Category Archives: path of Swamiji’s sadhna

माँ और बच्चा 

May 12, 2017 


मां और बच्चा 
एक साधक से …. 
इन साधक की माँ पिछले वर्ष पहले बहुत बिमार हो गई । अनन्त पीड़ा । वे पति पत्नी रहते । बच्चे बाहर । पति देखभाल करते । पर पत्नी पीडा में स्वयमेव कहराती , रात रात जागती ! बहुत पीड़ाजनक स्थिती थी । इनका परिवार साधक परिवार । अपने बच्चे से बिलख कर कहती प्रार्थना कर ! बच्चा कहता कि मां सह लो । कुछ न माँगो । माँ कुछ दिनों के बाद फिर पीडा में रात को फ़ोन करती – बेटा तू प्रार्थना नहीं कर रहा कि मै ठीक हो जाऊं । कर प्रार्थना न ! बच्चा फिर कहता मां , आपमें बहुत सहनशक्ति है ! कृपया सह लो ! राम राम बोलो । पर माँगना न कुछ !  
छोटे भाई ने कहा तुम इस स्थिति में क्यों उनको ऐसा कहते हो ! तुम प्रार्थना में नाम लिखवाओ ! पर वे केवल शक्ति ही माँगते ! कितने माह यही कहते निकल गए और उन्हें सहते ! 
एक दिन ऐसा लगा कि उनकी माँ अब शायद न रहेंगी , तो छोटे के कहने पर प्रार्थना दे दी । पर स्वयं प्रभु से ये ही कहा कि पीडा में न कृपया जाएँ शान्ति से जाएँ । 
माँ कुछ देर बाद ठीक होने लग गई । और फिर काफ़ी बेहतर ! 
उनकी माँ एक ऐसी साधक हैं जो इस उम्र में भी सीखना पसंद करती हैं । गुरूजनों की कृपा से वे अपने मन के प्रति अति सजग हो गई हैं । करूणा उन में संतों जैसी और सेवा भाव भी । उस बिमारी के दौरान उन्होंने अपने बच्चे की बात मानी और एक बार भी प्रभु से ठीक होने के लिए कुछ न माँगा । 
कुछ माह ठीक निकले ! अब वे फिर बिमार हो गई । बिस्तर से क्या ग्लास पकड़ते हुए भी थक जाती । पर चेहरा शान्त है और मुस्कुरा कर कहती है कि अब जान गई हूँ कि मुझे प्रभु से कुछ नहीं कहना ! 

और फिर कुछ आध्यात्मिक सीखने हेतु प्रश्न पूछ देतीं ! 
यह साधक अपने माता पिता के लिए कभी कुछ नहीं कर पाए । पर अपनी मां से यह सुनकर कि अब ” मैं जान गई हूँ कि मुझे ठीक होने के लिए कुछ नहीं माँगना ” मानो गुरूजनों ने उन में शक्ति भर कर जो कहलवाया वह पूर्ण रूप से रंग लाया ! 
गुरूजनों के उपदेश अपने स्वार्थ हेतु तोड़ने मरोड़ने नहीं चाहिए ! गुरूजन की अपार कृपा है कि वे बहुत रूप लेकर हमें सजग करते रहते हैं । उनका काहा मानना न मानना हमारे हाथ में है । पर वे सदा सत्य ही सिखाते रहेंगे ! हर परिस्थिति में ! 

यह अन्तर है वृक्ष और सन्त में ! केवल यह ! संत वृक्ष की भाँति बिना भेद भाव के बिना प्रश्न किए देते रहते हैं पर वृक्ष से भिन्न वे हर पल अपनों का मार्ग दर्शन करते थकते नहीं ! 
 सब आपका प्रभु सब आपसे

