Category Archives: Positive Mantra and Gurujans discourses correlation Posts

बाँटिए

Nov 18, 2016

ज्ञान बाँटने का तात्पर्य ही यही है कि दूसरों के जीवन में उत्थान हो सके ~ डॉ गौतम चैटर्जी , Positive Mantra

परम पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि Be good, do good! स्वयं भले बनिए और फिर दूसरों का भला करिए!

जो गुरूजन सिखाएँ वे बाँटना सिखाया है ! जो गुरूजन प्यार दें वह बाँटना , जो गुरूजन शिक्षा दें वह बाँटना , ताकि सब उनके प्यार व शिक्षाओं का स्पर्श प्राप्त कर सकें !

एक साधक जब भी साधना से आते तो बाकि साधक उनका इंतज़ार कर रहे होते । कि महाराजश्री ने ज्ञान रूप में क्या प्रसाद भेजा । वे कितनी बार फ़ोन पर पूरा प्रवचन बताते या कई बार लिख कर भी देते !! जिनको गुरूदेव की मुस्कुराहट की इंतज़ार होती तो वे सुनाते कि कब कैसे गुरूदेव मुस्कुरए ! क्यों करते ? कि सभी को पूज्य गुरूदेव का प्रसाद मिले!!

हमारे पूज्यश्री स्वामी जी महाराजश्री पैदल चल कर कितनी कितनी दूर नाम दान देने जाते ! गुरूजनों का तो कहना ही क्या !! मौन में रह कर , तत्व रूप में कैसे कैसे ज्ञान का वितरण करते हैं, आत्मा के ऊपर से पर्तें उतारते हैं ! वे तो सारी साधना, समस्त जीवन व जीवन पर्यन्त भी दूसरों को ही बाँटने में लगा देते हैं !

संतगण यहाँ कहते हैं कि जो आत्मज्ञानी होते हैं उन्हें हरएक राम ही दिखते हैं । वे राम कार्य ही करते हैं। उनके लिए तेरे मेरे का भेद होता ही नहीं है ! हर एक को एक जैसा ही देते हैं !

यहाँ भी हर शब्द उन्हीं से है ! सब कुछ तो हमें उन्हीं से मिलता है ! अपना तो कुछ हो ही नहीं सकता !!

सबका मंगल हो

सबका कल्याण हो

श्री श्री चरणों में 🙏

दूसरों से सीखिए

Nov , 2018

जब भी लोगों से मिलें , आगे बढ़ कर और सीखे ~ डॉ गौतम चैटर्जी , positive Mantra

परम पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि एक साधक अपने जीवन के अंत तक सीखता ही रहता है ।

जिसमें सीखने की प्रवृति होती है वह स्वभाविक ढंग से विनम्र भी देखने में आया है । क्योंकि गुरूजन सिखाते हैं कि झुक कर ही सीखा जाता है !

आज की सीख 😇

जहाँ बैठो , वहाँ से सीखो अनुपमा ! जहाँ से हो सके सीखो ! हर किसी के पास कुछ न कुछ होता है देने के लिए, लेना आना चाहिए !

प्रभु राम ने लक्ष्मण जी को रावण तक से सीखने का आदेश दिया ! सो चुप रह कर ही सीखा जा सकता है, प्रश्न उठाकर भी सीखा जा सकता है और गुरूजनों के अनुसार विनम्र बनकर ही सीखा जा सकता है !!

श्री श्री चरणों में 🙏

सूचना

Nov 2018

*किसी भी नई चीज का आग़ाज़ हमेशा नई सूचना से होता है ~ डॉ गौतम चैटर्जी , Positive Mantra.*

हर बार की तरह यह पोस्ट भी सार्वभौमिक है। हर क्षेत्र में लागू किया जा सकता है !

एक चिड़िया के शुभ कर्म जागे और उसने देखा कि उसकी मित्र हर पल गले में माला रखते हैं। पहले तो बहुत चूँ चू चीं चीं करते थे अब न जाने क्या हो गया है कि चुप रहते हैं । तो पता चला कि यह तो राम नाम लेने लग गए हैं । नई सूचना थी !! ध्यान से देखना आरम्भ कर दिया । मित्र अब सदा खुश रहते ! काम काज निपटा कर रात रात भर उठ कर जाप करते !

वे तरंगें छूँ सी गई ! जीवन में यह नई सूचना जो आ रही थी व दिख रही थी उसने भीतर हल चल सी कर दी !

