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श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति, 1a

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महारजश्री के मुखारविंद से

( SRS दिल्ली website pvr10a)

श्री स्वामीजी महारजश्री की साधना पद्धति 1a

1:34- 5:35

चर्चा चल रही थी कि मनुष्य किस प्रकार भव बंधन में फँसा रहता है। बार बार इस संसार में उसे धकेला जाता है, ताकि वह अपनी कामनाओं अपने ममत्व की पूर्ति कर सके। किस योनि में व्यक्ति प्रवेश करता है, यह परमेश्वर के अतिरिक्त और कोई नहीं जानता । आपकी कामना के अनुसार आपकी वासना के अनुसार आपको वह योनी वह स्थान वह घर इत्यादि इत्यादि प्राप्त हो जाता है। अंतिम दो दिनों में, आज के दिन व कल के दिन, इस भव बंधन से छुटकारा कैसे हो, इस बात पर चर्चा की जाएगी। शुभारम्भ करते हैं इस चर्चा का

संत महात्मा, शास्त्र स्वामी जी महाराज सहित बड़े बलाड्य शब्दों में कहते हैं, नाम की उपासना अपने आपमें पर्याप्त है इस भव बंधन से छुड़ाने के लिए। सम्पूर्ण साधना है राम नाम उपासना, स्वामीजी महाराजश्री द्वारा दर्शाई उपासना । हम सब राम नाम के उपासक हैं, यह सम्पूर्ण साधना है अपने आपमें पर्याप्त है, हमें इस रोग से रहित कर देने के लिए। स्वामीजी महाराज द्वारा निर्दिष्ट साधना, एक गृहस्थ को सदग्रस्त बनाती है। देखें किस तरह से यह साधना सम्पूर्ण परिपूर्ण साधना है। एक गृहस्थ को सदग्रस्त बनाती है, एक दुराचारी को सदाचारी बना देती है, और एक जीवात्मा को महात्मा बना देती है। यह साधना अपने आप में सम्पूर्ण परिपूर्ण साधना है।

मुख्य अंग है इसके राम नाम का ज़ाप ।जो जिह्वा से करते हैं होंठों से करते हैं मन से करते हैं। नाम की रटन को नाम के उच्चारण को बार बार ज़ाप कहा जाता है। स्वामिजी महाराज कहते हैं, इसी नाम का ध्यान सर्वोचतम ध्यान है। राम शब्द का ध्यान लगाने के लिए वह कहते हैं। उनके आदेश इस प्रकार के हैं।

राम शब्द का बार बार उच्चारण करते रहिएगा। राम शब्द का ही ध्यान लगाइएगा। राम शब्द का ही कीर्तन करिएगा। राम नाम की कीर्ति को कीर्तन कहा जाता है। कीर्ति जब गाई जाती हैं तो उसे कीर्तन कहा जाता है। व्यक्ति जब अकेला गाता है तो उसे कीर्तन कहा जाता है। जब सब मिल कर गाते हैं तो उसे संकीर्तन कहा जाता है। तीन अंग हो गए इस उपासना के ।

Contd.

नाम के विश्वास से दुर्गुण मुक्त

May 13, 2018

नाम से दुर्गुण मुक्त ऐसा विश्वास पवित्रता प्रदान करता है

केवल यह विश्वास कि नाम से मेरे जन्म जन्मान्तरों के दुर्गुण रूपी रोगों का नाश हो रहा है । ऐसा पूज्यश्री सेवामीजी महाराजश्री ने ” उपासक के आंतरिक जीवन” में समझाया ।

उन्होंने कहा कि नाम की उपासना एक विचार योग है।

केवल यह मानना हर राम नाम के मनके पर कि इस नाम के उच्चारण से मेरे दुर्गुण स्वयमेव दूर होते चले जा रहे हैं । मन में सिमरन से यह भाव लाते जाएं कि मेरे मन के अवरोधक हर रााओऽऽऽऽम के उच्चारण से दूर हो रहे हैं। ऐसा समझाया ।

