मैं ! न बूटी की जगह न चलने की जगह ! बस गेंदे के पौधे !!!

कहां मैं मन ही मन खेलता उनसे और कहां वे स्वयं गेंदे का रूप इतनी मात्रा में भर कर आ गए।

उन्होंने अपनी पत्नी को बताया कि देखो कैसे गेंदे भरे हुए हैं! पत्नी सिर हिला कर बोली – समता में सब ठीक रहता है!

वे साधक जी खिलखिला कर हंस दिए ! कि भगवन को समता में कैसे भरें ! संत गण कहते हैं भगवन तो नस नस व रोम रोम में ऐसे भर जाते हैं कि छलकते हैं ! बाहर सुगन्ध फैलाते हैं!

अतिश्य धन्यवाद !

प्रभु का प्रेम

Sept 24, 2018

प्रभु का प्रेम

बुद्धुराम अपनी फुलवारी की ओर देख देख कर मंद ही मंद बहुत आनन्दित हो रहा था । इतने गेंदे के फूल अपने आप उग आए हुए थे ! चहूं ओर ! तभी बुद्धुराम के शरीर में सिहरन सी हुई और उसे कुछ स्मरण हो आया ।

बुद्धुराम मन ही मन अपने परमेश्वर की आराधना करता था । अपने भगवान को गंदें के फूलों की माला मन ही मन बना करके पहनाता ! एक दिन प्रभु अचानक बोले – बुद्धुराम ! आज मोतिए का हार पहना ! बुद्धुराम सकपका गया ! कि अरे ! प्रभु बोले !

बुद्धुराम को विवाह से भय लगता था ! वह रोया कि भगवन ! यदि आप संग रहेंगे तो ही करूँगा ! आप विग्रह रूप में मेरे पास आइए ! तो कहीं भी विवाह कर लूँगा ।

उसी वर्ष नव वर्ष पर बुद्धराम के घर भगवान श्रीजगन्नाथ जी का चित्र आया ! बुद्घुराम के हृदय की धड़कन तेज़ थी ! उसने हृदय से लगाया वह चित्र और बोला यह विग्रह नहीं है ! कुछ महीने पश्चात बुद्धुराम का मित्र वृन्दावन से उसके लिए एक प्रभु की फ़ोटो फ़्रेम लाया ! बुद्धुराम जोर की हँसा ! बोला भगवन यह विग्रह नहीं है । पर वह झूम रहा था ! प्रभु के इस खेल के देख कर !

फिर एक दिन उसका एक मित्र आया बोला – तेरे लिए कुछ लाया हूँ ! न जाने क्यों आज हृदय जोर की धड़क रहा था ! काम्पते हाथों से उसने वह उपहार खोला और प्रभु विग्रह रूप में पधारे !

आज गेंदे के फूलों को देख कर लगा प्रभु उस रूप में स्वयं ही आ गए उसके संग रहने ! बाहर भी व भीतर भी !

कैसे धन्यवाद करता वह अपने प्रभु के प्रेम का ! कैसे ! बहुत प्रेम किया प्रभु ने !

सूर्य देव व सत्य स्वरूप

Sept 18, 2016

आज सूर्य देव से पूछा – आप तो अनथक अपने तेजस्वी रूप में रहते हैं । पर कई बार जब काले घने बादल आकर आपके प्रकाश को ढक देते हैं तो आपको कैसा लगता है? और कई बार कितने दिन वे जाने का नाम ही नहीं लेते तो आपको कैसा लगता है?

सूर्य देव मुस्कुराए व बोले – जब मेरा कुछ हो तो मुझे लगे !

प्रकाश मेरे पर तेज देने वाला परमात्मा ! सो यदि अनथक प्रकाश दिया जा रहा है वह केवल उस सर्वशक्तिमान की शक्ति से !

अब रही बादलों की बात ! बादल आना तो उसकी लीला है। पर मैं बादलों को अपना नहीं मानता। यह मेरा प्रकाश जरूर मंद कर देते हैं पर यह मेरे नहीं। मैं जानता हूँ कि मेरा स्वरूप तो प्रकाशमय है, सो इसलिए प्रतीक्षा करता हूँ इनके निकल जाने के लिए !