घर में परेशानी थी तो घर की परेशानी दूर करने के लिए, उस नन्हीं चिड़िया ने सवा करोड़ का संकल्प लिया ! संकल्प के दौरान और शुभ कर्म जागे, सत्संगति प्राप्त हुई ! सत्संगति से एक और नई सूचना मिली – दीक्षा का पता चला ! दीक्षा की तीव्र उत्कण्ठा जागी !

लीलाधारी गुरूजनों ने हस्तक्षेप किया ! असम्भव को सम्भव बनाया! परिवार की बुद्धि घुमाई और वह नन्हीं चिड़िया दीक्षा लेने उड़ गई ! गुरूजनों का स्पर्श मिला ! अब प्रेम से राम नाम करना आरम्भ किया ! गुरूजनों का सूक्ष्म संग मिलना आरम्भ हो गया !

कहाँ उस चिड़िया का जीने का मन न होता था कहाँ अब राम नाम में ही रहने को मन करता है ! जीवन में राम नाम से सहना आ गया व जीवन को स्वीकारना आ गया ! राम नाम व गुरूजनों की कृपा से गुरूजनों का प्यार महसूस हुआ !

एक छोटी सी सूचना ने जीवन का रूपान्तरण कर डाला !!

नाम खुमारी नानका चढी रहे दिन रात !!!

श्री श्री चरणों में 🙏

ज्ञान बढ़ाइए

Nov 14, 2016

अपने ज्ञान को सतत उन्नयन करते रहें ~ डॉ गौतम चैटर्जी , positive Mantra

आप साठ वर्ष के हो गए हैं, पर आपका मन है कि मैंने कभी विमान से छलाँग नहीं मारी पैराशूट के साथ , या पैरागलाइडिंग नहीं की .. चलो करती हूँ !!! 😀 भारत में साठ साल की महिला यह नहीं सोच सकती! हाँ पर मोबाइल चलाना सीख रही हैं , फ़ेसबुक पर आना सीख रही हैं 😇 whatsapp चलाना सीख रही हैं 😊!!!

आप सत्तर वर्ष के हैं और बच्चों के नए गेम , फ़ोन पर नए app चलाना सीख रहे हैं !!

आप चालीस वर्ष के हैं नृत्य करना सीख रहे हैं या तैराकी, या २ मील की दौड़ में भाग लिया !!

आप पचास वर्ष के हैं और गाड़ी चलाना सीख रही हैं!!!

स्वयं को उन्नयन करना ! जैसे हैं … उससे बाहर निकल कर स्वयं को उन्नयन करना ! उन्नत करना ।

आप विद्यार्थी हैं , कॉलेज से आ गए, दोस्तों के साथ चौराहे पर गप्पें हाँक रहे हैं .. बैंकों के बाहर लोगों की फ़ार्म भरने में मदद करना ! चाय पिलाना! पानी का बंदोबस्त करना ! यह है स्वयं को उन्नयन करना !

केवल पोथी पढ़ कर आत्मा का , मानसिकता का विकास नहीं होता, दूसरे के लिए एक क़दम बढा कर या स्वयं के लिए कुछ हट कर करने से जो विकास होता है जो भीतर मन प्रफुल्लित होता है उसका कोई मुक़ाबला नहीं । और यदि यह करने की आदत पड़ जाए, तो सदा ही हृदय युवा रहेगा !!

अध्यात्म में यह प्रक्रिया स्वत: ही होती है ! क्योंकि गुरूजन होते हैं करवाने वाले ! नई नई दीक्षा होती है तो जाप का नियम बनता है। कितने वर्ष गुरूजन जाप करवाते हैं। जाप से सेवा भाव जगते हैं, तो सेवा स्वत: आरम्भ हो जाती है, फिर कुछ वर्षों पश्चात सिमरन का पता चलता है, तो प्रेम पूर्वक स्मरण आरम्भ होता है, ध्यान में वृद्धि होती है ! सो आध्यात्मिक यात्रा मेरे करने से लेकर परमेश्वर सब करवा रहे होते हैं, यहाँ तक व इसके कितने पार स्वयं ही चलती जाती है ! सो इसकी बागडोर क्योंकि गुरूजन के हाथ है सो वे स्वाभाविक ढंग से हमसे करवाते हैं !!

