Category Archives: Human Birth

मानव जीवन की महत्ता 2c

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr09b)

मानव जीवन की महत्ता 2c

8:29- 13:31

ममता क्या है ? मेरे पन से यह मेरा है, यह मेरा पुत्र है, पुत्री है, मेरा मकान है।जिस किसी के साथ मेरापन जुड़ जाता है, ममत्व कहा जाता है, उसे ममता कहा जाता है। बड़ी अजीब चीज़ है यह ममता। महा अज्ञानता का चिह्न है जैसे अहंता वैसे ममता। आप रोज़ शीशा देखते हो। पर उसमें अपना आप होता नहीं है। ठीक इसी प्रकार से इस संसार में मेरा पन जो आप बनाए हुए हो, वह मेरापन है नहीं। यह मेरापन ही है चाहे वह अहंता के कारण है या ममता के कारण है, जिसके कारण हमें पुनर्जन्म मिलता है। यही हमें बार बार संसार में लाता है। अपने पिछले संबंध निपटाने के लिए । पिछले तो निपट रहे हैं, नए तो न जोड़ो।यही संत महात्मा शिक्षकों रहे हैं।

गुरू नानक देव अपने कुंछ शिष्यों के साथ विचर रहे हैं। मंडी के रास्ते से निकल रहे हैं । आप जानते हैं एक बकरा आया है उसने मोठ की ढेरी में मुँह मारा है। उस ढेरी का जो मालिक है उसने बकरे को मारा । मुँह पर मारा पीठ पर मारा । उसदाडी दो होती है उसको पकड़ कर उसका मुँह खोल कर उसके मुँह में जो दाने उसने लिए हुए थे वह निकाले । इस बात को देख कर गुरू नानक देव हँस रहे हैं। संतों का कुछ पता नहीं लगता कि किस बात से हँस पड़ते हैं और किस बात पर रो पड़ते हैं। उस बात को देखकर बाबा नानक हंसने लग गए। शिष्यों ने पूछा क्या बात है बाबा नानक। उस बकरे को मार पड़ रही है और आप हँस रहे हैं।

गुरू नानक देव कहते हैं कि यह बकरा और आदमी बाप बेटा हैं। यह जो आप स्थान देख रहे हो न यह इसी ने बनाया हुआ है। बाबा नानक स्पष्ट करते हैं कि मुझे याद है कि अनेक प्रकार की देवी देवताओं से मन्नत माँग कर इसे माँगा था । यह देखो यह पुत्र क्या हाल कर रहा है अपने बाप का । अभी भी । बकरे को याद नहीं पर पिछले जन्म में भी इसी स्थान पर आकर यहाँ बैठा करता था। अब भी मार पड़ने के बावजूद भी इसी स्थान पर आकर बैठता था। मोह के कारण । वह अभी गया नहीं है। वह बार बार व्यक्ति को वहाँ लाता है।

इसी को देखकर संत महात्मा अनेक बार यह बात स्पष्ट करते हैं, यह छिपकली चूहे इत्यादि कुछ घरों में होते हैं कुछ घरों में नहीं होते हैं, इन सब का संबंध भी अपने अपने पुराने जन्मों का है। वहीं निभा रहे हैं।

Contd.

मानव जीवन की महत्ता 2a

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr09b)

मानव जीवन की महत्ता 2a

0- 5:12

हमारे पुनर्जन्म का कारण मोह । बार बार इस संसार में आने की कारण मोह।बार बार मानव जन्म मिलता है, भैंस बनते हैं, गधा बनते हैं, कुत्ता बनते हैं, कीड़ा मकौडा बनते हैं। यह बात नहीं, बार बार संसार में आने का कारण मोह । भूत प्रेत बनते हैं। कल करेंगे भक्तजनों चर्चा थोड़ी सी आरम्भ कर दी ताकि आप अपने घरों में जाकर थोड़ा चिन्तन मनन कर सकें।

