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जादुई राम – दिव्य आदेश 

जादुई राम डॉ गौतम चैटर्जी 


एक दिव्य आदेश (२)
जब मैं लेट गया तो मुझे स्मरण हुआ कि जादुई राम रा मुझे प्रथम दर्शन कब हुआ । सन् 1995 में मुझे सिर पर घातक चोट लगी जिसके कारण मेरे दिमाग़ का parenchyma टूट गया और मेरे मस्तिष्क के अगले हिस्से से csf तरल निकला जो बाद में ट्यूमर जैसा बन गया, जिसका ऑपरेशन नहीं हो सकता था , क्योंकि वह मस्तिष्क का नाज़ुक हिस्सा था। मेरे मस्तिष्क के काम करने में, वह कोई समस्या नहीं खड़ी कर रहा था , इसलिए मुझे आजीवन उसके साथ ही रहने के लिए कहा गया। MRI रिपोर्ट अच्छी नहीं थी अत: मैंने प्रभु के भरोसे पर छोड़ दिया । 
इस घटना के दो वर्ष बाद मुझे महर्षि डॉ विश्वामित्र जी महाराज से पूर्णिमा की शाम को उनके कक्ष में अकेले दीक्षा मिली। मैं दिव्य प्रकाश से भीग गया और मुझे अवरणनीय राममय दिव्य ज्योति की आलौकिक अनुभूति हुई । कुछ वर्षों के बाद मुझे मस्तिष्क की एक MRI कराने के लिए कहा गया । मैं विस्मित हो गया कि ट्यूमर का नामो निशान नहीं रह गया , जो पहले MRI में था । कुछ वर्षों बाद एक और MRI हुई और ट्यूमर का कोई चिह्न नहीं था । प्रत्येक MRI पर रोगी का नाम , तिथि व वर्ष अंकित किया होता है तो मैं यह प्रमाणित कर सकता हूँ कि यह सीधा जादुई राम का अनुभव था , क्योंकि दोनों MRI फ़िल्म मेरे पास पड़ी हुई है । 
नीचे के बर्थ पर बैठ , मैं यह सब स्मरण कर रहा था , मैंने देखा मेरा गंतव्य मेघनगर स्टेशन एक घण्टे की दूरी पर रह गया । प्रात: क़ालीन दिनचर्या करने के पश्चात मैंने देखा कि मेरी पीठ में कोई दर्द नहीं है , मैं आसानी से चल सकता हूँ और झाबुआ की कठिन यात्रा के लिए तैयार हूँ । अचानक मुझे टी. सी. सरदार जी के पिछली शाम के कहे हुए शब्दों का महत्व समझ आया , ” मेरे पास तेरे दर्द की दवा है ।” उन्होंने मुझे कोई दवाई नहीं दी थी और मैं आश्चर्यचकित था कि मेरी दर्द चली गई । मुझे स्पष्ट हो गया कि अभी से अनन्त जादुई राम की अनुभूति के लिए मैं तैयार हो जाऊं ।

जादुई राम – दिव्य आदेश 

जादुई राम डॉ गौतम चैटर्जी

एक दिव्य आदेश
महर्षि डॉ विश्वामित्र जी महाराज ने ११.३.२०१२ जिस दिन मैं ५४ वर्ष का हुआ मुझे अति अनुपम भेंट दी । मुझे एक सुंदर पंक्ति जिसमें मेरे गुरूजनों की आकृति गढ़ी हुई हो और साथ में चौंका देने वाली आवाज आई ” सर्वशक्तिमते परमात्मने श्री रामाय नम: । ” मैं जाग गया और महर्षि ने मेरे सिर पर हाथ रखते हुए कहा ” मैं तुझे झाबुआ में जादुई राम के दर्शन करवाऊँगा ।” यह स्पष्ट किया कि श्री रामकृष्ण परमहंस ने ही प्रथम ” जादुई राम ” शब्द का उच्चारण व प्रकाश किया था ।
” Reformation through RAM Naam ” ( राम नाम द्वारा सुधार) पुस्तक लिखने के १३ वर्ष के बाद, मुझे दोबारा झाबुआ जाने के लिए कहा गया ।
सन् 1998 में मुझे महर्षि ने झाबुआ जाने के लिए रेलगाड़ी का किराया दिया था । उस समय मेरे पास एक रिसर्च प्रोजैक्ट जो कि तीन दशकों से मेरा लक्ष्य था , को शुरू करने के भी पैसे नहीं थे । परन्तु वह एक राम जी की लीला का दूसरा पहलु है ।
जब मैं घर को जाते हुए उनकी जादुई राम दिखाने की भविष्यवाणी के विषय में विचार कर रहा था तब मैंने संकोच से इसका समीकर्ण श्री रामकृष्ण परमहंस का नरेन को माँ काली के दर्शन कराने से किया । मैंने अपने आपको झँझोड़ा और कहा- निर्विचार होकर और हाथ पसारे दिव्य आनन्द के लिए झाबुआ जाने की तैयारी करो ।
मुझे रीढ़ की हड्डी में बहुत तकलीफ़ है और स्वीप डिस्क भी है । मैंने थोड़ा समय लगाया और फिर अंतत: तीसरे श्रेणी की ए.सीता तत्काल की टिकट करवा कर झाबुआ के लिए चल पड़ा । बहुत अधिक पीठ में तकलीफ़ होने के कारण मैंने कुछ अफ़सरों को प्रार्थना की कि मुझे उच्च श्रेणी में नीचे की बर्थ दिलवा दें । मैं एक भद्र साधु स्वभाव के सरदार जी, जो टी.सी. थे , से मिला और एक अफ़सर का नाम भी लिया की मेर सीट बदलवाने में सहायता करें । उन्होंने आगे से कहा , ” मैं प्रभु को छोड़ कर किसी और को नहीं जानता “। वह कुछ रुके और मुझे बड़ी ग़ौर से देखा , फिर हँसते हुए कहा” मेरे पास आपके दर्द की दवा है और प्रभु के पास आपके लिए पहली श्रेणी के ए. सी में नीचे की बर्थ है ।” उन्होंने इस उपकार के लिए मुझ से कोई अतिरिक्त धन नहीं माँगा । साधु आत्मा सरदारजी मुझे देखकर मुस्कुराते और कुछ स्टेशनो के बाद रेल से उतर गए और मैंने विचारा – क्या मेरे लिए यह जादुई राम के अनुभव की शुरूआत है ?
क्रमश ….