सो उम्र कितनी भी हो स्वयं को उन्नयन करने के ढंग निकालने चाहिए, हमें स्वयं को अपने दाएरे से बाहर करके अपना विकास करना चाहिए … इससे बहुत आनन्द मिलता है ! सकारात्मक कार्य और करने हैं और अंत तक अपना विकास हमें करते रहना है, रुकना नहीं … मन के विकास की कोई सीमा नहीं है … अनन्त है वह !!! मन चाहेगा तो शरीर भी तैयार हो जाएगा !!

श्री श्री चरणों में 🙏

दूसरों को साथ लेकर चलना

Nov 7, 2018

जीवन की गति है दूसरों की रफ़्तार के साथ मिल कर चलना। समायोजित बनिए ।

हे माँ ! मेरे पास न बुद्धि है न ज्ञान, न ही समझ । माँ कुछ भीतर ऐसा नहीं जो कह भी सकूँ । यदि आपकी इच्छा हो तो कृपया लिखिए व लिखवाइए व स्वयं ही पढिेएगा !!

हम हर चीज बेहतर सीखते हैं जब मिल बाँट कर सीखें । यदि अकेले ही चलते जाएँ । छिपाते रहें जो सीख रहे हैं । तो वह गहरा कैसे जाएगा ? संत कहते हैं कि विद्या जब बाँटी जाए तो ज्ञान बन जाती है !!

हर क्षेत्र में ऐसा यदि करें तो भीतर कितना उज्जवल हो जाए ? आप अध्यापक हैं । आपको बहुत सुंदर ढंग या बहुत ही अच्छी किताब का पता चला है । पर आप यदि चाहें कि मेरे ही विद्यार्थी सफल हों और शर्मा जी के नहीं , तो बात आध्यात्मिक तौर पर बनती नहीं ! हमें असुरक्षा रहती है कि शर्मा जी को पता चल गया तो उनकी प्रमोशन हो जाएगी और हम रह जाएँगे ! पर यदि रह गए , मिल बाँट कर करने पर, एक है जो खुश हो रहा होगा, एक होगा जो हम पर नाज कर रहा होगा, चाहे संसारी प्रगति उस पल न भी हो… हमारे गुरूदेव! वे तो हर पल का लेखा जोखा देखते हैं!

अब साधना में कुछ पता चला है, तो यदि बाँटेंगे तो गुरूजन प्रसन्न होंगे । यदि ऐसे हो गए,नहीं बस मुझे ही पता चले, बस मैं ही आगे बढता रहूँ, बस मुझे ही गुरूजन का प्यार मिले, तो कितनी मेहनत करनी पड़ती होगी बेचारे गुरूजनों को मुझ जैसों पर !!

एक कक्षा में कुछ बच्चे थे जो शिक्षक को बहुत तंग करते, न पढते न पढ़ाने देते। तो जब काम का समय आया वे अच्छे बच्चों के ग्रुप में होना चाहते थे ताकि नम्बर मिल सकें। शिक्षक बोले बिल्कुल नहीं ! कार्य ऐसा था कि एक ग्रुप को दूसरे ग्रुप के साथ मिल कर काम करना था ! तो जो अच्छे बच्चों का ग्रुप था, उसके छात्र से पूछा गया कि आप किस ग्रुप के साथ काम करना पसंद करेंगे, तो उसने, सबसे बदमाश व कमज़ोर बच्चों के ग्रुप का चयन किया ! शिक्षक उस बच्चे की उदारता देखकर दंग भी रहे और भीतर भर भी गए, इतनी दिव्यता कि प्रमाण देखकर!

हे माँ ! मेरे राममम ! हम स्वार्थ से निकलें और, दूसरों को संग लेकर चलें । सबका भला हो । जो हमारे साथ अच्छा करे उसका भी , जो न भी अच्छा करे उसका भी ! जो दिव्य

आत्माएँ ऐसा करती हैं, वे राम ही तो हैं, क्योंकि रामममम के साथ हम जैसा मर्जी व्यवहार करें वे देवाधिद्व तो देते जाते हैं, केवल देते जाते हैं ! उन सब आत्माओं के श्री चरणों में शत शत नमन 🙏

श्री श्री चरणों में 🙏

जीवन को स्वीकारे

Nov 8, 2016

जीवन को जैसा है स्वीकार कीजिए ~ डॉ गौतम चैटर्जी Positive Mantra

हे करुणामई माँ कृपा कीजिए । जो आप लिखवाएँ वह थोथा शब्द न हों माँ , जीवन में यथार्थ रूप में उतरे ।