मैंने चरणवंदना की और धन्यवाद किया 🙏

मेरी आज की सीख 😇

चाहे कितने दुर्गुण दोष दिख रहे हों, यह परमेश्वर की अहेतुकी कृपा है! पर हम अपने सत्य स्वरूप में वे दुर्गुण व विकार नहीं ! हम तो निर्लेप, आनन्दमय, करुणामय, देना जिसका स्वभाव हो, सत्य , पवित्र हैं । उस देवाधिदेव के अंशी।

राम नाम का सम्पूर्ण रंग एक दिन अवश्य चढ़ेगा। राम नाम की मेहक एक दिन सभी बादलों से उभर कर आएगी । राम के श्री चरणों में विलीन हो पाएँगे !!

कई तर गए कइयां ने तर जाना

जिनाने तेरा नाम जपेया 🙏🙏

हर में धन्यवाद

Sept 2, 2016

समुद्र के किनारे चलते चलते एक पत्थर पर आ कर बैठ गई । नीला समुद्र व रेत … यहाँ बोलने को कुछ रह ही नहीं जाता।

तभी धीमे धीमे से आवाज़ सुनाई दी …

ध्यान से देखा तो दो केकड़े आपस में बात कर रहे थे। एक बच्चा था , सम्भवतया दूसरी माँ । बच्चा रो रहा था । माँ शान्त भाव से उसे कह रही थी – धन्यवाद करना है बेटा ! धन्यवाद !

बेटा बोला- पर किस बात का और कैसे? ऐसी बिमारी पिताजी को लग गई है !! सब कुछ बदल गया है।

माँ बोली – देखो ! कितनी ज्यादा व पचीदा प्रक्रियाएँ थी। एक नहीं ५-६ ! हर प्रक्रिया में सफलता पूर्वक लाए प्रभु बाहर! तुम प्रार्थना करते थे न?

बेटा बोला – जी ! पर सब वैसा तो नहीं है !

माँ बोली – यह भी तो हो सकता था कि पहली ही प्रक्रिया के बाद तुम्हारे पिता हमारे बीच न रहते ! फिर ? पर तुम्हारी प्रार्थनाएं स्वीकार हुई ! लेकिन एक भी प्रक्रिया सफल होने पर परमेश्वर को धन्यवाद की आवाज़ भी नहीं आई !

बेटा बोला – हाँ माँ ! क्योंकि मेरी नज़र उनको वैसे ही देखने पर टिकी थी !

माँ ने प्यार से बच्चे को अपने पास किया और उसके सिर पर हाथ फेरा । वे बोली – बेटा! छोटे छोटे क़दम की खुशियां मनाते हैं । धन्यवाद करते हैं व गद् गद् हो जाते हैं कि जिसे हमने कभी नहीं देखा , वह सुनता है !

बच्चा माँ से लिपट गया । हाँ माँ ! कहाँ पहला दिन था ! और कहाँ आज … कितनी सुनी है ! हर बार सुनी है ! कितना डर लगता था । पर फिर सब ठीक हो जाता !

माँ मुस्कुराई ! और लम्बी साँस लेकर कहा – कि जो हम चाहते हैं हमेशा वैसे वहीं होता पर उसमें भी धन्यवाद के लिए कुछ निकल ही जाता है !! परेमश्वर धन्यवाद की अपेक्षा भी नहीं करते पर हमारा तो बनता है !!!

मेरी आज की सीख 😇

चाहे अंधेरा हो या सवेरा , मेरी नज़र बस आप पर ही रहे! चाहे भीड़ हो या अकेली , मेरी नज़र बस आप पर ही रहे ! मेरे प्यारे आपको कभी न भूलूँ ! आपकी रहमतों को कभी न भूलूँ । आपके प्यार दुलार को कभी न भूलूँ । आप मन मंदिर पर सदा सदा छाए रहो .. जैसे लहू भीतर अनवरत बहता है, जैसे साँस अनवरत चलती जाती है वैसे मेरी नज़र आप पर ही रहे !