ऐसा विश्वास रखने से हम सकारात्मक तरंगें दूर दूर तक भी भेज सकते हैं ।

अतिश्य धन्यवाद सदगुरू महाराज

सब आपका प्रंभु

श्रीरामशरणम्

श्रीरामशरणम् 

क्या है पूज्यश्री स्वामीजी सत्यानन्द जी महाराजश्री का श्री रामशरणम् 
आध्यात्मिक शान्ति , प्रेम एवं अनुशासन का केन्द्र है श्री रामशरणम् । 
इसका निर्माण पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री ने किस प्रयोजन से किया ? 
आज के भौतिक युग में मानसिक असंतोष एवं तनाव ज़िन्दगी का अहम् हिस्सा बन चुके हैं, रहने और खाने की उधेड़बुन इंसान को स्वकेन्द्रित कर परमार्थ से दूर करती जा रही है । सेवा , त्याग , समर्पण ,परमार्थ , अनुशासन और प्रेम आदि मानवीय गुण अप्रासंगिक होते जा रहे हैं। हिंसा , घृणा ,विद्वेष मानव जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं । पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति से प्रभावित मानव, भारतीय-संस्कृति , सभ्यता एवं यहाँ की आत्मा में बसे परमात्मा से कोसों दूर होता जा रहा है । 
ऐसी स्थिति में परम पूज्य श्री स्वामी सत्यानन्द जी महाराज के आध्यात्मिक संस्था के सत्संग स्थल उक्त वर्णित तमाम विषमताएँ को दूर कर राम-नाम के माध्यम से मानव मात्र में आध्यात्म एवं प्रेम का संचार कर रहे हैं , वह जन-कल्याणकारी तो है , साथ ही उससे देश का भी उत्थान होगा । 
क्या यह स्थल जन कल्याण के लिए सेवा करता है ? 
यह आध्यात्मिक केन्द्र है सो आध्यात्मिक रूप से ही सेवा की जाती है । सत्संग, सेवा, जाप, ध्यान व प्रार्थनाओं द्वारा जनता के कष्ट निवारण हेतु गुप्त सेवा की जाती है । 

यहाँ जो सेवाएँ की जाती हैं वे गुप्त रूप से होती हैं, उनका जन मानस में प्रचार नहीं किया जाता । 
सेवा व पर कार्य को गुप्त रखना पूज्य स्वामीजी महाराजश्री का सदा उद्देश्य रहा है ! 
कितनी ग़रीबी है, लोग भूखे होते हैं, हस्तपताल नहीं होते , तो श्रीरामशरणम कैसे ऐसे लोगों की कैसे सेवा करता है ? देश के सुधार के लिए क्या योगदान देता है ? 
श्रीरामशरणम आध्यात्मिक केन्द्र है । यहाँ भक्ति व सेवा सिखाई जाती है ! भक्ति से आत्मा का उत्थान होता है जिससे सकारात्मक तरंगों का विस्तार हो । जो व्यक्ति आध्यात्मिक होगा , उसकी शुभ तरंगें दूर दूर तक विस्तृत होती है जिससे बाहरी आभाव के कारण जो मानसिक कष्ट होता है वहाँ सुकून मिलता है और जीवन सुधरने के आसार बनते हैं । 

झाबुआ प्रान्त के विभिन्न गाँव सूखे , ग़रीबी से ओत प्रोत व नकारात्मक गतिविधियों के केन्द्र रहे हैं । मात्र “राम नाम ” से , जीवन व स्थान में बदलाव आ गया। न भौतिक सामग्री का वितरण हुआ, न इलाज के लिए हस्पताल खुले, पर नकारात्मक शक्तियों का पूर्ण रूप से नाश हुआ और जीवन रूपान्तरित हो गया ! 
इसी तरह देश की उन्नति के लिए गुप्त प्रार्थनाएँ की जाती हैं । 
सो आध्यात्मिक केन्द्र को मामूली समझना भूल है । केवल आध्यात्म से ही जीवन की रूप रेखा सदा के लिए बदल सकती है । गुप्त प्रार्थनाओं से अनन्त भौतिक कार्य स्वयमेव ही सुधर सकते हैं । जन मानस में शुभ कर्म करने की प्रेरणा जागती है और गुप्त रूप से सेवाएँ होती जाती हैं । 

यह है पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री की श्रीरामशरणम् 

(कई उतर http://www.shreeramsharnam.org से लिए गए हैं।) 