बहुत गहरा है यह छोटा सा वाक्य । कई लोग स्वाभाविक रूप से ऐसे होते हैं। मस्त ! जो आ गया ले लिया, जो मिला स्वीकार कर लिया ! बस जीवन जैसा है जीते चले गए ! पर सब ऐसे नहीं होते ! ऋतुओं की भाँति जब परिस्थितियाँ बदलती हैं तब एक जैसा नहीं रहा जाता ! साधारण मनुष्य पिस जाता है, विषाद/ depression में चला जाता है ।

पर साधक को अलग ढंग से सिखाया जाता है। साधक को जीवन जीना सिखाया जाता है ! समर्पण के साथ । यह विश्वास सिखाया जाता है कि जो हो रहा है वह परमात्मा की इच्छा से हो रहा है ! और परमात्मा की करनी में कोई दोष नहीं । जो राम नाम जपते हुए, संतोष में रहते हुए, जो मिले उसे स्वीकार करना सिखाया जाता है !

गुरूजन तो यहाँ तक सिखाते कि यदि सत्संग में आए हैं तो अपने दर्शन करवाने नहीं, बल्कि गुरू के दर्शन करने ! पर हमें होता कि हम पर नज़र पड़ जाए। या हम और क़रीब चले जाएँ कि नज़र पड़ जाए ! पर ऐसा नहीं ! गुरू के संग संबंध में तक यह स्वीकारना सिखाया जाता कि जैसे गुरू रखे, जहाँ गुरू बिठाए बस वहीं गुरू है , और इस तथ्य को स्वीकार करना सिखाया जाता ।

हम गृहस्थ साधक हैं। हमारी अधिकतम समस्याएँ घरेलु होती हैं ! पति पत्नि के संबंध, सास बहु, माता पिता के साथ बच्चों के संबंध ! और कई बार जीवन यहीं उलझ जाता है। क्यो? क्योंकि हमारे अंदर काल्पनिक व छिपी हुई इच्छा होती है कि पति/ पत्नि का प्यार मिले, सास ससुर सुन लें , बच्चे कहना मान जाएँ, प्रमोशन होती रहे, इत्यादि इत्यादि! यदि यह नहीं होता तो दुखी व चिन्तित रहते हैं !

पर क्योंकि साधक हैं, और महामंत्र राम नाम लेते हैं सो हमारी सोच व शक्ति व ऊर्जा भिन्न है । यदि हम समर्पित हैं तो हम ऐसी समस्याओं में गुरूकृपा से ऐसे चलते हैं जैसे कि कुछ हुआ ही नहीं ! हर कोई राम दिखे , हर पल राममय रहें, यहाँ तक पहुँचने के लिए असंख्य राम नाम , गुरूकृपा व समर्पित भाव गुरूजन सिखाते हैं कि अति आवश्यक है । बहुत से भिन्न रास्ते हैं, पर मुझे तो यही समझ आया ! आप सब तो और बेहतर जानते होंगे ! पर जैसे लिखवाया वही श्री श्री चरणों में !

बाँटें

Nov 6, 2016

जीवन की गति है दूसरों की रफ़्तार के साथ मिल कर चलना। समायोजित बनिए ।

हे माँ ! मेरे पास न बुद्धि है न ज्ञान, न ही समझ । माँ कुछ भीतर ऐसा नहीं जो कह भी सकूँ । यदि आपकी इच्छा हो तो कृपया लिखिए व लिखवाइए व स्वयं ही पढिेएगा !!

हम हर चीज बेहतर सीखते हैं जब मिल बाँट कर सीखें । यदि अकेले ही चलते जाएँ । छिपाते रहें जो सीख रहे हैं । तो वह गहरा कैसे जाएगा ? संत कहते हैं कि विद्या जब बाँटी जाए तो ज्ञान बन जाती है !!

हर क्षेत्र में ऐसा यदि करें तो भीतर कितना उज्जवल हो जाए ? आप अध्यापक हैं । आपको बहुत सुंदर ढंग या बहुत ही अच्छी किताब का पता चला है । पर आप यदि चाहें कि मेरे ही विद्यार्थी सफल हों और शर्मा जी के नहीं , तो बात आध्यात्मिक तौर पर बनती नहीं ! हमें असुरक्षा रहती है कि शर्मा जी को पता चल गया तो उनकी प्रमोशन हो जाएगी और हम रह जाएँगे ! पर यदि रह गए , मिल बाँट कर करने पर, एक है जो खुश हो रहा होगा, एक होगा जो हम पर नाज कर रहा होगा, चाहे संसारी प्रगति उस पल न भी हो… हमारे गुरूदेव! वे तो हर पल का लेखा जोखा देखते हैं!