शुभारम्भ से पूर्व …. 

आलौकिक राम आलौकिक झाबुआ डॉ गौतम चैटर्जी


शुभारम्भ से पूर्व 
12 जनवरी , 1988, को पूर्णिमा की शाम 6 बजे महर्षि डॉ विश्वामित्र जी ने मुझ अकेले को ” नाम-दीक्षा” प्रदान कर दिव्यता की बौछारों से सरोबार कर दिया । 
उन्होंने न केवल मुझे आशीर्वाद दिया बल्कि मेरी आन्तरिक सफाई भी की , ताकि मैं परमानन्द की अनुभूति कर सकूँ या सही शब्दों में उस ” आनन्द” को जिसे मैं अब राममय -युक्त शब्द से परिभाषित करूँगा । जबसे मेरा हाथ थाम कर उन्होंने मुझे राम का अनुभव कराया – तबसे उसने मरहम्, सुधारक, आत्मोन्मति की तरह काम किया । यह दिव्य सम्पर्क माया और जीवन के प्रतिवाद से उद्धार करने वाला और मुक्तिदायक बना, जिसने मुझे अंतत: परम गुरू श्री राम में दिव्य विलय होने तक चलते रहने के सन्मार्ग तक पहुँचाया । 
वर्ष २०००, में महर्षि ने मुझे एक विशेष क्षेत्र – झाबुआ की खोज के लिए कहा । मेरी यात्रा इंदौर की केंद्रीय जेल मे राम नाम के साथ हो रहे, दिव्य चमत्कारों की खोज से शुरू हुई । यह महर्षि डॉ विश्वामित्र जी द्वारा उन क़ैदी आत्माओं जो इंदौर केंद्रीय जेल में थे, उनके उद्धार के लिए शुरू की गई एक आध्यात्मिक क्रान्ति थी । 
क्रमश ……

झाबुआ – राम नाम की काशी तीर्थ यात्रा 

झाबुआ – राम नाम की काशी तीर्थ यात्रा आलौकिक राम आलौकिक झाबुआ 

पृष्ठ 46-47

लेखक – डॉ गौतम चैटर्जी 


१४ फ़रवरी . २०१४, सायं ४ बजे , मैंने झाबुआ के लिए रवाना होते हुए अपनी पत्नी से अनायास ही कहा कि मैं झाबुआ तीर्थ पर जा रहा हूँ । महर्षि डॉ विश्वामित्र जी महाराज ने, ऐसी भविष्यवाणी की थी, कि झाबुआ भविष्य में राम नाम की काशी बन जाएगा । हुआ यूँ कि जब महाराज जी झाबुआ में थे , तो आनन्द जी ने मीनाक्षा सोनी को कहा था कि एक दिन झाबुआ काशी तीर्थ की तरह एक पवित्र स्थान बन जाएगा । मीनाक्षी ने महाराज जी को आनन्द जी की यह बात बताई तो उन्होंने तुरन्त जवाब दिया , ” हाँ , यह काशी है और भविष्य

में यह एक और काशी ही बन जाएगा ।”
यह बड़ी दिलचस्प बात है कि श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ने अपने जीवन काल में कल्पना की थी कि मध्यप्रदेश का यह हिस्सा , राम नाम की पवित्र भूमि बन जाएगा। ( कृपया प्रवचन पीयूष के पृष्ठ संख्या १३८ को पढें जो सन् 1988 में प्रकाशित हुआ ) स्वामीजी महाराज ने कहा था, कि राम काज को फैलाने के लिए हमें ऐसे लोग चाहिए जो व्यवसाय में से समय निकाल कर और जो अपने संसारिक करतव्य निभाने के बाद , जितना सम्भव हो अधिक से अधिक समय राम काज करने के लिए समर्पित करें । उन्होंने लोगों को मध्य प्रदेश को इन्दौर के आस पास घूमने और अधिक गहनता से राम काज करने के लिए प्रेरित किया था । 
इसके अतिरिक्त परम पूज्य श्री प्रेम जी महाराज ने 1981-82 में साधना सत्संग के दौरान , घोषित किसी कि धार और झाबुआ दिलों में राम नाम साधना का प्रसार करना चाहिए । आनन्द जी ने मुझे बताया कि परम पूज्यश्री प्रेम जी महाराज एक बार इंदौर से सड़क मार्ग द्वारा झाबुआ के लिए चले थे, पर कुछ अज्ञात कारणों यात्रा पूर्ण न हुई । 
फिर भी, महर्षि स्वामी डॉ विश्वामित्र जी महाराज अपने गुरूजनों के चरणचिन्हों पर चले और 1993 से सतत योजनाबद्ध तरीक़े से राम नाम का प्रसार किया । अब , विशेषतया उनके महानिर्वाण के बाद, लगता है कि वे निश्चित रूप से सूक्ष्म शरीर से वहाँ बहुत काम कर रहे हैं और राम नाम जंगल की आग की तरह फैल रहा है, ऐसे ही उन्होंने मुझे आलौकिक राम आलौकिक झाबुआ दिखाया है ।