धरोहर 

Aug 22, 2017

आज चिन्तन की आवश्यकता …
हम अपने बच्चों को श्रीरामशरणम की क्या धरोहर दे कर जाना चाहते हैं … 
ऐसा मंदिर जहाँ भेद भाव नहीं है 

या 

ऐसा मंदिर जहाँ भेद भाव भरपूर है 
जब भेद भाव नहीं होता तो हमारे लिए सब एक होते हैं – नए साधक वरिष्ठ साधक । सबके लिए एक सा सम्मान निकलता है । सबको एक जैसी सेवाएँ मिलती हैं । धन राशी कौन कितनी दे रहा है इसके कारण नज़रें नहीं बदलती । कौन किस औधे पर है इसके कारण जय जय राम और मीठी नहीं होती है । आप मंत्री है या ग़रीब मज़दूर एक सी फ़ोटो व वीडियो बनाई जाती है । भेद भाव नहीं । 

यह बाताएं कि आत्मा एक है , यह आध्यात्मिक केन्द्र है जहाँ केवल आत्मा देखी जाती है । 
या फिर ..
ऐसा मंदिर देकर जाना चाहते हैं जहाँ वरिष्ठ साधकों को अलग मान है और नए तो हैं ही नहीं । ऊँचे साधकों व सामान्य साधकों को अलग सम्मान । प्रिय जनों को विशेष सेवा व सामान्य तो सोच ही नहीं सकता सेवा ! धन राशि मोटी होने पर विशेष स्थान दिया जाता है और विशेष आदर । औधे पर जय जय राम झुक कर होती है । मंत्रियों की प्रणाम करने की वीडियो बनती है पर ग़रीब तो आए या नहीं पता ही नहीं । कि आत्मा तो हम जाप व ध्यान में देखते हैं व्यवहार में हम कुछ अलग हैं । 
कृपया हम सब सोचें कि अपने बच्चों को ,पोते पोतियों को क्या सिखा कर, अपने व्यवहार से क्या धरोहर छोड़ कर जा रहे हैं ! 
बहुत महत्वपूर्ण है इस पर चिन्तन करना , अतिश्य महत्वपूर्ण । 
बच्चे ऐसी चीज़ों पर प्रश्न पूछते हैं …. यही कहते हैं कि बेटा गुरूजन ऐसे नहीं हैं न ही प्रभु । सो जो जैसा करता है करने दो । पर बच्चे अनुकरण करते हैं । यदि वरिष्ठ साधक ऐसा करें बच्चे स्वयमेव वैसा करते हैं । उनके लिए विशेष लोगों के लिए झुकना स्थान देना मन में घर कर जाता है ।  
और फिर यही कहना होता है कि आध्यात्म बहुत व्यक्तिगत है ! बाहर तो सब संसार ही है । 

व्यवहार हमने अपना बदलना है … दूसरे का नहीं …
सो कृपया गम्भीरता से सोचना है हमें … 

🙏🙏

स्वामीजी महाराजश्री और आदर्श भक्त 

स्वामीजी महाराजश्री और आदर्श भक्त 

भक्त के चिन्हों का मनन करना चाहिये । भक्त में तो निरालापन होना चाहिए । जो मायावी संसार में ही रहा , वह तो भक्त नहीं रहा । गीता में सब बातें वे कहीं गई हैं जो व्यवहारिक हैं अर्थात् वास्तविक जीवन में जिन्हें कार्यान्वित किया जा सके। यदि इन्हें याद किया जावे , तो यह संसार में बहुत काम आती हैं । 
भगवान कहते हैं कि जो जन सब प्राणियों के प्रति द्वेष रहित है, सब का मित्र है, दयावान है, ममता रहित है, अहंकार वर्जित है, सुख दुख में सम है , क्षमावान है, जो भी स्थिति हो उसमें सुखी रहता है, जिसने जो निश्चय किया उस पर दृढ़ और डावाँडोल नहीं होता , सदा संतुष्ट रहता है , तथा अपने आत्मा को वश में करने वाला है – ऐसा भक्त मुझे प्यारा है। 
जिससे लोग अशान्त नहीं होते, और जो स्वयं भी किसी से व्याकुल नहीं होता , जिसे वस्तुओं की प्राप्ति से हर्ष न हो,जो किसी की बढती देखकर कुडे न , जिसे अभाव का भय न हो , वह भक्त मुझे प्यारा है। 
भगवान को वीर धीर प्यारे होते हैं, न कि मोही छला। भक्त स्वयं के लिए किसी अन्य से सहायता की अपेक्षा न रखे । केवल राम के सहारे पर रहे । 
भक्ति पवित्र रहने वाला हो । मेल – जोल का , मन का पवित्र हो । जितनी पवित्रता मन व धन की है, उतनी मल कर नहाने की नहीं । 
जो दल- बंदी में नहीं आता, शत्रु और मित्र से भी अलग है, जिसको मन की पीड़ा नहीं । जिसको मन की पीड़ा नहीं । 
यह सत्संग साधारण सत्संगों के समान नहीं । आये, उपदेश सुने और चल दिये । यहाँ आकर जीवन बनाना चाहिए । 
प्रवचन पीयूष 