मेरे रामममममममममममममममम! राममममममममममममम

उनका स्नेह

Aug 31, 2018

हर रोज़ आते रहे मिलने । किसी ने पूछा कि आप इन्हें गुरूजन की ओर संकेत क्यो देती हो ? मैं ठहरी बुद्धु! मेरी कहां इतनी समझ किसी को कुछ मानूँ । वे संवय एहसास दिलाते हैं! एक जब दिखता तो कौन, दो, तब कौन, चार तब कौन !

कल रात अचानक कहीं जाना पड़ा । घर से ऐसे हालात में निकलो तो पता नहीं होता न कि आगे क्या होगा । तो गाडी का मोड़ काटा ही था कि गाडी की बत्तियाँ अंधेरे पर किस पर पड़ी ? हिरण पर !! मानो , मंगल का कामनाएं देने आए !

फिर मध्य रात्री घर आकर कुछ ही घण्टों के पश्चात काम के लिए लिए निकली , तो सुबह सुबह ही पूरा परिवार संग, कि निकल जाएगा तेरा दिन हम हैं संग !

और ऐसा ही हुआ !

अब क्या कहें इसे ! प्रेम ! हमें तो लेश मात्र दिव्यप्रेम करना आता नहीं पर उन्हें आता है ! वह भी अकारण ! रिपोर्ट कार्ड बेकार होते हुए भी कृपा करते हैं ! अब क्या कहें इन्हें !

चरणों में नतमस्तक होकर उन चरणों से प्रेम न करें तो क्या करें ? हमारा उन पर कोई हक़ नहीं किसी तरह का भी नहीं पर वे कैसे हक़ से देते हैं यह उनकी उदारता है , अकारण कृपा है !

बूटियाँ

Aug 27, 2016

जीवन की तेज रफ़्तार में हम छोटी छोटी पर महत्वपूर्ण चीज़ों को धीरे धीरे पीछे छोड़ देते हैं । मेरे जीवन की दिशा भी बदली और उसकी रफ़्तार भी धीरे धीरे बहुत तेज हो गई । साधना की शिक्षा डांवाडोल होती सी प्रतीत हुई ! जो चीज़ें बहुत पसंद उनके लिए समय निकालना ऐसा हो गया मानो, अस्थमा के कारण स्वास आने में तकलीफ़ हो रही हो।

मुझे अपने बग़ीचे की देखभाल करना, फूलों के साथ बैठना बहुत पसंद है। रोज काम पर निकलते हुए मैं देखती उन्हें और लम्बी साँस भरती, कितनी बूटियाँ उग आई थी। हर शनिवार सोचती नहीं आज, नहीं आज। अमेरिका में आम आदमी को हर चीज स्वयं करनी पड़ती है। साफ़ सफाई, घर, कपड़े, बर्तन, बग़ीचा 😊, भोजन, सब कुछ । फिर बच्चे व परिवार ! फिर काम ! सो इस सप्ताह मन ही मन सोच लिया कि नहीं इस शनिवार बस करना है। परमेश्वर ने कृपा की और मुझे स्मरण रहा और मैं चले गई अपने प्यारों के बीच! उनके बीच जाकर वे स्वयमेव चिन्तन आरम्भ करवा देते हैं!!

मेरे पौधे बोले – देख तो कितनी बूटी आ गई है। सारे शरीर पर लिपट गई !

एक बोला, देख मैं ठीक से बढ़ भी नहीं पा रहा। सारा भोजन यह बूटी ही लेती जा रही है !

मैं बोली क्षमा करो! इतना कष्ट दिया। इतना तड़पे!

वे बोले – हाँ बहुत कष्ट होता है बूटियों से! हम अपना अस्तित्व तक भूल जाते हैं। उन बूटियों को ही अपना यथार्थ रूप समझने लगते हैं। और इससे जो पीडा और वेदना होती है , वह अवर्णनीय है !