श्री रामशरणम् के अनूठे साधक 

May 10, 2017


श्री रामशरणम् के अनूठे साधक 
कुछ दश्क पीछे चलते हैं । एक बहुत ही सामान्य वर्ग के अध्यापक। बच्चों में अत्याधिक लोक प्रिय। जब भी देखो पूर्ण रूप से मुस्कुराता चेहरा । एक सैकन्ड भी मुस्कुराहट बंद नहीं होती ! पर उस मुस्कुराहट के पीछे अनन्त दुख व कष्ट ।पिताजी का सिर पर साया नहीं । भाई इतना कमाता नहीं और भाभी का झगड़ा । पर इन का सौम्य स्वभाव । स्कूल से मामूली वेतन मिलता और घर पर टयूशन करती ! छोटी होते हुए भी अपने भाई का विवाह इन्होंने करवाया ! 
जीवन ऐसा चल रहा था तो इनकी मुलाक़ात एक सह अध्यापक से हुई ! वह अपने गुरूजनों का राम नाम की खूब बातें करतीं । छुट्टी लेकर हरिद्वार सत्संग पर गई तो वापिस आकर इन्हें बताएँ सब कुछ । अब यह सोचें कि यह कौन से मज़े की बात कर रही हैं ? क्या है यह मज़ा ? 
कृपा स्वरूप दीक्षा ली और हरिद्वार सत्संग में नाम आया । पहले दिन नील धारा गए तो गंगा जी में परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री विराजमान खुली आँखों से देखे । डर गए कि यह क्या ! भगदड़ मच गई कि स्वामीजी के दर्शन हो रहे हैं ! तीनों दिन दर्शन होते रहे सब साधकों को !! तीसरे दिन धुँधले हुए ! 
वापिस आए हँसते हुए व नैनों में अश्रु लिए और बोले – अब पता लगा कि किस मज़े की बात कर रहे हैं ! 
विवाह नहीं हो रहा था । उम्र बढ़ चुकी थी ! पूज्यश्री महाराजश्री को इनकी सखी ने पत्र लिखा तो महाराजश्री ने कहा कि ये तो कोई तपस्विनी हैं ! 
विवाह हुआ और अथाह दुखों का पहाड़ टूट पड़ा ! बहुत ही पीडा जनक व्यवहार और पति पूर्ण रूप से खोटा । बिटिया का जन्म हुआ ! वेदनाएँ कम न हुई ! बिटिया की सुरक्षा के लिए अलग हो गई !  
कितने वर्ष बीत गए पता चला कि पति को गहन बिमारी हो गई है और उसके घर वालों ने साथ छोड़ दिया ! हस्पताल के चक्कर लगाए दवा दारू करवाई और जाने दिया । 
महाराजश्री के आशीर्वाद से छोटी आयु में प्रीनसीपल लग गए ।महाराजश्री बोले – अपनी माँ और अपनी बिटिया की सेवा में जीवन बिताइए । आमदनी अच्छी हो गई बिटिया को पर शहर में डाला । रोज सात घण्टे जाना और सात घण्टे आने का सफ़र करती ! तब ४ वर्ष की बिटिया ने कहा – मैं नानी के साथ रह लूँगी । आप ऐसे सफ़र न करें ! अपना घर भी हो गया था शहर में । 
बच्ची को जब पूज्य गुरूदेव के दर्शन करवाने गए ३-४ वर्ष की आयु में तो बच्ची महाराजश्री की टांगों से लिपट गई ! उसके लिए वे पापा थे ! पूज्य गुरूदेव ने भी बच्ची को अलग करने का कोई प्रयत्न न किया ! प्यार बरसाते रहे !
स्कूल के बाद जितना समय मिलता जाप मे निकलता । अनन्त जाप ! साधना में में ५ दिन निकलते और बच्ची को मिलने छुट्टी में फिर जाते ! 
आज मात्र ४५ वर्ष पर जब डॉक्टर ने blood cancer बताया तो बोले कि ” महाराजश्री ने अपने लिए माँगने के लिए मना किया है सो मांग नहीं सकती ” तब बच्ची ने उनकी कितने वर्ष पुरानी सखी को मैसेज भेजा कि कृपया प्रार्थना करें ।   
गुरूदेव ही स्मरण कर रहे होंगे जो उनके बारे में इतना विस्तार से लिखवाया 
सब आपसे प्रभु सब आपका 🙏

सत्संग में साधक २ 

April 10, 2017


भाग २
हम विदेश में रहते हैं । हमारा महीने में एक बार सत्संग होता है । हम बहुत ही खुश थे कि हमें गुरूजन सत्संग देने लगे । पर जब सब अच्छा चल रहा था कि कुछ गड़बड़ आरम्भ हो गई । हम सब प्रेम से सत्संग करना चाहते हैं मिल कर सत्संग करना चाहते हैं ताकि गुरूजन हमारे यहाँ भी आएं सत्संग पर और कृपा बरसाएँ सब पर । कुछ प्रश्न हैं कृपया समाधान कर दीजिए ……
क्या हम श्री अमृतवाणी सत्संग में श्री हनुमान चालीसा , दुर्गा चालीसा इत्यादि का पाठ कर सकते हैं ?
परम पूज्यश्री महाराजश्री ने केवल परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री के ग्रंथों का पाठ श्री अमृतवाणी सत्संग में कहा है ।

साधक अलग से किसी और दिन यह सब पाठ कर सकते हैं । पर श्री अमृतवाणी सत्संग के दौरान नहीं ।
हम क्या करें जब उम्र में बड़े साधक केवल अपनी मन मानी करें और नियमों का पालन न करें?
परम पूज्यश्री महाराजश्री ने कहा है – approach the Lord! Have direct connection with Him.

ऐसे साधकों की स्थिति बहुत दयनीय है । कृपया इन पर रुष्ठ न हों। कितने वर्ष हो गए और गुरूजनों के प्रेम के पात्र बने, किन्तु फिर भी …  पर यदि प्रेम पूर्वक नियम पढ़वा सकें बता सकें तो बहुत अच्छा है। पर यदि यह सम्भव नहीं तो गुरूजनों से कृपया प्रार्थना कीजिए कि प्रभु दया कीजिए इन पर ! कृपा कीजिए । जीवन की सांय चल रही है बहुतों की , अपनी मेहर बक्शें ।
कृपया हमें सदा स्मरण रखना है कि स्वामीजी महाराजश्री का मूल है
वृद्धि आस्तिक भाव की शुभ मंगल संचार

अभ्युदय सद्धर्म का राम नाम विस्तार
संकीर्तन साधना का एक अंग है । और उसमें राममय प्रेममय सुरमय व भावनामय प्रवाह होना अनिवार्य है ।

सत्संग में हम श्री हनुमान चालीसा क्यों नहीं पढ सकते । पूज्य स्वामीजी महाराजश्री ने तो स्वयं हनुमान जी का उल्लेख श्री भक्ति प्रकाश में किया है तो हम क्यों वहीं पढ सकते ?

पूज्यश्री महाराजश्री के अनुसार परम पूज्य श्री स्वामीजी की साधना सम्पूर्ण साधना है परिपूर्ण साधना है । इसमें किसी और साधन को जोड़ने की आवश्यकता नहीं ! सभी देवी देवता ” राम” में विराजते हैं । पूज्य महाराजश्री के अनुसार एक श्रध्य युक्त लगनशील साधक की मदद तो हनुमान जी बिन बुलाए करने आते हैं व अन्य देवता, सूक्ष्म संतों से भी राम नाम के उपासक को सहायता प्राप्त होती है । पूज्य स्वामीजी महाराजश्री की साधना यदि कोई साधक अक्षाऱर करे तो वह जीते जी राम धाम पहुँच सकता है ।

इसलिए राम नाम के उपासक को उनके सत्संग में , जो कि साधना का एक अभिन्न अंग है, उसमें केवल उन्हें के ग्रंथों का पाठ करने को कहा गया है ।

