March 19, 2017
परम पूज्यश्री महर्षि डॉ विश्वामित्रजी महाराजश्री के मुखारविंद से
दीक्षा गुरू
पूज्यश्री प्रेम जी महाराज को पूज्यश्री स्वामीजी द्वारा दीक्षा का अधिकार अपने आप ही मिल गया। उस समय चार लोग और थे जिनको स्वामीजी महाराज ने दीक्षा का अधिकार दिया था । सर्वप्रथम माता कर्मा देवी जी , माता लक्ष्मी देवी जी, श्रीमती शकुंतला देवी जी पानीपत से और लुघिआना से श्री हरिवंश शास्त्री । प्रेमजी महाराज सहित पाँच हो गए । इन पाँचों में से इस समय कोई भी शरीर में नहीं । आगे दीक्षा देने का अधिकार पूज्यश्री प्रेमजी महाराज को था । मुझे नहीं याद , मैंने मूलचन्द जी से भी पूछा है क्या पूज्यश्री ने किसी को अधिकार दिया दीक्षा देने का ? तो जितना मुझे पता था उतना इन्हें भी । नहीं । पूज्य श्री प्रेमजी महाराज ने किसी को दीक्षा का अधिकार नहीं दिया । न ही उन्होंने दिया न ही सत्यानन्द धर्मार्थ ट्रस्ट ने दिया , जो दे सकता था पूज्यश्री प्रेमजी महाराज की consultation के बाद । लेकिन नहीं दिया । इस वक्त साधक जनों १५ लोग दीक्षा दे रहे हैं । आप सब भलि भाँति परिचित हो उनसे । एक ही प्रश्न मन में उठता है किसने अधिकार दिया होगा दीक्षा का ? क्या आपको नहीं लगता अधिकारी द्वारा दीक्षा लेने में और अनअधिकारी द्वारा दीक्षा देने में कोई अंतर नहीं ? मेहरबानी करके इस पर सोच विचार कीजिएगा ।
अधिकारी और अनअधिकारी में कितना अंतर होता है । आपने शायद न ही सुना हो । हमारी तो ख़ुशक़िस्मती कि हमें प्रेमजी महाराज से खाने पीने को खूब मिलता था । जब भी उनके पास जाना होता था तो कॉफ़ी पीने को मिलती थी । जब भी उनके घर गया तो भी मिलता था , इत्यादि इत्यादि। पूज्यश्री प्रेम जी महाराज को पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री से शायद एक ही बार खाने को मिला और वर था केला । तो पूज्य प्रेमजी महाराज ने वह केला लेके तो उसे छिलके समेत खा लिया । आप सोचते हो, प्रेम जी महाराज को यदि मूलचंद जी ने या गोविंदलाल जी ने या मैंने या रमेश नगोता जी ने केला दिया हुआ होता तो वे छिलके समेत खा जा ते ? आप सिर मार रहे हो कि नहीं न ! कितना अंतर है अधिकारी और अनाधिकारी में । मेहरबानी करके इस बात पर चिन्तन मनन जरूर करना ।
लोग भटक रहे हैं । जो दीक्षा दे रहे हैं , मेरे पास कुछ अधिकार नहीं कहने का । लेकिन मेरे पास पूर्ण अधिकार है आप सब को स्पष्ट करने का और वह कर रहा हूँ । बहुत से ऐसे होंगे जिन्होंने पूज्यश्री स्वामीजी महाराज व पूज्यश्री प्रेमजी महाराज को छोड़ कर औरों से दीक्षा ली हुई है । मेहरबानी करके सोच विचार कीजिएगा ।