एक महात्मा जिन्हें विरक्तानन्द कहा जाता। विरकतानन्द ।जीवन भर अपने हाथ से पैसा नहीं छुआ । एक सेवक मिला हुआ है, महात्मा की सेवा करता है। स्वयं भोजन माँग के ले आता है, दोनों खा लेते हैं। यह routine अनेक वर्षों से चला आ रहा है। आज अचानक इस सेवक को कहीं जाने की आवश्यकता पड़ गई है। यह बेचारा जाना नहीं चाहता लेकिन एक विवशता आ गई है तो जाना ही पड़ेगा । महाराज कुछ दिनों के लिए बाहर जाना पड़ेगा। जाओ बेटा कोई बात नहीं। आपके खाने का क्या होगा? महात्मा कहते हैं बेटा, हम तो तेरे खाने पर कभी भी निर्भर नहीं थे। जो उस वक्त देता था वह अब भी देगा। जाओ आप। निश्चिन्त होकर जाओ। मेरी चिन्ता नहीं करनी। लेकिन यह सेवक, यह सब बात चीत सुनने के बावजूद भी बीस रुपये का एक नोट, यह रख लीजिएगा। नहीं बेटा। मैंने जीवन भर पैसे को हाथ नहीं लगाया मैं अभी भी हाथ नहीं लगाऊँगा । मुझे इसकी आवश्यकता नहीं। तू निश्चिन्त रह। पर यह सेवक का मन नहीं मानता, इसलिए, सामने कहीं थोड़ा सा गड्डा सा बनाके उसमें रख देता है। महाराज, यह देख लीजिएगा यह बीस रुपये का नोट यहाँ दबा कर रख दिया है। यदि कभी आपको ज़रूरत पड़े तो किसी को कह दीजिएगा वह ले जाएगा यहाँ से, आपने हाथ नहीं लगाना किसी को बता दीजिएगा कि यहाँ बीस रुपये का नोट पड़ा है वह ले जाएगा , आपके लिए कुछ खाद्य सामग्री ले आएगा। आपका काम चल जाएगा।

ठीक है। परमेश्वर की ऐसी करनी, महात्मा अति रोगी हो गए। इस सेवक के पीछे पीछे उनकी मृत्यु हो गई। महात्मा महासमाधी लेकर मर गए। एक स्थान था जहां गाँव के लोग आकर मत्था इत्यादि टेकते थे। महात्मा के स्थान पर जाते हैं। महात्मा तो है नहीं किसी के खड़ाऊँ चलने की आवाज़ आती है। अब लोग इस बात को जानते हैं कि जब कभी ऐसा हो तो भूत प्रेत होते हैं। कहता कुछ नहीं परेशान नहीं करता लेकिन ऐसी आवाज़ आती है गाँव भर में यह बात फैल गई। बाबा के आश्रम में एक भूत रहता है। इतनी देर में सेवक भी वापिस आ गया। सेवक को जब पता चला तो वह वहाँ गया और एक रात वहाँ ठहरा। उसको भी वहाँ आवाज़ आई । बाबांश्री ! यह कौन है? यह किसके खडांऊं की आवाज़ है? हमें तो लगता है यह आपही की आवाज़ है। हमें तो लगता है कि यह आपही की आवाज़ है। मैं आपकी आवाज़ को बहुत अच्छे से पहचानता हूँ। क्या हुआ है महाराज? बाबा कहते हैं बेटा यह तेरे बीस रुपये की करतूत है। मरते वक्त मेरा मन उस बीस रुपये पर चला गया। यह मेरे लिए रखे हुए हैं, यह मेरा पन जो जुड़ गया, उसने मुझे यह दुर्गति दे दी है। मुझे भूत बना दिया है। इसे तुरन्त निकाल और किसी सत्कर्म में लगा दे, मेरी तुरन्त सद्गति हो जाएगी ।

