Category Archives: प्रार्थना और उसका प्रभाव

हर के साथ एक सा व्यवहार 

Aug 21, 2017 

परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री कह रहे हैं कि जो साधक जीवन में पवित्रता लेकर आता है वह अपने काम काज में सरल, सच्ता , सभ्य होता है। वह हर एक के साथ समान बर्ताव करता है । अपनों से परायों से, मित्रों से, साधारण जनों से समान व्यवहार करता है । और इसी को संतगण परम शुचिता कहते हैं । 
घर के सदस्यों को भी वैसा ही मान देना जैसे बाहर के लोगों को, घर के लोगों से भी वैसे ही मीठा बोलना जैसे बाहर के लोगों के साथ ! तो ही कर्म की शुचिता मानी जाती है। 

कर्म में शुचिता 

Aug 20, 2017

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महापाजश्री कहते हैं कि प्राप्थनाशील के लिए पवित्रता बहुत माएने रखती है । कर्म की शुचिता का भी बहुत बड़ा स्थान है । वह जैसा जाने वैली विचारे और वैसा कहे व करे । उसके कर्मों में छल , माया, कटुता नहीं आनी चाहिए । 
पूज्य महाराजश्री कहते कि साधक कहते हैं कि फिर काम धंधा कैसे चलेगा ? फिर संसार में कार्य व्यवहार कैसे चलेगा । पर चलेगा, यदि परमेश्वर को प्रमुखता देनी है तो ! सब चलेगा । 
हम पहेले बार बार विनती करते कि यदि किसी लेख पर लिंक है, या आप कोई लेख कहीं से ले रहे हैं तो वह लिंक नीचे लगाए या लेखक का नाम लिखें । नहीं तो वह चोरी मानी जाती है ! आज की युवा साधक ऐसा कर रहे हैं ! नीचे लिंक देते हैं या लेखक का नाम देते हैं । बहुत गौरवांगित होते होंगे गुरूजन ! यह कर्म की शुचिता के अंतर्गत आता है ! 
कर्म की शुचिता हमें साधना से मिलती है ! और यह महत्वपूर्ण भी है क्योंकि इनसे हमारा भविष्य निर्धारित होता है । और सबसे महत्वपूर्ण हमारा एक एक कर्म गुरूजन की नज़रों में होता है ! 

मन, वचन व विचारों की शुचिता, परम शुचिता

Aug 19, 2017

परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि शुचिता अर्थात् पवित्रता वह है जो लेन देन में व्यवहार व्यापार में लाई जाए । 
यहाँ पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि हम प्रभु के आगे तो बहुत सच्चे सुच्चे होते हैं किन्तु बाहर आते हैं अपने व्यापारिक स्वभाव में आ जाते हैं । 
जो जन ऐसा स्वभाव रखते हैं उनके लिए संसार मे व्यवहार करना कई बार कठिन भी हो जाता है। क्योंकि वे स्वयं तो ऐसे नहीं होते पर जब दूसरे उनसे बाहर कुछ अकेले कुछ व्यवहार करते हैं तो संसार से स्वाभाविक विरक्ति आ जाती है । कठिन होता से उनसे संसारिक व्यवहार करना । 
पूज्य स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि केवल देह को साफ रखना ही शुचिता नहीं है बल्कि मन, वचन व विचारों की पवित्रता ही असली शुचिता है ! 
संतगण कहते हैं कि जो जन परमेश्वर के जितने निकट जाता जाएगा उसमें हर प्रकार की शुचिता का वास होने लगेगा । महाराजश्री कहते हैं कि बर्फ़ के पास ठण्डक है, उसके निकट जाने से ठण्डक मिलती है । परमेश्वर पूर्ण पवित्र हैं , उनके निकट जाने से स्वयं भी भीतर पवित्रता का ही वास होगा । 
प्रभु अपने ऐसे बच्चों की स्वयं की रक्षा करते हैं। संसार चाहे जितनी मर्जी चतुराई दिखाए परम प्यारे अपने बच्चों के स्वयं ही सहायक बनते हैं । 

प्रार्थना की पात्रता के लिए परम शुचिता 

Aug 18, 2017

परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री कह रहे हैं कि जो व्यक्ति निष्काम प्रार्थना करता है उसमें उचित कोटि की शुचिता, सीधापन, बिना बनावट के व्यवहार होना आवश्यक है ।

प्रार्थना करने की पात्रता उसी जन को प्राप्त होती है जिस में छल, कपट, चालाकी , दम्भ व द्रोह आदि दुर्गुण न हों । परम पवित्रता जो साध ले वह प्रार्थना की पात्रता प्राप्त कर लेता है । 