मैंने कहा चिन्ता न करो! झट से सब साफ़ कर दूँगी ! तभी ज़ोर से चीख़ की आवाज़ सुनाई दी ! देखा तो एक पौधे को ही काट दिया, बूटी समझ कर! एक दम गुरूदेव की बात स्मरण हो आई कि अपनी बूटी सोच समझ कर साफ़ करवाइए ! कहीं यह न हो कि साफ़ करने वाला पौधे और बूटी में भेद न कर पाए और पौधे को क्षति पहुँच जाए!

मैंने क्षमा माँगी पौधे से और बूटियाँ निकालने लग गई। पानी दिया। खाद डाली और सुख की साँस ली !

मेरी आज की सीख 😇

हमारे अंतकर्ण में भी बूटियाँ बहुत जल्दी उगती हैं। और कई बार वे वृक्ष बन जाती हैं। हम सोचते हैं वह साधना का उत्थान है पर वे मायावी हो कर हम से छल करती हैं।

सो गुरुदेव के अनुसार, कुछ कुछ समय पश्चात हमें छोटे छोटे संकल्प लेने चाहिए जिससे यह बूटियाँ साफ़ हो जाएँ और हमारी साधना बिना स्वयं के बनाए अवरोधकों के आगे बढ़ती जाए ।

आप यदि इच्छुक हों तो 41 दिनों के लिए

सर्वशक्तिमय रामजी , अखिल विश्व के नाथ।

शुचिता सत्य सुविश्वास दे , सिर पर धर कर हाथ।।

का 108 की माला पर जाप मेरे साथ कर सकते हैं 😇

सर्व श्री श्री चरणों में 🙏

अनावरण से विलीनता तक

Aug 20, 2018

आज आखिरी दिन था दिन के समय की सैर का ! तीन हिरण मस्ती से खेल रहे थे । हवा में ठण्डक आनी आरम्भ हो गई है । वृक्षों पर नज़र गई तो देखा कि एक ही तरह के वृक्ष लगे हुए थे क़तार मे । किन्तु किसी के पत्तों मे बदलने की प्रक्रिया काफ़ी आरम्भ हो गई कि दिख रही थी और बाक़ियों में प्रत्यक्ष रूप से सामने न आई थी अभी !

इस तरह हम भी होते हैं। सब की भीतर की यात्रा चल रही होती है पर कोई अनावरण के लिए तैयार और कई प्रक्रिया में। कई evergreen ही रहते ! कोई भी मौसम उनमें बदलाव न लेकर आता ।

सम्पूर्ण रूप से पतझड़ से पहले प्रकृति का ऐसा श्रृंगार होता है कि आँखें प्रकृति से हटती ही नहीं ! सम्पूर्ण रूप से अनावरण की तैयारी ! और फिर उसी शोभा के साथ एक एक पत्ता गिर जाता और एक बार फिर आरम्भ होती बर्फ़ीली साधना !

कितनी सुंदर लीला है ! हमारा भी अनावरण चलता जाता है जब तक प्रभु में विलीन न हो जाएं ! सम्पूर्ण रूप से !

तू ही तू ही राम

केवल तू ही राम

घास ..

Aug 7, 2018

आज देखिए किस पर नज़र डलवाई !

घास ! एक एक तिनके में वे बहते हैं ! मुझे बहुत प्रिय है ! करोडों तिनके पर सब राम के ! पैरों के नीचे आती है पर फिर खडी हो जाती है , वह नन्हीं सी जान ! केवल दिव्यता के प्रवाह के कारण !

हर जगह कि पैरों के नीचे नहीं आती .. पर जब आती है तो परवाह नहीं करती !

मेरे नैना आज इन सब को सहलाते गए !

अतिश्य धन्यवाद ! जब आप हस्ताक्षर देते हैं और उसे जब हृदय पहचान जाता है !