भक्तगण ! वह विरक्कानन्द, बीस रुपये से मेरेपन को जोड़ा को उसकी यह हालत हुई, तो हमारी सोचिएगा। हम तिजोरियों के साथ मेरापन अपनापन जोड़ें हुए हैं। पत्नी के साथ पति के साथ मकान के साथ मेरा पन जोड़े हुए हैं। इनके साथ उनके साथ मेरा पन जोड़े हुए हैं। हमारा क्या हाल होगा यह परमेश्वर के सिवाय और कोई नहीं जानता ।

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मानव जीवन की महत्ता 1a

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr09a)

मानव जीवन की महत्ता 1a

कोटी कोटी प्रणाम है इस दास का आपश्री के चरणों में । मेरा आपश्री के चरणों में। शास्त्र कहता है, इस विश्व में तीन बातें अति दुर्लभ हैं। सर्वप्रथम मानव योनि की प्राप्ति । अतिदुर्लभ है यह । क्योंकि हम मानव बन चुके हैं, और हमारी बदक़िस्मती है कि हम इसका महत्व नहीं जानते। बेचारे कीड़े मकौडें को पशु पक्षी इनसे पूछ कर देखिए कि किस तरह का जीवन वे व्यतीत करते हैं। सूअर पता नहीं कि ग्लानि महसूस करता है कि नहीं करता । लेकिन आप तो ग्लानि महसूस करते हो कि बेचारा कैसे जीवन व्यतीत करता है । आपको अच्छा नहीं लगता ।किया इधर उधर मारा मारा फिरता है। कितने कितने बच्चे पैदा करता है। क्या जीवन है। आप कितना बुरा महसूस करते हैं शुक्र है परमेश्वर इससे हमें निकाल दिया ।

मानव जन्म अति दुर्लभ । अपना परम सौभाग्य मानना चाहिए जिसे यह योनि प्राप्त हो गई है। फिर मिले न मिले कोई दावा नहीं कर सकता । आप लाख अपनी ओर से दावा करते रहिएगा दान पुण्य करते । परमेश्वर की दृष्टि में वह क्या है वह केवल वह जानता है। उसने आपका पुनर्जन्म करना है। आपके काम काज पर निर्भर नहीं करता । संसार की reading आपके प्रति क्या है वह इस पर निर्भर नहीं करता । उसका अपना computer है, उसका अपना हिसाब किताब है और उससे वह टस से मस नहीं होता ।

ऐसा न समझिए कि हमने कोई ऐसा बहुत बड़ा कार्य किया होगा कि परमात्मा ने विवश हो गया मानव जन्म देने के लिए। यह बात नहीं है। उस देवाधिदेव कृपालु दयालु की कृपा हो गई तो उसे ने यह मानव देह हमें प्रदान कर दी। सच यही है भक्तजनों। आप अपने आपके रिझाने के लिए कुछ भी समझते रहो लेकिन परम सत्य यही है कि उसकी कृपा से यह मानव देह मिला हैं ।एक भक्त को स्वीकार भी ऐसा ही करना चाहिए ।

अब मानव देह जो मिल गया है, तो इसे पशुवत् बिताना तो कोई बुद्धिमत्ता नहीं। परमेश्वर को पछताने का मौक़ा न दीजिएगा। मैंने इनको दो हाथ दो पाँव वाला बनाया है लेकिन काम तो यह चार पाँव वाले कर रहे हैं। उसे अपना करनी पर पछताने का अवसर न दीजिएगा । क्या आप जो कर्म करते हैं वे पशुओं से किस प्रकार भिन्न हैं? यदि भिन्न नहीं हैं तो जो घाटा है तो उसे तुरन्त पूर्ण कर डालिएगा। मानव जन्म प्राप्त करके भी यदि व्यक्ति के मन भारी उत्कण्ठा तडप नहीं जगती , मात्र इच्छा से काम नहीं बनता, यह तडप होनी चाहिए भारी उत्कण्ठा कि मैंने इस जन्म मरण के चक्कर को काट देना है जिसे मोक्ष कहा जाता ही।यदि ऐसी तडप अभी जागृत नहीं हुई तो ऐसे मानव जन्म से भी कोई लाभ नहीं।

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सद्व्यवहार, भक्ति व मुक्ति 

July 26, 2017

प्रश्न : क्या जिसने सद्व्यवहार किया हो सारी उम्र पर परमेश्वर का नाम न जपा हो, क्या वह भव सागर से पार हो सकता है ? 