यदि कोई इच्छुक हो तो वह अलग से इनका पाठ कर सकता है , किसी भी चीज को पूज्य स्वामीजी महाराजश्री ने मना नहीं किया हैं।

श्री श्री चरणों में 🙏🙏

स्वामी जी महाराज जी की साधना 

April 10, 2017

परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री के मुखारविंद से 
स्वामी जी महाराज जी की साधना 
स्वामी जी महाराज की साधना परिपूर्ण साधना , सम्पूर्ण साधना है । यह एक गृहस्थ को सद्गृहस्थ बना देती है। एक दुराचारी को सदाचारी बना देती है। और एक जीवात्मा को महात्मा बना देती है। यह साधना अपने आप में परिपूर्ण साधना है । 
मुख्य अंग हैं इसके राम नाम का जाप जो आप जिह्वा से करते हैं, होंठों से करते हैं या मन ही मन करते हैं । नाम की रटन को जाप कहा जाता है । स्वामीजी महाराज कहते हैं इसी नाम का ध्यान सर्वोत्तम ध्यान है। राम शब्द का ही ध्यान लगाने को वे कहते हैं । उनके उपदेश इस प्रकार के हैं – 

राम नाम का उच्चारण करते रहिएगा । राम नाम का ध्यान लगाइएगा और राम नाम का ही कीर्तन करिएगा । राम नाम की कीर्ति को कीर्तन कहा जाता है । व्यक्ति जब अकेला गाता है तो वह कीतर्न है जब सब मिलके गाते हैं तो वह संकीर्तन है । 

तीन अंग हो गए इस उपासना के । 
क्या सौंदर्य है इस उपासना में । एक मंत्री भी इसे कर सकता है और एक चपरासी भी इस साधना को कर सकता है । एक कर्मचारी भी कर सकता है, एक व्यापारी भी कर सकता है, एक बूढ़ा भी कर सकता है, एक बच्चा भी कर सकता है । महिला भी कर सकती है, पुरुष भी कर सकता है, देशी भी कर सकता है विदेशी भी कर सकता है । एक रोगी भी कर सकता है एक निरोग भी कर सकता है । कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई नहीं देता जो नाम की उपासना नहीं कर सकता । पापी भी कर सकता है पुण्य आत्मा भी कर सकता है, देवी देवता भी कर सकता है व करते हैं । 
स्वामीजी महाराज की उपासना को समझना कठिन नहीं है। 

यही कहा है उन्होंने कि आप जो कुछ भी करते हैं , करते करते राम राम राम राम जपते रहिएगा । 
स्वामीजी महाराज ने दीक्षा देते वक्त हमसे कुछ छुड़ाया नहीं । कुछ नहीं कहते कि छोड़िएगा । यह कहते हैं करिएगा । नाम की उपासना करिएगा । आप लोहार हैं। भट्टी से साथ बैठ कर राम राम जपते रहिएगा, यह स्वामीजी की साधना। आप सोनार हैं। आभूषण बना रहे हैं, बनाते रहिएगा , खूब बनाइएगा, साथ ही साथ नाम की उपासना भी खूब करिएगा । आप गृहिणी हैं, खूब चपाती बनाइएगा, खूब कर्छी चलाइएगा, पर साथ ही साथ राम नाम की उपासना भी करिएगा । आप किसान हैं । खेत जोतिएगा खूब । पर साथ ही साथ उसी speed से राम नाम भी जपते जाइएगा । यह स्वामीजी महाराज की साधना है । आप व्यापारी हैं । दुकान पर बैठे हुए साथ ही साथ नाम की उपासना करिएगा । 
यदि हर काम नाम की उपासना करते हुए करना है तो चोरी करते हुए , शराब पीते हुए भी क्या नाम की उपासना करनी है ? अगर सच्चे उपासक हो तो हाँ भई ! चोरी करते हुए , व्यभिचार करते हुए, शराब पीते हुए भी नाम की उपासना करते रहो । भक्त जनों बहुत जल्दी छूट जाएगी यह । एक ही चीज रह सकती है । 
साधना तो हम कर रहे हैं पर जो प्राप्त होना चाहिए उससे वंचित हैं । मैं आपको आश्वासन देता हूँ यदि आप स्वामीजी की साधना के अनुसार साधना कर रहे हैं तो आपको गंतव्य प्राप्त होकर रहेगा । आपका उद्धार कल्याण परम पद की प्राप्ति होकर रहेगी, इसमें कोई संदेह नहीं है । बशर्ते साधना स्वामीजी महाराज के अनुसार होनी चाहिए । क्या है वह ? 
यह जानना बहुत जरूरी है कि क्या है उनकी साधना । 