क्योंकि हम भक्ति भाव के अनुयायी हैं, सो पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि यदि कोई बहुत दुराचारी व्यक्ति भी रोकर बिलख कर प्रार्थना करे तो परमेश्वर कृपा करते हैं । 
यदि हम ऊपर कहे जैसे नहीं हैं पर फिर भी भाव विभोर होकर दूसरों के लिए प्रार्थना करें तो ऊपर वर्णित किए गुण स्वयमेव आने लगते हैं । 
सब आपका प्रभु 

दोष निवारण 

Aug 17, 2017

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री कह रहे हैं कि जो प्राप्थनाशील व्यक्ति है, और जिसने सत्य पालन का विच लिया हो वह पर चर्चा किसी भी रूप में न करे ! खासकर नकारात्मक ! किसी की बात नकारात्मक ढंग से करने से उसके मन में वह नकारात्मक बीज बैठ जाएगा । 
यहीं तक कि टी वी पर आ रहे अन्य पंथों व मतों के संतों को भी नकारात्मक रूप से नहीं कहना । जो चीज नहीं पसंद वहाँ से स्वयं को हटा लें पर चर्चा न करे, ऐसा परामर्श गुरूजन हमें देते हैं । 
पूज्य गुरूदेव ने तो एक साधक के लिए पर निंदा निषेध बताया है ! यह हमें सजग होकर बहुत निष्ठा से पालन करना चाहिए । 
पूज्य स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि सत्य का अनुशीलन करने वाले की वाणी में मधुरता व कोमलता हो । बिना किसी स्वार्थ के हो ! 
पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि जो जन सत्य का पालन करते हैं और पर निंदा किसी रूप में भी नहीं करते न मन में न वचन में तो उनकी प्रार्थनाओं के शब्द , पर हित के लिए वचन, मंत्र व औषधियों का काम करते हैं ! 

प्रेम पूर्वक नाम जाप व गुरूजनों से शुचिता की विनती मन से सभी दोषों का निवारण कर देती है। 

परमेश्वर मार्गदर्शन करते हैं, सत्य पालक साधक का 

Aug 16, 2017

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री बहुत गहन रूप से समझाते हैं कि जो प्रार्थनाशील व्यक्ति निरपेक्ष सत्य की साधना साधता है तो उसमें भगवग्वाणी का अवतरण होता है। सत्य सिद्ध हो जाने पर मानो कि सत्य का मन वचन कर्म से पालन हो जाने पर प्रार्थना़ील व्यक्ति को उसके परम धाम के पथ के पथ प्रदर्शन की प्रेरणाएँ प्रसाद स्वरूप मिलती जाती हैं। 
प्रार्थनाशील व्यक्ति जो निर्पेक्ष होता है, जिसने स्वीकार लिया होता है कि राम ही प्रार्थना करते हैं व स्वीकारते हैं, सो उसको स्वयं पता भी नहीं चलता और राम अपने कार्य किए जाते हैं। 
सो मन व वचन की शुचिता बहुत माएने रखती है, एक प्रार्थनाशील साधक के लिए! 
सब आपका 

सत्य निष्ठ में वचन बल 

Aug 15, 2017

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री समझा रहे हैं कि जो प्रार्थनाशील साधक सत्य की साधना साधता है, मानो , निर्पेक्ष सत्य पालन करने का अभ्यास करता है, उसकी वाणी में मोहन शक्ति आनी आरम्भ हो जाती है, उसके वचनों में शक्ति आने लगती है और उसकी दूसरों के कल्याण के लिए प्रार्थनाएँ अवश्य फ़लित होती हैं ।
गुरूजन कहते हैं कि जब हम प्रार्थनाएँ करें तो उन्हें गुप्त रखें ! यहाँ दो जगह गुप्त होने की आवश्यकता है – एक बाहरी और एक भीतर !
क्या मतलब – बाहरी तो समझ आता है कि हम न कहें कि हम प्रार्थना करते हैं पर भीतर ? भीतर मानो , अपने मन को भी न पता लगने दें कि प्रार्थना हुई !

पर यह कैसे सम्भव है ? संतगण कहते हैं कि राम ही प्रार्थना करते हैं । सो जब राम प्रार्थना करते हैं, मन को यकीन होना चाहिए कि प्रार्थना मैंने नहीं राम ने ही की !
क्योंकि भीतर सत्यता है और हम सत्य से संयु्कत होकर प्रार्थना करते हैं, व वचन बोलते हैं, सो उन सबमें भीतर विराजमान परम सत्य का बल वितरित होता है। वह बल वचन में जाता है और मन में भी !