प्राकृतिक व मानवी बदलाव

July 30, 2018

बाहर आई, कुछ दिनों पश्चात अपनी फुलवारी देखने को मिली थी । तो नए मेहमान आए हुए थे ! और नई जगह पर ! खुम्ब !! 😀

उनको देखकर लगा कि कैसे हम प्रकृति के बदलाव सहर्ष स्वीकार करते हैं, आनन्द लेते हैं।

किन्तु लोगों के बदलाव नहीं !

उत्तर मिला कि लोगों के प्रति अपेक्षा कहीं न कहीं बैठी होती है! चाहे उन से दूर दूर तक संबंध भी न हो या फिर घनिष्ठ संबंध हो !

तभी महाराज़श्री ने एक साधक की यात्रा में सबसे पहले अपेक्षा से निवृत्ति रखा है। वह ताड़का वध सबसे पहले किया !

काश हम भी जैसे प्रकृति के बदलते हुए रंग कैसे बिन प्रश्न के स्वीकार करते हैं वैसे ही मानवी रंग भी स्वाकारें !

पर यह सम्भव है – केवल राम से संयुक्त होने से !

पर आज इन चार खुम्बों का आनन्द लीजिए !!! 😍

चौथा नीचे छिपा हुआ है! 😍

धरती माँ

28 July , 2018

चलते चलते आज ध्यान धरती माँ पर प्रभु ले गए । उनका ध्यान आते ही हृदय से न जाने कैसी टीस निकली कि अंदर से माँ निकल पड़ा । उनकी सहनशीलता के आगे तो बड़े बड़े अवश्य नत मस्तक होंगे ।

मैंने माँ को प्रणाम किया और गद् गद् होकर कहा – माँ !

माँ मुस्कुराई !

मैंने कहा माँ , कैसा हृदय है आपका!!! इतना विशाल !! समस्त संसार का पोषण करती हो आप । सदियों से जीवन मृत्यु का चक्र देखती हो आप । सृजन व क्षय का पावन क्षेत्र हो आप ! कितने ही युद्ध देखे हैं आपने ! मानव के कर्मों के भागीदार भी बनती हो जब बाढ़ भूकम्प आदि आते हैं। मानवी युद्ध भी सहन करती हो !! माँ कैसे सम्भव है इतनी सहनशक्ति ! हम तो कोई कुछ कह दे या न भी कहे, तो भी सहन नहीं करते पर आप कैसे कर लेती हैं सब !

माँ मुस्कुराईं । बोलीं – मैं उस सहनशीलता के स्रोत से जुड़ी जो हुई हूँ । इसलिए मैं है ही नहीं ! कुछ मेरा है ही नहीं इसलिए महसूस यदि होता भी है तो वे देवाधिदेव सोक लेते हैं ! उनकी लीला है न सारी सो लीला निहारती रहती हूँ ।

माँ हम तो आप पर चलते हैं, खेती इत्यादि करते हैं, और कभी कृतज्ञता भी नहीं व्यक्त की !! पर आप फिर भी कभी रुष्ट नहीं हुई पर देती ही देती गई, अपने प्रेम में लिप्त सभी को स्थान देती जाती हैं !

माँ बोली – यह तो मेरे स्वामी का गुण है ! उन्हें तो केवल देना आता है । प्रेम करना आता है। अपना प्रेम छिपाते हैं और हम जैसों से व्यक्त करवा देते हैं ! इसलिए कभी नज़र ही नहीं जाती, अपेक्षा ही नहीं होती कि कोई कुछ दे !

मेरे अश्रु टप टप बहते जा रहे थे । शाष्टांग प्रणाम किया । हृदय अद्भुत सा शान्त हुआ । बारम्बार प्रणाम कोटि कोटि प्रणाम । मेरा मन किया मैं भी ऐसी बन जाऊँ ।

मेरी आज की सीख 😇

प्रभु से एक्य होने पर उसके गुण स्वयमेव आते जाते हैं, जैसा गुरूजनों ने सिखाया है। सहनशीलता, उसकी लीला को देखना व सराहना, केवल उससे पूर्ण रूप से जुड़े रहने पर ही सम्भव है।

श्री श्री चरणों में 🙏