तीन चीज़ें बताई – जाप, ध्यान व कीर्तन चाहे मन ही मन कीर्तन करो । इन तीनों में से एक में भी यदि कमि आई तो वह सम्पूर्ण नहीं । नाम इतना जपो हर समय जपना । चौबीसों घण्टों राम राम राम राम । क्या यह सम्भव है । यह सम्भव तभी है जब आपको नाम से या नामी से प्रेम हो जाएगा । नाम तो हम बहुत जपते हैं । काश यह नाम की आराधना प्रेमपूर्वक की होती तो आज जो घर नर्क बने हुए हैं वे स्वर्ग बन गए होते । आज आपका जो व्यक्तिगत अशान्त जीवन है वह अशान्त न रहा होता । वह पूर्णतया शान्त हो गया होता । 
साधना में आपको और आगे चलना होगा । स्वामीजी महाराज की साधना एक गृहस्थ की साधना है । स्वामीजी महाराज किसी गृहस्थ को ऊपरी विरक्त नहीं बनाते उसे भीतरी विरक्त बनाते हैं । घर छोड़ने के लिए नहीं कहते । साथ ही स्पष्ट कर देते हैं कि बच्चे यह स्थान सेवा स्थली है । सेवा करने के लिए यहाँ आए हो। मुख्य काम तो नाम की उपासना है । किसी के साथ चिपकना नहीं है । जो काम मैं ले रहा हूँ मुझे लेने दो । मैंने जो आपसे काम लेना है मुझे ठीक ढंग से लेने दो । भीतरी विरक्ति । परमेश्वर की दृष्टि में जो इमान्दार बन जाता है, सब कुछ मेरे राम का है मैं भी राम का हूँ मेरा कुछ नहीं वह ईमानदार साधक है । वह तुरन्त शान्त हो जाता है । 
यह साधना हमारे व्यवहार में उतरनी चाहिए । यदि हमारा व्यवहार अभी सद्व्यवहार नहीं बना तो समझ लीजिएगा कि साधना अभी ठीक नहीं है । अपने बच्चे कहते हैं कि जाते हो श्री रामशरणम और घर पर दूसरों के साथ दुर्व्यवहार करते हो यह ठीक नहीं । वैसा ही क्रोध बना हुआ है, वैसे ही ईर्ष्या बनी हुई है, वैसे ही द्वेष बना हुआ है। तो अभी साधना ने रंग नहीं डाला । 
सब के लिए सद्भावना हो जाए। हृदय में सबके लिए प्रेम जागृत हो जाए । स्वामीजी महाराज की साधना प्रेम प्रधान साधना है । भक्ति प्रधान साधना है ।

सत्संग में नियम न निभे 

April 10, 2017


प्रश्न : सत्संग में कई बार अन्य के व्यवहार से मन पीड़ित हो जाता है । गुरूजनों के नियमों के न पालन होने से मन क्षुभित हो जाता है !! 
जब सत्संग जाकर हमें लगता है कि किसी अन्य के कारण हमारी तार गुरूजनों से टूटी है … 

हमें गुरूजनों से प्रार्थना करनी है कि हे देवाधिदेव ! आपश्री से तार जोड़ने आए थे … कृपया बाहरी किसी भी कारण भीतर की तार न टूटे !!! 
यदि आपके नियम नहीं निभ रहे – तो मेरे मालिक ! आप दाता है ब्रह्माण्ड के !! आप कृपया ऐसी विधि बनाए कि आपश्री के नियम निभाए जाएँ और आपके मस्ती का प्याला हम पीते जाएँ ! 
हम संसार भुलाने आते हैं हे सद्गुरू महाराज!! आपश्री की धुन में लुटने आते हैं !! हमें भी भिगोइएगा और दूसरों को भी ताकि सब जानें कि मालिक कौन है !!! 
पूज्यश्री महाराज के अनुसार वह केवल पूज्यपाद श्री स्वामीजी का दरबार है । कृपया अपना दरबार न खोलिएगा !! 
करिएगा ऐसी प्रार्थनाएँ ! वे देवाधिदेव अवश्य कृपा करेंगे ! भर भर के वापिस भेजेंगे !!! सब समय बदल जाता है !!! बहुत शक्ति है राम नाम की प्रार्थना में !!! भाव विभोर होकर हम करें गुप्त प्रार्थनाएँ !!!! वे हर प्रार्थना सुनते हैं ! 
सब की तार जोड़िए प्रभु कि हम जानें कि मालिक तो आप हैं .. हम तो नौकरों की श्रेणी में भी नहीं ! क्योंकि जो नौकर बन गया वह आपश्री को पा गया !!!!!.
जो तार राम से जोड़े ऐसे हमें संत मिले 

जो बाँह पकड़ न छोड़े ऐसे हमें संत मिले 
श्री श्री चरणों में 

सत्संग में साधक 

April 8, 2017


हम विदेश में रहते हैं । हमारा महीने में एक बार सत्संग होता है । हम बहुत ही खुश थे कि हमें गुरूजन सत्संग देने लगे । पर जब सब अच्छा चल रहा था कि कुछ गड़बड़ आरम्भ हो गई । हम सब प्रेम से सत्संग करना चाहते हैं मिल कर सत्संग करना चाहते हैं ताकि गुरूजन हमारे यहाँ भी आएं सत्संग पर और कृपा बरसाएँ सब पर । कुछ प्रश्न हैं कृपया समाधान कर दीजिए 
 हमारा सत्संग कितने समय का होता है ? 

गुरूजन नियम के बहुत पक्के हैं । एक मिनट भी ऊपर नीचे के लिए वे बारम्बार क्षमा माँगते । सो समय का बहुत ध्यान रखन् है। रविवार सत्संग १:३० घण्टे का । दैनिक १ घण्टे का । सुंदरकाणड २:३०-३ घण्टे तक । 
हमारे सत्संग में विभिन्न गुरूजनों के साधक हैं तो एक साधक को सत्संग में कैसे बैठना चाहिए , क्या वह स्वयं आगे आ जाए साज बजाने या गाने ? क्या करना चाहिए ? 
पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि साधक को सत्संग में केवल गुरूजनों के लिए आना चाहिए । यदि उसे श्रीअमृतवाणी जी की सेवा दी जाती है या उन्हें कहा जाता है तभी वे आगे आएं । यदि भजन के लिए कहा जाता है तो एक साधक पूछे या वहाँ बैठे जहाँ बताया जाए । कोई भी कार्य पूछ कर ही करना ठीक रहता है , स्वयं नहीं। चाहे हम कितने भी उम्र में बड़े क्यों न हो । गुरूजन कहते हैं कि साधक जितना छोटा बन सके उतना छोटा बनना है ! पूज्य महाराजश्री तो उद्धाटन में नारियल भी पूछ कर ही तोड़ते !! 
क्या हमारे सत्संग में साधक प्रवचन करते हैं ? 
क्योंकि हम दिल्ली श्रीरामशरणम् के अनुयायी हैं तो हमारे गुरूजन ही केवल प्रवचन करते हैं । आजकल video से । पर हो सकता है कि अन्य गुरूजनों के यहाँ या उनके समय में कुछ और प्रथा हो तो सबको कृपया विनय पूर्वक स्पष्ट करना बेहतर है कि कोई प्रवचन नहीं करता । 
क्या हम किसी को सत्संग आने से मना कर सकते हैं? या ऐसी विधि बना सकते हैं कि कोई सत्संग न आए ! 
गुरूजनों ने स्पष्ट कहा है कि यदि कोई किसी को साधना के पथ से रोकता है तो वह घोर पाप का भागी बनता है । और साधक यदि किसी के कारण साधना बंद कर देता है तो उस साधक को पाप भुगतना ही पडता है। पर यदि साधक किसी की कूट नीति के कारण सत्संग आना बंद नहीं करता तो वह दूसरा साधक पाप का भागी नहीं बनता। 

