Oct 1, 2016
मेरे राम, परम पूज्य गुरूजन, श्री श्री चरणों में कोटिश्य प्रणाम । बारम्बार प्रणाम। आज के माँगलिक दिवस पर कृपया अपनी करुणामयी दृष्टि डाल,कृपया स्नेह सुधा बरसाइए।
हमारे गुरूजनों ने हमेशा हमसे अपनी अपेक्षाओं का स्तर सर्वोच्य रखा है। हमारी काबलीयत या हमारे कर्मों को नज़रअंदाज़ करके कितने उच्च स्तर की अपेक्षा की है- कि हम सब अपने घर लौटें। गुरूजनों ने किसी एक को नहीं कहा, या किसी उच्च या वरिष्ठ साधक को नहीं कहा, बल्कि हर एक को कहा है कि तुम्हारा घर तो राम हैं ।
केवल यही कहने में ” कि तुम्हारा घर राम हैं” कितनी गहराई आ जाती है इसमें । पहली कि हममें कोई भेद भाव नहीं। चाहे कोई व्यवसाय के हैं, चाहे कैसे भी मट मैले कर्मों के हैं, किसी भी लिंग के हैं, हर एक का घर राम हैं ।
दूसरी कि हमें हमारी वास्तविकता का बोध करवा रहे हैं। एक को नहीं करवा रहे। ज्ञानी या भक्त साधक को नहीं करवा रहे। हर एक से कह करे हैं कि जहाँ तुम रह रहे हो यह तो शरीर का घर है, न जाने अब तक असंख्य घर व देह बदल चुके हो। यह वास्तविक घर नहीं है। न ही यह देह वास्तविक है। तुम आत्मा हो और केवल परमात्मा का घर ही असली घर है।
तीसरी , कि शान्ति तो अपने घर जाकर ही मिलती है। जितना मर्जी घूम लें, सैर सपाटे कर लें पर विश्राम तो राम के पास, अपने घर ही मिलता है।
चौथी , कि आत्माओं में भेद नहीं है। हर एक आत्मा का स्रोत राम हैं, परम पुरुष परमात्मा हैं और हरेक आत्मा का गंतव्य राम ही हैं । आज नहीं तो कल हर एक आत्मा को अपने घर अपनी माँ की गोद में पहुँचना है।
इसलिए परम पूज्य महाराजश्री ने कहा कि जितनी शीघ्र हम इसका बोध कर सकेंगे कि हमारा असली घर राम हैं , उतनी शीघ्र हम पहुँच पाएँगे। क्योंकि यात्रा बहुत लम्बी है ।
इसी लिए , हे रामइया!!! आज के पावन दिवस से हमारी यात्रा अपनी परम पावनी गोद के लिए आरम्भ कर दीजिए। आपके दिए हुए इस मन मंदिर में आप विराजित हैं, वहाँ के पावन दर्शन करवा हमारी यात्रा रामधाम के लिए आरम्भ कर इस यात्रा को सफल बना दीजिए !
हे माँ ! हे करुणामयी जगजननी! आपश्री के श्री चरणों में असंख्य बार प्रणाम। बारम्बार प्रणाम ।कोटिश्य प्रणाम ।
सर्व श्री श्री चरणों में ।