अब साधना में कुछ पता चला है, तो यदि बाँटेंगे तो गुरूजन प्रसन्न होंगे । यदि ऐसे हो गए,नहीं बस मुझे ही पता चले, बस मैं ही आगे बढता रहूँ, बस मुझे ही गुरूजन का प्यार मिले, तो कितनी मेहनत करनी पड़ती होगी बेचारे गुरूजनों को मुझ जैसों पर !!

एक कक्षा में कुछ बच्चे थे जो शिक्षक को बहुत तंग करते, न पढते न पढ़ाने देते। तो जब काम का समय आया वे अच्छे बच्चों के ग्रुप में होना चाहते थे ताकि नम्बर मिल सकें। शिक्षक बोले बिल्कुल नहीं ! कार्य ऐसा था कि एक ग्रुप को दूसरे ग्रुप के साथ मिल कर काम करना था ! तो जो अच्छे बच्चों का ग्रुप था, उसके छात्र से पूछा गया कि आप किस ग्रुप के साथ काम करना पसंद करेंगे, तो उसने, सबसे बदमाश व कमज़ोर बच्चों के ग्रुप का चयन किया ! शिक्षक उस बच्चे की उदारता देखकर दंग भी रहे और भीतर भर भी गए, इतनी दिव्यता कि प्रमाण देखकर!

हे माँ ! मेरे राममम ! हम स्वार्थ से निकलें और, दूसरों को संग लेकर चलें । सबका भला हो । जो हमारे साथ अच्छा करे उसका भी , जो न भी अच्छा करे उसका भी ! जो दिव्य

आत्माएँ ऐसा करती हैं, वे राम ही तो हैं, क्योंकि रामममम के साथ हम जैसा मर्जी व्यवहार करें वे देवाधिद्व तो देते जाते हैं, केवल देते जाते हैं ! उन सब आत्माओं के श्री चरणों में शत शत नमन 🙏

श्री श्री चरणों में 🙏

PM- never stop to think over ur sacrifices

Jan 7, 2017

कभी भी रुक कर न सोचिए कि हमें किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए क्या क्या त्याग करना पड़ा ~ डॉ गौतम चैटर्जी, Positive Mantra.

मेरी व्यक्तिगत रूप से यह सोच है कि जब भी गुरूजन हम से हमारे कर्तव्यों का पालन करवाएं तो यह मन कभी न सोचे कि इस सेवा के लिए हमारी देह को कितने कष्ट उठाने पड़े या घर बार के कार्य कितने त्याग करने पड़े, अपने गुरूजनों के लिए, या अपने कर्तव्यों के लिए।

सब की सोच अलग है। परमेश्वर दया करें कि जब यह सिखाया है कि वे ही करनकरावन हैं तो हर कार्य भी वे ही कर रहे हैं। कभी स्वप्न में भी न ज़िक्र हो कब व कैसे क्या क्या करना पड़ा । यह देह के कार्य , पानी में जिस तरह लिखा नहीं जा सकता, वैसे ही साथ ही साथ मिटते जाएँ।

न सूर्य को स्मरण रहता है कि कितनी सदियों से वह प्रकाश दे रहा है, न वनस्पति को स्मरण है कि कितनों को फल दिया और कितनों को लकड़ी व छांव दी , न नदि को स्मरण है कि कितनों की प्यास बुझाई, कितने जीवों को भोजन करवाया, न गंगा जी स्मरण रखती हैं किकितनों के पाप सदियों से धोती आ रही हैं । न धरती मां स्मरण रखती हैं कि कितने युगों से वे कितने जीवों का पोषण कर रही हैं ।

मेरे प्यारे परमात्मा देव कृपया हम आपकी प्रकृति से एक हो जाएँ । इन जैसा बन जाएँ । कृपा कीजिएगा कृपा कीजिएगा ।

ऐसी सीख सिखाने के लिए कोटिश्य धन्यवाद 🙏

सब आपसे व आपके श्री चरणों में

सपनों को यथार्थ में बदलना

Jan 6, 2018

आज का सकारात्मक विचार

सपनों को यथार्थ में बदलना

कल्पनाएं व सपने किसी पदवी के लिए माएने रखते हैं । सपने देखने वाले बनिए ताकि जीवन में उद्देश्य रख सकें ~ डॉ गौतम चैटर्जी

सपने विचार व इच्छाएं होते हैं । यदि वे सकारात्मक बन जाएँ तो यथार्थ में निश्चित ही बदल सकते हैं !