कृपया यह स्मरण रहे कि गुरूजन की प्रेरणा से ही साधक सत्संग आते हैं । सो सत्संगियों का आदर सम्मान करना चाहिए। 

पूज्य पाद स्वामीजी महाराजश्री के नियम केवल समय व अनुशासन के संदर्भ में नहीं है । ” उपासक का आंतरिक जीवन” नियम है । सत्संगियों की चुग़ली करना, निंदा करना, बातें फैलाना साधक के लिए मना हैं । 
क्या यह ठीक है कि हम जान बूझ कर किसी साधक को सेवा न दें ? 
एक प्रबंधक में यह भाव होने चाहिए कि वह सबसे सुंदर फूल चुग कर गुरूजनों को अर्पित करे। सो प्रबंधक को देखना चाहिए कि कौन से साधक में कौन से गुण हैं जिससे उनका सत्संग सुंदर बनाने में उपयोग किया जा सके । जान बूझ कर निकृष्ट संसारी व्यवहार करना, ऐसा साधक गुरूदेव कहते हैं, कि नाम जपते हुए भी संसारी ही होता है । साधक हो या प्रबंधक दोनों को मैं बाहर रखनी है और गुरूजनों को पहले ! पूज्य महाराजश्री स्मरण रहे कि हर भाव सुन व देख रहे होते हैं !! 
विदेश में बहुत दूर से साधक आते हैं। तो घरों में सत्संग के बाद खाना कर सकते हैं ? 

गुरूजनों के अनुसार एक साधक को सत्संग के बाद सत्संग घर से चाय पानी खाना पीना मना है । यदि कोई खाना बना रहा है, तो यह हम पर निर्भर करता है कि हम खाए या न खाएं । 
क्या विदेश में साधना के नियम साधकों के लिए भिन्न होते हैं ? 

परम पूज्यश्री महाराजश्री ने बहुत स्पष्ट कहा है कि प्रभु प्राप्ति के लिए एक साधक, चाहे वे भारत में हो या विदेश में, साधना के हर नियम, हर एक के लिए एक जैसे हैं। हर को अहम् शून्य होना, देहअभिमान से पार पाना, अजपा जाप होना, सतत सिमरन करना, सेवा, श्रीअमृतवाणी जी का पाठ करना , ध्यान में बैठना, नाम जाप करना, अनिवार्य है । 
सत्संग में गुरूजनों की कृपा कैसे प्राप्त होती है ? 
पूज्यश्री महाराजश्री के अनुसार सत्संग में केवल गुरूजनों के लिए जाना, गुरूजनों के आदेशों का अक्षराक्षर पालन करना, अपनी मैं को छोटे से छोटे बनाना, हर कार्य गुरूजनों के लिए करना व गुप्त प्रार्थनाएँ करनी । इनसे पूज्य गुरूजन कहते हैं कि गुरू कृपा प्राप्त होती है। सत्संग में कोई बुरा भला कहे तो उसके लिए गुप्त प्रार्थना करना और सत्संग जाना किसी के कहे सुने के कारण बंद नहीं करना । 

श्री श्री चरणों में 🙏

स्वप्नों से उद्देश्य का साकार करना 

April 2, 2017


उद्देश्य स्वयमेव प्रेरक शक्ति बन जाता है । इस उद्देश्य को स्वप्न के स्तर पर साकार कीजिए ~ डॉ गौतम चैटर्जी

यह आज के मनोभाव के लिए व किसी भी उद्देश्य के लिए बहुत सुंदर प्रयोग है । 

प्रयोग शब्द का उपयोग किया है – experiment! 

हम इस को साकार करने की कोशिश कर सकते हैं । 
उदाहरण के तौर पर , लेते हैं कि हमारे जीवन में कोई समस्या आ गई है । अब समस्या मन से निकल नहीं रही । राम राम जप रहे हैं , श्री अमृतवाणी का पाठ कर रहे हैं पर फिर भी हृदय की गति सामान्य नहीं है । आइए लेते हैं एक स्वप्न – कि महाराजश्री आए हैं । सिर पर हाथ रखा है और कह रहे हैं मैं हूँ न , चिन्ता न कर ! 

कितना आनन्द आया !!!!! 

फिर कुछ और करने लगे हैं और फिर वही विचार आ गया परेशान करने फिर से अपने स्वप्नों की नगरी में चले जाइए – और देखिए महाराजश्री को या अपने ईष्ठ को – वे कह रहे हैं ऐसे ही चिन्ता कर रही थी ! कहा था न मैं हूँ !! 
मन में सोच कर ही गुद गुदी हुई !!! और चेहरे पर मुस्कान भी आ गई और वह पल कितना दिव्य बन गया !!!
सो आइए कोशिश करें अपनी चिन्ताओं को गुरूजनों के स्वप्नों से समर्पण करने की …. कैसे संसारी चिन्ता उपासना में बदल गई ….. राम नाम साधक अपने विचारों की शक्ति से यह सम्भव कर सकता है । 
पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि सारा दिन ऐसे सपनों में रहिए । एक दिन यह सपने नहीं सच्चाई बन जाएंगे !!! 
श्री श्री चरणों में 🙏🙏