आप सब जानते ही हो कि दीक्षा कक्ष में घुसते ही मैं आप सब से कहलवाता हूँ , हमारे सद्गुरू महाराज कौन हैं ? आप सब बोलते स्वामी सत्यानन्द जी महाराज, तो दीक्षा शुरू होती है । मानो , स्वामीजी महाराज आपके दरबार में बैठा हूँ, यदि गलत कहूँ तो कड़ी से कड़ी सज़ा दीजिएगा । मैंने आज तक कभी किसी को दीक्षा नहीं दी । मैं यह समझता हूँ व मानता हूँ कि स्वामीजी महाराज व उनके उत्तराधिकारी पूज्य प्रेम जी महाराज के सिवाय मेरे जैसे को दीक्षा देने का अधिकार नहीं है । मैं एक मिट्टी का ढेला बन के जरूर बैठता हूँ वहाँ पर, पर दीक्षा देने के लिए मैं पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री को ही प्रार्थना करता हूँ और वही मेरा काम करते हैं , उन्होंने ही मेरा बोझ उठाया हुआ है । वही दीक्षा देने वाले हैं । कितना अंतर है उनके दीक्षा देने में और जो दूसरे दीक्षा देते हैं ।
२००१ की घटना है । मैं नागपुर में था । रात्री नौ बजे के बाद हरियाणा से फ़ोन आया , अमुक व्यक्ति बहुत serious है । रोता जा रहा है । बस यही कह रहा है मैं मर जाऊँगा , मैं मर जाऊँगा । घर वाले, दूसरे साधक बहुत परेशान। अपनी परेशानी दूर करने के लिए ही उन्होंने नागपुर फ़ोन किया । जैसे मेरे पास message पहुँचा , मैंने बस उनसे इतनी ही प्रार्थना की कि यहाँ बैठा परमेश्वर के आगे प्रार्थना के सिवाय कुछ नहीं कर सकता । जितना जप चल रहा है कृपया वे और बढ़ाएँ । मैं दो दिन में दिल्ली पहुँच रहा हूँ मुझे तत्काल दर्शन दें । ऐसा ही हुआ । मैंने उनसे पूछा – भई क्या बात थी कि आपने रात को १ बजे फ़ोन करवाया नागपुर। आपकी आँखें इतनी मोटी हो रही है रो रो के । मुझे साफ साफ बात बताओ ? वे सुनाते है १९८५ की बात है । मैं किसी लाला जी के पास नौकरी करता था दुकान पर । मैंने कुछ ही देर में उनसे सारा का सारा काम सीख लिया। मेरे मन में भारी कामना उठी कि यदि मैं अपना काम खोल लूँ तो मैं इनसे बेहतर कर सकता हूँ । पर पैसे नहीं । मैंने इसी संस्था के किसी गुरू से दीक्षा ली हुई थी । जिन पाँचो के नाम मैंने आपसे कहे हैं इनसे नहीं, किसी और से दीक्षा लि हुई थी । मैंने तीन लाख रूपये लाला की दुकान से चुराए । चुराने के बाद काम खोला । मेरा काम बहुत अच्छा चला । मेरे पास उनसे ज्यादा पैसे हो गए । इसके बाद मैंने दुबारा दीक्षा ली । स्वामीजी महाराज से । दुबारा दीक्षा लेने के बाद, राम नाम जपने से जो मुझे शान्ति मिलती थी, मेरे अंदर उतनी ही बेचैनी आरम्भ हो गई । मुझे लगा , मुझे दुबारा दीक्षा नहीं लेनी चाहिए थी । मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई ।
मैं सब कुछ सुन कर मुस्कुरा रहा था । एक साधना सत्संग attend किया । उस साधना सत्संग में चोरी व अन्य बुराइयों की हुई, उन्होंने मुझे और व्याकुल कर दिया । मैं घर लौट कर वापिस आया । पडोस में एक महिला की मृत्यु हो गई । महिला को जलाने के लिए लकड़ियों पर रखा हुआ था । मुझे लगा मैं जल रहा हूँ । वहीं से मेरा रोना शुरू हुआ और आज तक बंद नहीं हुआ । मुझे एक ही बात सता रही थी कि मैं चोर बनकर मरूँगा । मैं इसी अपराध के साथ मरूँगा और नरक की यातना करनी