Aug 15, 2017
![](https://ramupasana.wordpress.com/wp-content/uploads/2017/08/img_1429.jpg?w=604)
परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री समझा रहे हैं कि जो प्रार्थनाशील साधक सत्य की साधना साधता है, मानो , निर्पेक्ष सत्य पालन करने का अभ्यास करता है, उसकी वाणी में मोहन शक्ति आनी आरम्भ हो जाती है, उसके वचनों में शक्ति आने लगती है और उसकी दूसरों के कल्याण के लिए प्रार्थनाएँ अवश्य फ़लित होती हैं ।
गुरूजन कहते हैं कि जब हम प्रार्थनाएँ करें तो उन्हें गुप्त रखें ! यहाँ दो जगह गुप्त होने की आवश्यकता है – एक बाहरी और एक भीतर !
क्या मतलब – बाहरी तो समझ आता है कि हम न कहें कि हम प्रार्थना करते हैं पर भीतर ? भीतर मानो , अपने मन को भी न पता लगने दें कि प्रार्थना हुई !
पर यह कैसे सम्भव है ? संतगण कहते हैं कि राम ही प्रार्थना करते हैं । सो जब राम प्रार्थना करते हैं, मन को यकीन होना चाहिए कि प्रार्थना मैंने नहीं राम ने ही की !
क्योंकि भीतर सत्यता है और हम सत्य से संयु्कत होकर प्रार्थना करते हैं, व वचन बोलते हैं, सो उन सबमें भीतर विराजमान परम सत्य का बल वितरित होता है। वह बल वचन में जाता है और मन में भी !
सो राम ने प्रार्थना की, राम का बल आया, राम द्वारा फ़लित हुई ! सब राम !
सब आपका व आपसे