Pic courtesy – Dr. Priya Sareen 

दीक्षा गुरू 

March 19, 2017


परम पूज्यश्री महर्षि डॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री के मुखारविंद से 
दीक्षा गुरू 
पूज्यश्री प्रेम जी महाराज को पूज्यश्री स्वामीजी द्वारा दीक्षा का अधिकार अपने आप ही मिल गया। उस समय चार लोग और थे जिनको स्वामीजी महाराज ने दीक्षा का अधिकार दिया था । सर्वप्रथम माता कर्मा देवी जी , माता लक्ष्मी देवी जी, श्रीमती शकुंतला देवी जी पानीपत से और लुघिआना से श्री हरिवंश शास्त्री । प्रेमजी महाराज सहित पाँच हो गए । इन पाँचों में से इस समय कोई भी शरीर में नहीं । आगे दीक्षा देने का अधिकार पूज्यश्री प्रेमजी महाराज को था । मुझे नहीं याद , मैंने मूलचन्द जी से भी पूछा है क्या पूज्यश्री ने किसी को अधिकार दिया दीक्षा देने का ? तो जितना मुझे पता था उतना इन्हें भी । नहीं । पूज्य श्री प्रेमजी महाराज ने किसी को दीक्षा का अधिकार नहीं दिया । न ही उन्होंने दिया न ही सत्यानन्द धर्मार्थ ट्रस्ट ने दिया , जो दे सकता था पूज्यश्री प्रेमजी महाराज की consultation के बाद । लेकिन नहीं दिया । इस वक्त साधक जनों १५ लोग दीक्षा दे रहे हैं । आप सब भलि भाँति परिचित हो उनसे । एक ही प्रश्न मन में उठता है किसने अधिकार दिया होगा दीक्षा का ? क्या आपको नहीं लगता अधिकारी द्वारा दीक्षा लेने में और अनअधिकारी द्वारा दीक्षा देने में कोई अंतर नहीं ? मेहरबानी करके इस पर सोच विचार कीजिएगा । 
अधिकारी और अनअधिकारी में कितना अंतर होता है । आपने शायद न ही सुना हो । हमारी तो ख़ुशक़िस्मती कि हमें प्रेमजी महाराज से खाने पीने को खूब मिलता था । जब भी उनके पास जाना होता था तो कॉफ़ी पीने को मिलती थी । जब भी उनके घर गया तो भी मिलता था , इत्यादि इत्यादि। पूज्यश्री प्रेम जी महाराज को पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री से शायद एक ही बार खाने को मिला और वर था केला । तो पूज्य प्रेमजी महाराज ने वह केला लेके तो उसे छिलके समेत खा लिया । आप सोचते हो, प्रेम जी महाराज को यदि मूलचंद जी ने या गोविंदलाल जी ने या मैंने या रमेश नगोता जी ने केला दिया हुआ होता तो वे छिलके समेत खा जा ते ? आप सिर मार रहे हो कि नहीं न ! कितना अंतर है अधिकारी और अनाधिकारी में । मेहरबानी करके इस बात पर चिन्तन मनन जरूर करना । 
लोग भटक रहे हैं । जो दीक्षा दे रहे हैं , मेरे पास कुछ अधिकार नहीं कहने का । लेकिन मेरे पास पूर्ण अधिकार है आप सब को स्पष्ट करने का और वह कर रहा हूँ । बहुत से ऐसे होंगे जिन्होंने पूज्यश्री स्वामीजी महाराज व पूज्यश्री प्रेमजी महाराज को छोड़ कर औरों से दीक्षा ली हुई है । मेहरबानी करके सोच विचार कीजिएगा । 
आप सब जानते ही हो कि दीक्षा कक्ष में घुसते ही मैं आप सब से कहलवाता हूँ , हमारे सद्गुरू महाराज कौन हैं ? आप सब बोलते स्वामी सत्यानन्द जी महाराज, तो दीक्षा शुरू होती है । मानो , स्वामीजी महाराज आपके दरबार में बैठा हूँ, यदि गलत कहूँ तो कड़ी से कड़ी सज़ा दीजिएगा । मैंने आज तक कभी किसी को दीक्षा नहीं दी । मैं यह समझता हूँ व मानता हूँ कि स्वामीजी महाराज व उनके उत्तराधिकारी पूज्य प्रेम जी महाराज के सिवाय मेरे जैसे को दीक्षा देने का अधिकार नहीं है । मैं एक मिट्टी का ढेला बन के जरूर बैठता हूँ वहाँ पर, पर दीक्षा देने के लिए मैं पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री को ही प्रार्थना करता हूँ और वही मेरा काम करते हैं , उन्होंने ही मेरा बोझ उठाया हुआ है । वही दीक्षा देने वाले हैं । कितना अंतर है उनके दीक्षा देने में और जो दूसरे दीक्षा देते हैं । 
२००१ की घटना है । मैं नागपुर में था । रात्री नौ बजे के बाद हरियाणा से फ़ोन आया , अमुक व्यक्ति बहुत serious है । रोता जा रहा है । बस यही कह रहा है मैं मर जाऊँगा , मैं मर जाऊँगा । घर वाले, दूसरे साधक बहुत परेशान। अपनी परेशानी दूर करने के लिए ही उन्होंने नागपुर फ़ोन किया । जैसे मेरे पास message पहुँचा , मैंने बस उनसे इतनी ही प्रार्थना की कि यहाँ बैठा परमेश्वर के आगे प्रार्थना के सिवाय कुछ नहीं कर सकता । जितना जप चल रहा है कृपया वे और बढ़ाएँ । मैं दो दिन में दिल्ली पहुँच रहा हूँ मुझे तत्काल दर्शन दें । ऐसा ही हुआ । मैंने उनसे पूछा – भई क्या बात थी कि आपने रात को १ बजे फ़ोन करवाया नागपुर। आपकी आँखें इतनी मोटी हो रही है रो रो के । मुझे साफ साफ बात बताओ ? वे सुनाते है १९८५ की बात है । मैं किसी लाला जी के पास नौकरी करता था दुकान पर । मैंने कुछ ही देर में उनसे सारा का सारा काम सीख लिया। मेरे मन में भारी कामना उठी कि यदि मैं अपना काम खोल लूँ तो मैं इनसे बेहतर कर सकता हूँ । पर पैसे नहीं । मैंने इसी संस्था के किसी गुरू से दीक्षा ली हुई थी । जिन पाँचो के नाम मैंने आपसे कहे हैं इनसे नहीं, किसी और से दीक्षा लि हुई थी । मैंने तीन लाख रूपये लाला की दुकान से चुराए । चुराने के बाद काम खोला । मेरा काम बहुत अच्छा चला । मेरे पास उनसे ज्यादा पैसे हो गए । इसके बाद मैंने दुबारा दीक्षा ली । स्वामीजी महाराज से । दुबारा दीक्षा लेने के बाद, राम नाम जपने से जो मुझे शान्ति मिलती थी, मेरे अंदर उतनी ही बेचैनी आरम्भ हो गई । मुझे लगा , मुझे दुबारा दीक्षा नहीं लेनी चाहिए थी । मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई । 
मैं सब कुछ सुन कर मुस्कुरा रहा था । एक साधना सत्संग attend किया । उस साधना सत्संग में चोरी व अन्य बुराइयों की हुई, उन्होंने मुझे और व्याकुल कर दिया । मैं घर लौट कर वापिस आया । पडोस में एक महिला की मृत्यु हो गई । महिला को जलाने के लिए लकड़ियों पर रखा हुआ था । मुझे लगा मैं जल रहा हूँ । वहीं से मेरा रोना शुरू हुआ और आज तक बंद नहीं हुआ । मुझे एक ही बात सता रही थी कि मैं चोर बनकर मरूँगा । मैं इसी अपराध के साथ मरूँगा और नरक की यातना करनी पड़ेगी । मुझे कहता है मेरी रक्षा करो । मैं यह इल्ज़ाम लेकर नहीं मरना चाहता । मैंने पीठ पर हाथ रखा और कहा कि जो मैं कहूँगा करोगे ? कहा – करूँगा । मुझे गोविंदलाल जी उसकी बात में इतना वज़न लगा कि मुझे हुआ मैं कुछ कहूँ । मैंने कहा – आज ही जाओ लाला ले पास । तुम्हें तो डर है कि तुम चोरी का इल्ज़ाम लेकर जाओगे मुझे तो यह भी डर है कि तुम ३ लाख का ऋण लेकर परमात्मा को कैसे मुख दिखाओगे ? जाओ लाला से माफ़ी माँगो । उसके चरणों पर अपना मस्तक रखो । मैं आपका एक एक पैसा चुकाऊँगा । मुझे माफ करो । पर मैं इस अपराध के साथ मरना नहीं चाहता । 
परमात्मा के सामने अपने अपराध स्वीकार करना आसान है क्योंकि वह दिखाई नहीं देता । लेकिन किसी जीवन्त के सामने कहना , अपराध स्वीकार करना आसान नहीं । शूरवीरों का काम है । भीरो का काम नहीं है । यह शूरवीरों का काम है । 
ऐसा ही किया । मैं with interest सब लौटाऊँगा । लाला ने कहा नहीं भई । हमें तो पता ही नहीं कि तुमने ३ लाख रू चुराए ! 