218- 219

स्वामीजी महाराज और प्रार्थना

परम पूज्यश्री प्रेमजी महाराजश्री के मुखारविंद से ( audio recording)

स्वामीजी महाराज और प्रार्थना

महाराज सबसे प्यार किया करते थे, उन्हें अच्छा लगता था कि दूसरों के कष्ट को निवारण किया जाए , किसी को दुखी देख नहीं सकते थे । किस किस के लिए वो प्रार्थना नहीं करते थे । इज़राइल के लिए जो देश है , दूसरा देश है जिसके साथ कोई दोस्ती नहीं कुछ नहीं उसके लिए अगर इतना ध्यान करके हैं तो अपने देंसनासियों के लिए क्यों नहीं करते होंगे ।

महाराज कहा करते थे, " अपने जो नेता लोग हैं , जब देश के लिए बाहर जाते हैं , उनकी सुरक्षा के लिए मैं प्रार्थना करता हूँ ।

एक बार रामायणी सत्संग था । दिन में दस हज़ार का जाप करना होता था । महाराज मुझसे पूछते," दस हज़ार तो जल्दी खत्म हो जाता है, बाकि समय क्या करते हो? मैंने कहा पहले आप बताइए आप क्या करते हैं ? वे बोले – मैं प्रार्थना करता हूँ। " मैंने कहा – मैं भी प्रार्थना करता हूँ !
महाराज बहुत हँसते , बहुत हँसते ।

महाराज प्रार्थना करते थे सांयकाल समय , और महाराज कहा करते थे," जो कोई दूसरे के लिए प्रार्थना करता है , यदि उस समय वो भी राम नाम का आराधन कर रहा हो तो उसमें, बहुत जल्दी अच्छा प्रभाव पडता है, परमेश्वर बहुत जल्दी सुनते हैं ।"

एक बार महाराज ने कहा " कोई विद्यार्थी हों, उनकी परीक्षा हो, मेहनत करते हों, यह न हो कि मेहनत न करते हों, मुझे बताना, मैं प्रार्थना करूँगा ।
एक मेरी बहन थी, वो MA इंग्लिश की परीक्षा दे रही थी, देनी थी उसने,तो उसके लिए मैंने कहा महाराज से। आप हैरान होंगे जिनके छात्रवृति थी जो बहुत लायक समझे जाते थे उन सब से ज्यादा मार्क्स उसके आए ।"

महाराज कहा करते कि " कोंई अन्याय न हो, जिसमें न्याय हो , प्रार्थना करेंगे तो परमेश्वर अवश्य सुनेंगे ।

प्रार्थना करने के लिए कोई श्लोक नहीं पढने, कोई मंत्र नहीं पढने, अपने शब्दों में परमेश्वर से मांग करके राम राम राम राम करने लग जाएँ तो परमेश्वर कृपा करते हैं, सबकी प्रार्थना सुनते हैं।

विश्वास होना चाहिए कि मैं मांग करूँगा , परमेश्वर सुनेंगे तो परमेश्वर की अपार कृपा होगी ।"

श्री राम हम तेरी चरण शरण में हैं, तेरी कृपा माँगते हैं। परमेश्वर सब पर तेरी कृपा हो कृपा हो कृपा हो

परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री व अन्य मत 

परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री व अन्य मत 

परम पूज्यश्री प्रेम जी महाराजश्री के मुखारविंद से 

( audio recording ) 
महाराज कहा करते थे – Jews को हर देश ने बड़ी बुरी तरह से बर्ताव किया गया । तो महाराज उनके लिए प्रार्थना किया करते कि इसराइल की हालत सुधर जाए, और सब आदर के साथ में रहें , तो आज हम देखते ही हैं , कि इसराइल सब मुसलमान देशों के आस पास कैसे खड़ा हुआ है। 
महाराज लोधी में थे, वहाँ कथा कहा करते, तो वहाँ मुसलमान भी आया करते कथा में । एक पंजाब असेंबली के स्पीकर थे, खान बहादुर शहाबुद्दीन । तीन चार रोज वो आए नहीं कथा सुनने के लिए , तो महाराज ने जस्टिस टेकचन्द जी से पूछा कि खान बहादुर क्यों नहीं आए ? पता लगा कि उनकी तबीयत ठीक नहीं । तो महाराज कहने लगे , हम जाकर देख आयेंगे । महाराज गए वहाँ , तो खान बहादुर बिस्तर में थे । पूछा क्या बात हो गई तो कहने लगे कि मुझे पता चला था डॉक्टरों से कि मालवे में विटामिन सी होती है, और इससे बहुत ख़ून बनता है। मेरे अपने ज़मीनों के माल्टे थे, मैंने खूब रस पिया तो मेरे पाँव में सूजन आ गई । तो महाराज हंस पड़े , कहने लगे, ” कि हर एक चीज पूरे तरीक़े से ही लेना चाहिये , ज्यादा लेने से नुक्सान हुआ करता है” आपने इतना क्यों ज्यादा जींस पी लिया ?”

कहना यह था कि महाराज सबसे प्यार करते थे , महाराज के लिए सब समान थे । 
एक बार डलहौज़ी से महाराज वापिस लौट रहे थे । एक जगह गाड़ियाँ खडी होती है, गेट बन्द होता है। जब दूसरी तरफ़ से गाड़ियाँ आ जाती हैं तो फिर वह गेट खुलता है। तो महाराज कार से उतर आए, टहलने लगे । एक कोई और किसी मत को मानने वाला था, और बहुत अच्छी पोज़ीशन वाला था । वो महाराज के पास आकर खड़ा हो गया । कहने लगा,” महाराज ! राम नाम में क्या रखा है? हमारे गुरू तो पहले बार ही दशव्ं द्वार से पार कर देते हैं!” महाराज ने सोचा , ” इसके अपने मत के मानने वालों में बहुत आदर है, बहुत पोज़ीशन है और बहुत बड़ी नौकरी है। इसके मन में कहीं ऐसा गलत प्रभाव न पड़ा रहे। तो महाराज उससे कहने लगे , ” अगर तू चाहे ( उनके गुरू को गुज़रे हुए देर हो गई थी) इसलिए उन्हें कहने लगे ” अगर तू चाहे तो तेरे गुरू से मैं अब कहलवा दूँ कि वो कहां है ? ” इतनी बात सुन कर वो शर्मिंदा हो गए और चुप हो गए । 
कहना यह था ,” प्राय लोग अपने आप को दूसरों से बड़ा मानते है, समझते हैं, कि हम पूर्ण हैं। परन्तु कौन कैसा है, भगवान जानते हैं। कोई अभिमान क्यूँ करे? दूसरे को छोटा क्यों कहे? परमेश्वर की कृपा तो सब पर हुआ करती है। और परमेश्वर को सभी प्यारे हुआ करते है।” 
क्रमश: ….

FAQ – पूज्य स्वामीजी की साधना व देवी देवता का पूजन 


प्रश्न : मुझे कल किसी ने श्री अमृतवाणी सत्संग पर आमंत्रित किया था । पर श्री अमृतवाणी के पश्चात उन्होंने हनुमान चालीसा का पाठ किया ! मुझे समझ नहीं आया कि यह क्या ? 
परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री ने बहुत स्पष्ट कहा है कि परम पूज्य श्री स्वामीजी महाराजश्री की साधना सम्पूर्ण साधना है । मतलब कि जो उनकी साधना पद्दति है उसमें कुछ और जोड़ने की आवश्यकता नहीं ! वह हमें परम धाम तक पहुँचा देगी । 