संसार में बहुत विभिन्न तरह के लोग होते हैं और उनके भीतर क्या होता है हम नहीं कह सकते । 
भव सागर से पार होना मतलब परमेश्वर साक्षात्कार, स्वयं को जानना, जन्म मरण से मुक्ति । 

यह तब सम्भव है जब जीव की आत्मा से हर प्रकार का अनावरण उतर जाता है । उसका अस्तित्व मिट जाता है और वह देह में होते हुए भी सत्य स्वरूप में ही विचर रहा होता है । 

प्रभु ने आश्वासन दिया है कि जो अंत समय मुझे सिमरता जाता है वह मुझे ही पाता है ! 
सद्व्यवहार दो तरह से होता है । एक है अच्छा आचरण सबके प्रति , व्यवहारिक रूप से । एक है सब में परमेश्वर देखकर सद्व्यवहार करना । यह दोनो चीज़ें बाहर के व्यवहार से पता नहीं चल सकती कि भीतर क्या है ! 
परम पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि जब हम बिना भक्ति से अच्छे कर्म करते हैं तो हम ” बासी” खा रहे होते हैं। मानो कि पिछले जन्मों की कमाई खा रहे हैं, कि हमें संस्कार में वह स्वभाव मिला ! 
पर जीवन केवल यहीं तक सीमित नहीं है न ! देह के बाद भी तो यात्रा है ! सो उस यात्रा की तैयारी नहीं हुई ! 
अच्छे कर्म का फल अच्छा । मानो कर्म में ही रहे । कर्म जले नहीं । सो जन्म मरण का चक्कर टूटा नहीं । 
कर्म फल जलने के लिए सतत राम नाम सिमरन व सम्पूर्ण समर्पण की आवश्यकता है । जो यह अंत समय तक कर गया वहाँ सम्भावनाएँ होती है परमेश्वर के श्रीचरणों में विलीन होने की ! 

क्या हम आज मानव बने ? 

May 26, 2017


एक साधक ने बताया कि उन्होंने अपने बच्चे के संग यह प्रक्रिया आरम्भ की । 
बच्चे को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा कि उसकी माँ उसे पशु के साथ तुलना कर रही थी । उसको अपमान जनक लगा !! पर माँ ने बोला कि क्या तुम यह तीन चीज़ें करते हो जो तुम्हें मानव बनाए ? बच्चे के पास कुछ कहने को नहीं था । 
अगले दिन माँ ने दिन के अंत में पूछा – अच्छा तो आज मानव बने ? बच्चे ने माथा सिकोड़ा , पर कहा हाँ ! आज मैं इस कार्य के लिए कृतज्ञ था ! माँ ने कहा – बहुत सुंदर पर यह तो १/३ मानव हुआ !!! बाकि तो पशुवत ही रहे !!! 😀

बच्चे ने कहा – मैं अपने लिए यह कार्य भी किया !!! माँ ने कहा निस्वार्थ !!! अपने लिए नहीं !! बच्चा चुप !! 
अगले दिन फिर, पूछ लिया माँ ने कि आज कितना मानव बने ? 

बच्चा अब ग़ुस्सा नहीं था । बोला – इसके लिए कृतज्ञ था ! इसके लिए !! प्रभु का नाम लिया !! 

माँ ने कहा – अरे वाह! २/३ मानव बन गए !!!! बस १/३ पशु बचा है !!! और निस्वार्थ सेवा ? बोला – मुझे नहीं पता चला कि यह क्या होती है ? 