जैसे जैसे ऋण चुकता होता गया , बोझ उतरता गया , मन का बोझ घटता गया । बहुत light हो गया वह व्यक्ति । 

क्यों ऐसा हो गया ? यह बात पहले क्यों नहीं हुआ ? दूसरी बार दीक्षा लेने के बाद उसके साथ ऐसा क्यों हुआ ? 

अधिकारी से दीक्षा लो गो तो पाप संस्कार साधक जनों अंदर टिक नहीं सकेंगे । वे बाहर निकलेंगे । उनके बाहर निकलते है सुसंस्कार आपको पकड़ लेते हैं । 
इतने भाग्यवान हो आप । इतने रोए हो आप एक पाप के लिए । मैं आपको आश्वासन देता हूँ आपका एक पाप नहीं अनेक पाप इन आँसुओं में धुल गए । 
अधिकारी से दीक्षा लेने का प्रताप । आप सबसे भीख माँगता हूँ , यह सेवा अपने सिर पर लीजिएगा । कोई गुमराह न हो । किसी से वैर नहीं, विरोध नहीं कोई द्वेष नहीं । किसी की आलोचना नहीं । कोई ऐसा कहे तो कानों को हाथ लगाना, राम राम राम राम राम । इस भाव से कुछ नहीं कहना । लेकिन उन्हें गुमराह होने से बचाना । किसी अनअधिकारी के पल्ले कोई न पड़े । यह अधिकार स्वामीजी का है साधकजनों । हम उन्हीं के रहें , इसी में हमारा सौभाग्य है । 
मेरे साथ एक बार बोलिएगा – हमारे सद्गुरू महाराज कौन हैं ? स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ! हमारे सद्गुरू महाराज कौन हैं ? स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ! याद रखिएगा इस बात को । कभी भूलना नहीं । सेवा समझ कर अपने आस पास वालों को समझाना । कि यह दीक्षा क्या होती है , यह बच्चों का खेल नहीं है। जो कोई उठा दीक्षा देने लग गया । 

मेरे साथ इसका भी वाएदा करना कि किसी से वैर विरोध दिनेश नहीं करना पर अपने संगी साथियों को अनिष्ट से बचा रहे हैं । इस भाव से उन्हें समझा रहे हैं । जहाँ गुरू आज्ञा नहीं है और आप दीक्षा दे रहे हो , राम नाम तो अपना काम करेगा । लेकिन गुरू कृपा की channel बंद हो गई । यदि आप जानते हैं कि गुरू कृपा क्या होती है तो वह चैनल बंद हो जाएगी । 