जिन लोगों को विचारों में रहने की आदत होती है वे इसका लाभ उठा सकते हैं ।

एक बच्चा था । उसे सपने लेने की आदत थी । हर तरह के। खेल देखता तो सपनों में खिलाड़ी बन जाता । कुछ और देखता तो वह बन जाता । उस पर कृपा बरसी । जीवन में गुरू आए । अब उसके सारे सपने अपने गुरू के साथ होने लग गए । दिन भर ! अपने गुरू के सपनों में रहता । पर उसमें यह नहीं था कि वे साकार होंगे। वह विचारों में रहता था तो उसके गुरू ने उसके विचारों का रुख बदल दिया !

कुछ दशक पश्चात , अपने गुरू के साथ लिए एक एक सपने सार्थक होने लग गए ! यहां तक कि पहले के भी सपने पूर्ण होने लग गए !

अब वह बडा हो चुका था ! सब सपने साकार हो गए थे ! पर अब उसने नए सपने लिए ! अपने गुरू की शिक्षाओं पर आधारित ।

सो कामनाएं उपासनाओं में बदलती हैं ! यदि उन कामनाओं को परमेश्वर के साथ संयुक्त कर दिया जाए तो !

जीवन में सपने यदि साकार करने हैं तो भीतर सही जगह संयुक्त होना आवश्यक है ! साधन भिन्न हो सकते हैं किन्तु भीतर सेतु बनना आवश्यक है !

सबके सपने साकार हों । गुरूजन कृपा करें ।

PM – सकारात्मक सोच से जीवन यापन

Jan 5, 2018

आज का सकारात्मक विचार

सकारात्मक सोच से जीवन यापन

सही तरह की सोच से अपनी शक्ति विकसित करना जीवन में माएने रखता है ~ डॉ गौतम चैटर्जी

सोच बहुत माएने रखती है । सोच ही हमें प्रसन्नचित रखती है, सोच ही हमें उदास रखती है, सोच ही हमें बलहीन करती है और सोच ही हमें दिव्यता के बल से शसक्त करती है ! सोच ही हमारा कल बनाती है ! सोच ही ने हमें हमारा आज दिया !

कुछ दिन पहले सुना कि यदि हम अपने से प्रेम करना आरम्भ करते हैं तो हमें दूसरे से भी प्रेम करना सुलभ हो जाएगा ! यदि हम अपने लिए अच्छा सोचते हैं तो हमें दूसरों के लिए भी सदा अच्छा सोचना आएगा ! तो कहा कि आपने सारे जहां को नए साल की बधाई दी ! क्या आपने अपने आप से कहा कि यह वर्ष मेरे लिए सुखद व कृपामय होवे ! हम ऐसा नहीं करते ! हैं न !

पर देखिए हम अपने सबसे प्रिय मित्र हैं ! हमारे भीतर श्रीरामशरणम् वास करता है ! राम नाम व गुरूतत्व !

सो आज करके देखिए कैसा महसूस होता है !

कहिए अपना नाम लेकर , अपने हृदय पर हाथ रखकर , जैसे मैं अपना नाम लेकर कह रही हूँ कि अनुपमा , तुझ पर अनन्त कृपा बरस रही है ! इस वर्ष तू वह अनन्त कृपा हर पल महसूस कर सके !

कितना सुंदर विचार हमने भीतर डाला ! और यही विचार हमें शक्ति देगा !

ऐसे ही जब कोई कटु शब्द लगा कर कहे तो ह्रदय पर हाथ बोलिए – अनुपमा ! तेरे भीतर तो बड़े महान मंदिर का वास है ! श्रीरामशरणम् है भीतर ! गुरूतत्व हैं भीतर !तू क्यों परेशान होता / होती है ? बल्कि तू तो प्यार दे सकता है ! दे ! दिखा अपना जादू!!!!

देखिए यह बोलते ही चेहरे पर अजीब सा आत्मविश्वास व मुस्कुराहट आ जाती है ! करके देखिए ! बच्चों को भी बताइए ! जो मानें तो सही जो न मानें सुना तो सही !

इसका अभ्यास हर रोज हम करें तो हर परिस्थिति में भीतर डुबकी स्वयमेव ही लग जाए !

शुभ व मंगल कामनाएं !