माँ ने कहा किसी के लिए हृदय से प्रार्थना !! या सहायता !! 
अगले दिन माँ ने पूछा – अच्छा आज कितना मानव बने ?  

बच्चा बोला हाँ !!! आज पूर्ण रूप से मानव बना !!! माँ ने पूछा- सब ? और उल्लेख किया !!! 
मां बोली – यह मत सोचना एक दिन ही मानव बनना है ! यह प्रक्रिया रोज चलेगी !! 😀😀

समय निश्चित है 

May 7, 2017

समय निश्चित है 


हर चीज का समय निश्चित है ….. अगर कोई अहेतुकी कृपा न हो तो …. 
हमारी रोज मर्रा का जीवन में इतनी रफ़्तार होती है कि हर चीज में हमें होता है कि जल्दी निपटे ! चाहे बाज़ार में लम्बी क़तारें , चाहे हरि बत्ती मिले , चाहे बैंक में जल्दी बारी आए ….. जल्दी जल्दी और भाग दौड़ ! 
आज बाज़ार से सामान लेते समय भी यही हाल था । लम्बी क़तारें !!!! तो मैं भी एक क़तार से पहली दूसरी क़तार में हुई कि उसकी रफ़्तार तेज़ है और जब उसमें हुई तो पहले वाली तेज़ होने लग गई ! मुझे मौक़ा मिला और फिर मैं पहले वाली क़तार में हो गई !!! और अचानक सुधि आई ! और मैं अकेले ही अपने हरकतों पर हंसी !!! 
कि भई ! सब ने निकलना है ! सब की बारी आएगी । रूक जाओ । और मैं रूक गई ! उसके पश्चात मेरी दूसरी बग़ल में क़तार बिल्कुल छोटी हो गई । और पीछे पीछे से लोग आगे निकल गए । पर अब मैं न हिली ! मन से भी जाने दिया । रुकी रही कि जब मेरा समय निश्चित है तभी नं० आएगा और तभी निकलूँगी । क्योंकि सब का नं० आना ही है !!
यही बात आध्यात्म की है ! हम सब क़तार में हैं । गुरूजन कृपा करते हैं तो भीतर धुलता है और एक तह कम होती है ! पर उम्र बड़ने से भीतर जल्दी हो जाती है ! पर हमारी जल्दी से नहीं कुछ होता ! वे देवाधिदेव की कृपा कब बरस जाए उसका समय तो वे ही जानें ! कई आत्माएं आएँगी । अलग क़तार में पीछे से आगे निकलती जाएँगी ! 
पर हमें तो धैर्य रखना है , इंतज़ार करना है , राम नाम के संग ! अपनी जगह को देखना है कि कल कहां थे और आज कहां हैं ! परमेश्वर ऐसी नज़र बक्शें ! ऐसी समझ बक्शें कि हर आत्म की अपनी यात्रा है , अपनी गति है ! कोई नहीं रह जाएगा! मैं भी नहीं ! सबका नं० एक दिन आएगा ! आपका आज तो मेरा कल ! केन्द्रबिंदु सदा राम नाम ही रहे ! मन का शुद्धिकरण ही रहे और यह कि करन करावन हार गुरूजन ही हैं राम ही हैं । 
सब आपका व सब आपसे 🙏

विपरीत परिस्थितियों में साधक की सजगता 

April 1, 2017



परिस्थितियां जब अपने मन के अनुसार न हों तो सचेत क्यों रहना है ? 
गुरूजन कहते हैं क्योंकि यह मन उस समय हमें हमारे प्यारे से दूर कर देता हैं !! 

हम उसके अंशी हैं यह विस्मरण करवा देता हैं ! 

हम उस माँ की गोद व चरणों का रस पान कर रहे होते हैं उन सब से दूर करवा देता हैं! 
अब देखना यह है कि वह दिव्य एकतारता पसंद है या संसारी परिस्थिति जिसने द्वार पर दस्तक दी !!! 
राम को चुनें या मन की उस अपूर्ण इच्छा को ?? 