गुरूजनों के ग्रंथ व अन्य अध्यात्मिक ग्रंथ 

Jan 22, 2017

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प्रश्न : क्या हमें सिर्फ पूज्यश्री गुरूजन के ही ग्रंथों का पाठ करना चाहिए ?
हमारे गुरूजनों के ग्रंथ ज्ञान के असीम सागर है। किसी वरिष्ठ साधक ने कहा था कि उनके ग्रंथों को पूर्ण रूप से समझ पाने के लिए एक जीवन काल पर्याप्त नहीं ।

हमारे गुरूजन अध्यात्मवाद के अनुयायी हैं। किसी पंथ या मत के नहीं । अध्यात्मवाद मूल है, इसी से सभी धर्मों का जन्म हुआ है । और समस्त विश्व में अध्यात्मवाद एक ही है। इसका मतलब कि जो गुरूजनों ने कहा व लिखा है, वह पहले भी आध्यात्मिक महर्षियों द्वारा कहा जा चुका है और विदेशों में भी जिन अध्यात्मवादियों ने कुछ कहा वह एक ही है । यह इसलिए क्योंकि जो सबने भीतर देखा वह एक ही था व है ।

इसलिए जो भी अन्य अध्यात्मिक ग्रंथ व शास्त्र हम पढ़ेंगे वे भी वही कह रहे होंगे जो पूज्यश्री गुरूजनों ने कहा है ।
परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री ने भक्ति प्रकाश जी में विभिन्न संतों के बारे में लिखा है । जो यही दर्शाता है कि उन्होंने भी अन्य संतों के जीवन व लेखों का रसपान किया है । पूज्य स्वामीजी महाराजश्री ने तो अन्य संतों के भजन तक लिखे हैं ध्वनि व भजन संग्रह में , जो कि उनकी खुली सोच, विशाल हृदय दर्शाता है ।
परम पूज्यश्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री ने तो अन्य आधुनिक संतों के ग्रंथ तक अनुवाद किए और स्वामी रामदास जी की दिव्य दर्शन नामक पुस्तकों को भी पढने के लिए कहा ।
हमारे गुरूजन ऐसे धर्म को मानते हैं व अनुयायी हैं जो सार्वभौमिक है । जो देश काल से परे है। जो सदा था व सदा रहेगा । क्योंकि वह आत्मा के बारे में है जिस तक हम नाम योग द्वारा पहुँचते है ।
इस लिए बिना किसी संकोच के जो ग्रंथ भक्ति रस से भरपूर हैं , जो आत्मदर्शन तक लेकर जाते हैं , हम पढ सकते क्योंकि वे सब वही कहेंगे जो परम पूज्यश्री गुरूजनों ने कहा है ।
गुरूजनों के अनुसार  जो भी पढें ..( चाहे गुरूजनों के, जो कि ज्ञान के असीमातीत भण्डार हैं या कुछ और ), जीवन में अवश्य हमें उसे उतारना है ।

ऐसा मुझे सिखाया
सर्व श्री श्री चरणों में

परम पूज्यपाद श्री स्वामीजी महाराजश्री और अध्यात्मवाद 

Jan 21, 2017


परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री ने हमें अध्यात्मवादि / अध्यात्मिक कहा है ।
यह अध्यात्मवाद क्या है ?
आत्मा को लक्ष्य रखकर जो बात की जाए वह अध्यात्मवाद।
क्या हर कोई अध्यात्मवादी होता है ?
नहीं ! पूज्य स्वामीजी महाराज जी कहते हैं कि अध्यात्म विद्या को प्राप्त करने के सभी अधिकारी नहीं होते। सभी में यह योग्यता नहीं होती क्योंकि बुद्धि भिन्न भिन्न प्रकार की होती है। कोई विरला ही इसके योग्य होता है।
क्यों यह हर किसी के लिए नहीं है ? क्या है इसमें जो सब नहीं कर सकते?
पूज्य स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि इसमें अपनी प्रकृति को बदलना होता है, जो सरल काम नहीं । शरीर की प्रकृति को ही बदलना बहुत कठिन है और आत्मा को- जिसे न जाने किस काल प्रकृतिमय समझता आया है-जाग्रत करना, उसको स्व – स्वरूप में लाना और भी कठिन है। इसलिए इस मार्ग पर पूरी विधि और तत्परता से चलना चाहिए।
अध्यात्मवाद किस धर्म से आया है ?
पूज्य स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि अध्यात्मवाद वास्तविक धर्म हैं। और अखिल संसार में एक ही है । इससे सभी धर्मों की उत्पत्ति हुई है ! सो यह मौलिक चीज है।
तो क्या यह वास्तविक धर्म केवल भारत में ही पाया गया है ?

पूज्यश्री स्वामिनी महाराजश्री ने कहा है कि अध्यात्मवाद पुरानी चीज है । दूसरे देशों में भी है । यदि किसी पश्चिमी देश में अध्यात्मवाद की बात की गई हो या भारत वर्ष में बात की गई हो, उसमें केवल शब्दों का भेद हो सकता है पर तत्व में भेद नहीं हो सकता ।
तो क्या जो पुराने महर्षि या संत हुए और जो विदेश में संत हुए और जो पूज्य स्वामीजी के ग्रंथों में अध्यात्मवाद है क्या वह भिन्न है ?
पूज्य स्वामीजी महाराजश्री के अनुसार , सब देशों में जो अनुभवी लोग हुए हैं , वे सब एक ही बात कहते आए हैं, क्योंकि उन्होंने जो देखा, वह एक ही बात थी ।
प्रवचन पीयूष
पृष्ठ १६, १३