परम पूज्य महाराजश्री फिर यह कहते हैं कि जिसे राम के सिवाय कुछ चाहिए वह इधर उधर जाता है । इधर मत्था टेकता है उधर टेकता है । पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री ने भी कहा है प्रवचन पीयूष में कि यह अनन्य भक्ति नहीं । 
तो सत्संग में यदि हम राम व गुरूजनों के सिवाय किसी अन्य देवता का हम आह्वाहन करते हैं इसके दो मतलब है – 
१) हमें राम पर विश्वास नहीं । हमें संशय है कि राम सक्ष्म नहीं वह देने के लिए जिसके हम इच्छुक हैं इसलिए हम अन्य देवता को बुला रहे हैं । 
२) हमें परमेश्वर से उनके सिवाय कुछ और चाहिए ! 
पर आप यह भी कह सकते हैं कि पूज्य स्वामीजी ने हनुमान जी के बारे में श्री भक्ति प्रकाश जी में उल्लेख किया है ! सो हम चालीसा क्यों न पढें ? 
हम भक्ति प्रकाश जी में वह भाग पढ सकते हैं ! तब हम पूज्य स्वामीजी का ही आह्वाहन कर रहे हैं कि हमें महाराज , हनुमान जी महाराज जैसे गुणों से भर दीजिए! हमें उन जैसा सेवक बनाइए व उन जैसी भक्ति दीजिए ! उन जैसी राम में आस्था व राम से प्रेम दीजिए ! यहाँ हमारी अनन्य भक्ति स्थिर रहती है । 

पर जब हम हनुमान चालीसा का पाठ श्री अमृतवाणी सत्संग में कर हनुमान जी महाराज का आह्नवान करते हैं तो हम अपने राम व अपने गुरूजनों को गौण बना देते हैं ! 
देखिए ! पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री ने तो श्री अधिष्ठान जी के साथ भी कोई चित्र रखने को मना किया है ! मानो कि वे बता रहे हैं कि राम से ऊपर कुछ नहीं ! राम सर्वोच्य है ! राम में सब देवी देवताओं व अन्य सब का वास है । उनके बराबर कुछ नही!
यह था कि जब कोई श्री अमृतवाणी सत्संग मे पूज्यश्री स्वामीजी महाराज के सिवाय अन्य देवी देवताओं का पाठ करता है तो उसका क्या तात्पर्य है । 
स्वामीजी महाराज की साधना को कोई अन्य सहारों की आवश्यकता नहीं । 
पूज्य महाराजश्री ने तो यहाँ तक कहा है कि जो साधक सच्चे होते हैं अपनी साधना में , हनुमान जी महाराज स्वयं बिन माँगे सहायता करते हैं । 
किसी अन्य को कहना कठिन है , हम न करें ऐसे कार्य यही उत्तम है । यदि प्रेम पूर्वक कहा जा सकता है तो कह सकते है । 

आध्यात्म में रूपान्तरण व उत्थान 

May 29, 2017

आध्यात्म में रूपान्तरण व उत्थान 

छोटी छोटी बातें ही दिखाती हैं आध्यात्मिक उन्नति ! पर वे आसानी से नहीं आई होती ! गुरूतत्व की शक्ति लगी होती है उसमें ! बहुत शक्ति ! 
Online सत्संग में गुरूजनों की पिक्चर, श्री अधिष्ठान जी की पिक्चर या कुछ और पर बहुत बार वाद विवाद भी छिड़ जाता … 
ऐसा सत्संगों में भी होता है मत भेद के कारण अपमान के कारण वाद विवाद व मन मुटाव हो जाना 
और इन बातों में हम अपना मूल उद्देश्य खो बैठते … राम में लीन रहना …. क्षमा करना … व सेवा करना ! 
सो ऐसे ही एक साधक ने गुरूजनों की सेवा में पोस्ट रखा , जिसके कारण मतभेद जाग गया ! जब कि साधक बहुत ध्यान से इन बातों की ओर स्वयं भी बहुत सजग हैं पर फिर भी किसी और को वह दृष्टि न भाई ! सो बार बार आते गए पोस्ट हटाइए हटाइए … 
उन साधक ने कहा – कि मेरे कारण या उस पोस्ट के कारण आपको कष्ट हो रहा है सो वह हटाया जा रहा है किन्तु मुझे वह गलत नहीं लगा ! 
साधक को यह कहने में न ही देर लगी न ही हटाने में कुछ देर …. क्योंकि झुकना आ गया ! यह आ गया कि ठीक है आप परेशान न हों , क्योंकि आपकी दृष्टि ऐसी है कोई बात नहीं ! कोई फ़र्क़ नहीं पडता !! 
कितना बडा रूपान्तरण !!! 