यह चयन हमें ही करना है !!! 
जितना अधिक हम राम को चुनेंगे उतनी अधिक शान्ति के निकट होंगे , जितना संसार के सुधरने को चुनेंगे उतना अशान्त होते जाएंगे !!! 
चयन अपने हाथ में है !!! 
श्री श्री चरणों में

The body and us. 

Feb 5, 2017


Param Pujya Maharishi Dr. Vishwamitr ji Maharajshri says that the body is the greatest negative company for the Soul. He says it does not matter what the scriptures say or what the other saints say, but for Him personally body is the greatest roadblock towards the realizing the Self. 

He says this, because, the contact of the Soul, with the body makes its forget it’s true Self! It becomes a jeevaatma. Hence now work needs to be done to awaken it, whereas a Soul on its own needs no awakening! It is awake ! 

Scriptures consider body as a temple which houses the Lord. As Pujya Maharajshri says that we need to use this body to realize our true Self. If we have not done it then that means we have not utilized its purpose in the first place. 

Maharajshri says that the knots with our own body and that of the others are so strong that it’s impossible to go beyond and see beyond the body and it’s senses. He says that today’s husband will not go out without the wife, nor the wife will leave the husband. They have even started including each others’ names in their own name, such that they become further closer..

But the Soul is way beyond the body, the senses, the mind and the intellect. The sweetness of the Soul cannot be perceived by these senses and the sensations of the body, so say the realized saints. One has to cross all these, to finally taste its Nectar! 

How is it possible to do so ? Pujya Maharajshri says only with RAM Naam, it is possible. Continuous remembrance of the Name in all situations, will help us navigate through these layers of the mind, and take us beyond the intellect to finally removing all these layers and coming one on one with the One that has been there all through! 

Guru does that ! A Guru is the One who pushes the devotee from outside and then pulls him from inside at the same time. It is He who creates such an environment on the outside and gives the devotee such a push and on the inside removes his layers of ignorance, to finally bring him one on one with Himself! 

Such is the most beautiful journey that one has to take or one needs to take in this human form! This human birth needs to become worthwhile only by taking this amazing journey.

You O my Master, in Formless form are holding my hand to lead me through…. Allow me to be patient, with Thy Name O Lord…to wait, till Your job fructifies! Allow me to be in Your Name, inside and outside, O My RAM , every second and every breath! 

All at Thy Lotus. 

What does it mean -not to get trapped in this world? 

Dec 1, 2016


Param Pujya Shri Gurudev Dr. Vishwamitr ji Maharajshri says that we need to live here and not get trapped! 

He explains that getting attached, adding fuel to our desires, wanting more of everything ranging from money, to fame, to praise, are all features that trap us! 

What does being trapped mean? It means that we continue to go in the cycle of birth and death! We no longer go home ! Again and again one has to go through varied life forms of varied births, till one really gets tired of it and finally wants to “go home” ! 

A child whose sanskaaras were pious, started indulging too much in worldly activities. Stopped going for satsangs, or doing chanting of Lord’s name. He somehow would come and brood to his mother, Maa I want to go home! His mother said this is home. But he said I feel uneasy, nothing seems like home! Mother understood. His soul was yearning for Lord’s name, was yearning for Divine connection. But his karmas, kept him engrossed in the worldly things!! 

Pujya Gurudev says, we yearn for true love, we yearn for peace and happiness. We do not want it just for few seconds on some particular days! No we want it’s flow to be unstoppable ! We want it to be permanent! But He says! We look for it in the wrong areas! We try finding it in persons, things etc! But these are Divine attributes! They can only be found with Him or with Souls one with Him! 

Hence, the worldly pursuit makes us trapped instead of allowing us to live here! It does not Allow us to let things that come come and those that go go ! Instead it makes us hold tightly to people and things that can never be ours permanently! We are not the permanent residents .. we are just guests on this planet, with this life, the journey continues even after we shed this form of ours! But we forget it! We hoard things as if we are going to stay here forever ! And then cry at losses, get upset at separations ! 