सो राम ने प्रार्थना की, राम का बल आया, राम द्वारा फ़लित हुई ! सब राम !
सब आपका व आपसे

हाँ न कहने में दृढ़ रहना 

Aug 14, 2017

परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री आज निरपेक्ष सत्यता मध्य हाँ न में दृढ़ता पर बल दे रहे है । एक प्रार्थनाशील साधक को अपने वचन से हिलना नहीं चाहिए ।

पूज्य महाराजश्री प्रवचन पीयूष में उल्लेख करते हैं कि किसी के घर गए । वहाँ उन्होंने खाने को पूछा तो न कर दी। और आग्रह करते रहे तो हाँ कर दी। यह सही नहीं है । 

पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि हमें स्वयं भी इसका पालन करना चाहिए और दूसरे को भी करने देना चाहिए । उसे भी गिराना नहीं चाहिए । 
बच्चों में भी यह गुण आना चाहिए । बच्चे कुछ कहेंगे । फिर हंस कर कहते हैं नहीं नहीं मज़ाक़ में कहा था। छोटी छोटी बातें यदि हम नहीं करेंगे तो आगे भी बच्चों को भी कह सकते हैं । 

यहाँ शायद यह भी आ जाता हो कि यदि एक क़दम किसी चीज के लिए उठा लिया तो फिर किसी भी कारण घबरा कर पीछे नहीं हटना। यह आत्मविश्वास में कमि के चिह्न हैं। 

यह बातें इतनी आसान नहीं हैं क्योंकि इसमें हमें सजग होना पडता है और स्वयं को देखना पड़ता है। पर गुरूजन कहते हैं कि निरन्तर अभ्यास से यह आ जाती हैं । 

छोटी छोटी बातों में सत्य पालन 

Aug 13, 2017

परम पूज्यश्री महाराजश्री एक प्रार्थनाशील व्यक्ति के लिए सत्य निष्ठ होने के लिए बहुत महत्व देते हैं । 
जब हम सत्य का पालन करते हैं तब हम परमेश्वर से संयुक्त होते है , क्योंकि परमेश्वर स्वयं सत्य हैं । तब हमें अपने आत्मा के साक्षी भाव पर भी गूढ विशिवासस होता है। अपने आत्मा के विरुद्ध जाना मानो परमेश्वर को नकारना । 
इसी तरह छोटी छोटी बातों में सत्य में दृढ़ता रखनी अति आवश्यक है । कुछ कह कर पलट न जाना यह सही नहीं। बच्चे से कहा है जो तूने लेना है ले लेना और फिर पलट जाना कि यह ले या वह ले , यहाँ भी सही नहीं । बच्चों के साथ तक सत्य पालन करना बहुत आवश्यक है ! 
जब तक हम ऐसे गुण अभ्यास में नहीं लाएंगे , तब तक साधना का रंग कैसे चढेगा । तब कैसे प्रार्थनाएँ स्वीकार होंगी ? तब तक फिर इधर उधर ही भटकते रहेंगे ! 

सत्य पालन मूल है 

Aug 12, 2017

परम पूज्यश्री स्वामीजी महाराजश्री बहुत ही स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जब जड़ ही नहीं जमेगी तो फूल फल कहां से लगेंगे । सो निरपेक्ष सत्य,मतलब , कि मेरा आत्मा साक्षी है और हर पल मेरे कृत्यों को देख रहा है और वहाँ ही सत्य रे सेकते विराजमान हैं। 
यद्यपि यह बहुत कठिन है, गुरूजन ऐसा कहते हैं। हम व्यवहारिक रूप में बिन सोचे छोटे छोटे असत्य वचनों का उपयोग करते हैं ! कभी किसी परिस्थिति से बचने के लिए, शायद इसलिए कि हमारा स्पष्ट कहने का स्वभाव नहीं है ! 
पूज्यश्री महाराजश्री कहते हैं कि हमने फ़ोन किया । जब हम चर्चा करते हैं तो हम कहते हैं फ़ोन पर बात हुई ! हम यह नहीं बताते कि उसका फ़ोन आया । फिर हम चर्चा बताते हैं । हम चर्चा बताते समय कुछ बात रख लेते हैं और कुछ बताते हैं !! सो छोटी छोटी बातों में भी हम सत्य पालन नहीं करते ! हमारा स्वभाव ही ऐसा बन गया हुआ है !
पर स्वामीजी महाराजश्री कहते हैं कि यदि कोई निरपेक्ष सत्य का पालन करता है तो उसका मनोबल , इच्छा शक्ति व आत्म बल बहुत सुदृढ़ हो जाता है ! 
राम नाम से सत्य पालन भीतर बसने लगता है और समर्पण से गुरू कृपा हमारे अवगुणों को स्वीकार करके धो डालते हैं। पर एक प्रार्थनाशील होने के नाते हमें सत्य पालन सदा व्यवहार में लाना चाहिए ! इससे शुचिता और गहरी होती है । 
सब आपका 🙏