पड़ेगी । मुझे कहता है मेरी रक्षा करो । मैं यह इल्ज़ाम लेकर नहीं मरना चाहता । मैंने पीठ पर हाथ रखा और कहा कि जो मैं कहूँगा करोगे ? कहा – करूँगा । मुझे गोविंदलाल जी उसकी बात में इतना वज़न लगा कि मुझे हुआ मैं कुछ कहूँ । मैंने कहा – आज ही जाओ लाला ले पास । तुम्हें तो डर है कि तुम चोरी का इल्ज़ाम लेकर जाओगे मुझे तो यह भी डर है कि तुम ३ लाख का ऋण लेकर परमात्मा को कैसे मुख दिखाओगे ? जाओ लाला से माफ़ी माँगो । उसके चरणों पर अपना मस्तक रखो । मैं आपका एक एक पैसा चुकाऊँगा । मुझे माफ करो । पर मैं इस अपराध के साथ मरना नहीं चाहता ।
परमात्मा के सामने अपने अपराध स्वीकार करना आसान है क्योंकि वह दिखाई नहीं देता । लेकिन किसी जीवन्त के सामने कहना , अपराध स्वीकार करना आसान नहीं । शूरवीरों का काम है । भीरो का काम नहीं है । यह शूरवीरों का काम है ।
ऐसा ही किया । मैं with interest सब लौटाऊँगा । लाला ने कहा नहीं भई । हमें तो पता ही नहीं कि तुमने ३ लाख रू चुराए !
जैसे जैसे ऋण चुकता होता गया , बोझ उतरता गया , मन का बोझ घटता गया । बहुत light हो गया वह व्यक्ति ।
क्यों ऐसा हो गया ? यह बात पहले क्यों नहीं हुआ ? दूसरी बार दीक्षा लेने के बाद उसके साथ ऐसा क्यों हुआ ?
अधिकारी से दीक्षा लो गो तो पाप संस्कार साधक जनों अंदर टिक नहीं सकेंगे । वे बाहर निकलेंगे । उनके बाहर निकलते है सुसंस्कार आपको पकड़ लेते हैं ।
इतने भाग्यवान हो आप । इतने रोए हो आप एक पाप के लिए । मैं आपको आश्वासन देता हूँ आपका एक पाप नहीं अनेक पाप इन आँसुओं में धुल गए ।
अधिकारी से दीक्षा लेने का प्रताप । आप सबसे भीख माँगता हूँ , यह सेवा अपने सिर पर लीजिएगा । कोई गुमराह न हो । किसी से वैर नहीं, विरोध नहीं कोई द्वेष नहीं । किसी की आलोचना नहीं । कोई ऐसा कहे तो कानों को हाथ लगाना, राम राम राम राम राम । इस भाव से कुछ नहीं कहना । लेकिन उन्हें गुमराह होने से बचाना । किसी अनअधिकारी के पल्ले कोई न पड़े । यह अधिकार स्वामीजी का है साधकजनों । हम उन्हीं के रहें , इसी में हमारा सौभाग्य है ।
मेरे साथ एक बार बोलिएगा – हमारे सद्गुरू महाराज कौन हैं ? स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ! हमारे सद्गुरू महाराज कौन हैं ? स्वामी सत्यानन्द जी महाराज ! याद रखिएगा इस बात को । कभी भूलना नहीं । सेवा समझ कर अपने आस पास वालों को समझाना । कि यह दीक्षा क्या होती है , यह बच्चों का खेल नहीं है। जो कोई उठा दीक्षा देने लग गया ।
मेरे साथ इसका भी वाएदा करना कि किसी से वैर विरोध दिनेश नहीं करना पर अपने संगी साथियों को अनिष्ट से बचा रहे हैं । इस भाव से उन्हें समझा रहे हैं । जहाँ गुरू आज्ञा नहीं है और आप दीक्षा दे रहे हो , राम नाम तो अपना काम करेगा । लेकिन गुरू कृपा की channel बंद हो गई । यदि आप जानते हैं कि गुरू कृपा क्या होती है तो वह चैनल बंद हो जाएगी ।