So that’s why saints keep knocking to wake us up from our slumber- such that we  work for our journey beyond! To remind us that we are just visiting! 

Constant chanting or rememberance of Ram Naam and company of Divine Masters/ Souls, in form or Formless, helps us to constantly remember our objective on this earth!! 

Live, serve and be happy rather than get trapped and be unhappy! 

But to live the way saints teach is nothing but “sadhna”. 

All at Their Lotus feet!! 

अपना असली घर- श्रीरामशरणम् 

Oct 8, 2016 


परम पूज्य श्री डॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री ने कहा- कि पूज्य स्वामीजी ने कितना सुन्दर नाम दिया है श्रीरामशरणम । यह कोई building का नाम नहीं है। यह राम का घर है। श्रीरामशरणम गच्छामि – मैं श्री राम के घर जाता हूँ । श्री राम जो मेरे घर हैं मैं वहाँ जाता हूँ ! 

कितनी उच्च सोच ! कितनी असीम व अनन्त सोच । मात्र building नहीं !! जब कि building तो केवल देह तक सीमित है, गए व आ गए! कोई रह नहीं सकता ! पर असली का श्रीरामशरणम जहाँ से वापिस आना ही नहीं ! Permanent Home !! 

यह मात्र बताया ही नहीं कि हमारा असली घर कौन सा है, नाम भी बताया और वहाँ जाने के लिए संपूर्ण रूप से मार्ग भी प्रशस्त किया !यह भी कहा कि हम असली में कौन हैं !  इंतज़ार करते होंगे वे अपने बच्चों का । माता पिता तो इंतज़ार ही करते रहते जब तक बच्चा घर न लौट आए। संसारी माता पिता सोते नहीं है जब तक बच्चा न घर पहुँच जाए , फिर वे चैन की साँस लेते हैं, यह तो अनश्वर माँ हैं , बाबा हैं !! यह कितने युगों से इंतज़ार कर रहे होंगे ? 

यदि श्री रामशरणम building नहीं , तो कहाँ है यह? जहाँ राम स्थापित हैं ! कहाँ हैं राम विराजमान? दीक्षा के समय क्या हुआ था ? किन्हें हमारे हृदय में स्थापित किया था ? राम को ! पारब्रह्म परमेश्वर श्री राम को ! सो उनका निवास स्थान तो हमारे भीतर हुआ ! 

कैसे जाएँ फिर अपने हृदय में ? क्या मरने के बाद ही जाया जाता हैं यहाँ ? गुरूजन ने राम नाम का जहाज दिया है। वे कहते हैं यह राम नाम जब प्रेम से लिया जाए जब खरबों में अविरल लिया जाए तो भीतर की जन्मों की पर्तों का अनावरण होता है और हमारे घर का रास्ता हमें दिखता जाता है ! देह में रहते , मानव जन्म में ही जा सकते हैं अपने घर ! 

राम नाम के साथ सम्पूर्ण समर्पण कुंजी है अपने घर के ताले की !! सम्पूर्ण सम्पर्ण से तात्पर्य है कि हर पल हर परिस्थिति में हम यह न विस्मरण करें कि हम तो रामांश हैं । देह नहीं, मन नहीं, बुद्धि नहीं .. रामांश ! 

ओ प्यारे गुरूजन आज के पावन अतिमांगलीक शुभावसर पर हम अपने घर , श्रीरामशरणम् , राम के पास जाने की , अपनी माँ की परम गोद में जाने की , देह में रहते हुए जाने की तैयारी करें। यह यात्रा तो केवल गुरूजन की अकारण कृपा से ही सम्भव है। हे माँ रूपी गुरूजन ! ओ बाबा रूपी गुरूजन हम आए शरण आपकी कृपा कीजिए कृपा कीजिए कृपा कीजिए । 

सर्व श्री श्री चरणों में