हम सब को झुकना सिखाएँ गुरूजन ! हम सब यह भी मानें कि दूसरा भी गुरूजन से प्रेम करता है व उनके नियम निभाता है केवल हम ही नहीं !!! 

प्रभु हम सब की भीतर की बेड़ियाँ खोलिए मेरे प्यारे !

श्रीरामशरणम् के अनूठे साधक

May 26, 2017

श्रीरामशरणम् के अनूठे साधक

एक मुस्कुराता हुआ चेहरा आपसे मिलेगा । मधुर भाषी और तभी खिलखिला कर हंसी ! हाल चाल । कोई कष्ट हो तो दवाई भी मिल जाएगी । कोई और कष्ट हो तो समय देकर बात चीत भी हो जाएगी और कुछ और चाहिए तो गाडी भी भी तैयार । 

पर उस मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे , उस गहन एकांकी में केवल गुरूजन । 

पति ने गिड़गिड़ा कर हाथ माँगा । दे दिया । पर कुछ ही माह के पश्चात पति को किसी और के संग अश्लील वार्तालाप करते पकड़ लिया !! ससुराल माइके से बहुत भिन्न । डॉक्टर होते हुए , रूढी वादी, पुराने ख्यालात व लालची लोगों में किसी तरह सांसें निकाली पर पति की अश्लील हरकत से निकल आई । फिर शुरू हुआ एक पीडा जनक सफ़र । एक अकेली सुंदर स्त्री वह भी डॉक्टर का भारतीय समाज में चलना कितनि कठिन वह केवल शायद वह ही बता सकती है । 
काम पर राजनैतिक सिफ़ारिशी हर समय पीछे पड़े रहते । ईर्ष्या व द्वेष के कारण गुरूजनों के एक एक शिक्षा पर अमल करने वाली पर न जाने कैसे कैसे गलत लांछन । पर गुरूजनों ने हाथ कस कर पकड़ा । शायद पकड़ अब और कस ली ! सेवा तो करती थी पर अब दिव्यता रे स्रोत से जुड़ गई । 
घर पर ८० वर्ष से भी ऊपर बुज़ुर्ग माता पिता । भाई बहन घर पर न होने के बाराबर । उनकी सेवा का कार्य भी इनके नाज़ुक कंधों पर । पर राम नाम के साधक व गुरूजनों के प्रेमियों के पास शायद अनूठी दिव्य शक्ति होती है !!! 
घर के अलग परेशानियों से जूझती , अपने निजी शारीरिक कष्टों से अलग जूझती, कार्य क्षेत्र में नकारात्मक शक्तियों से अलग जूझती वह गुरूजनों की अपनी बेटी । सेवा सदन बनाना चाहती थी । सेवा सदन बना दिया । कितनी चीज़ों का भीतर भय था , राम नाम ने बाल्म दिया । पर समस्याएँ कम नहीं हुई । कितने वर्षों से बरक़रार ! राम गुरूजनों से प्रेम बढता गया !! और मुस्कुराहट जारी है ! 
राम कृपा से ही कोई अपने को संसार में बिल्कुल अकेला पर गुरूजनों के बिल्कुल निकट पाता है । 
परमेश्वर से पर प्रार्थना है कि दया करें । कार्य क्षेत्र मे पूर्ण सम्मान मिले ! मान प्रतिष्ठा प्राप्त हो । अपने सम्मान हेतु व मिथ्या दोषारोपण के कारण हर रोज नई मुहिम न छेड़नी पड़े । दया करें , कृपा करें । अपने श्री चरणों में अखण्ड सुमिरन प्रदान करें ! अपने कार्यों में ही कालान्तर में भी डुबों दें । 
ऐसे अनूठे साधकों के श्री चरणों में वंदना