Category Archives: ब्रह्मज्ञान

ब्रह्म विद्या ( १३-१५)

May 5, 2018

भ्रम भिति को भेदन हारी, नाशक भव भय अविद्या भारी ।

पाप ताप सब मोचनकारी, ब्रह्म ज्ञान है विद्या सारी ।।१३।।

परम ज्ञान यह जो जन पाये, जन्म मरण उस पास न आए।

हो मग्न राम रस ले के, पतित सुपावन में मन दे के ।।१४।।

ज्ञान वही दु:ख हरण बताया, ब्रह्म ज्ञान तथा ही गाया ।

रहे तृप्त सदा इस में ही , विकसे ज्ञान यही जिस में ही ।।१५।।

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री

हे परम पूजनीय सद्गुरू महाराजश्री सब आपका व आपसे

संशय व भ्रम को तोड़ कर व समस्त अविद्या, जो इतनी भारी होती है कि हर पाप का मूल होती है, उस सब का नाश हो जाता है । हर तरह का पाप व उसके फल की तपिश से ब्रह्म ज्ञान द्वारा प्राप्त विद्या सब कुछ नष्ट कर देती है । ब्रह्म ज्ञान ही असली विद्या है । यही विद्या हर तरह की अज्ञानता को दूर कर देती है।

जो जन यह परम ज्ञान प्राप्त कर लेता है, उसके पास जन्म व मरण निकट नहीं आता है । राम रस लेकर ऐसा मग्न हो जाता है जब वह अतिश्य पावन , पतितों को पार लगाने वाले राम नाम के रस में अपने मन को दे देता है ।

ज्ञान वही है जो अज्ञान रूपी दुख को हर्ता है , और वह ऋषियों ने ब्रह्म ज्ञान ही गा कर बताया है । जिस में यह ज्ञान खिल जाता है वह सदा ही इस में तृप्त होकर जीवन व्यतीत करता है ।

शरणागत जन जान कर, मंगल करिए दान ।

नमो नमो जय राम हो, मंगल दया निधान ।।

ब्रह्म ज्ञान ( ११-१२)

May 4, 2018

सुन कर शब्द मनन कर धारे, बार बार वह भेद विचारे ।

चिन्तन कर निश्चय में लावे, अचल धारणा ठीक ज़मावे ।।११।।

श्रवण बहुत मनन कर के ही, निधिध्यासन करे सत्य स्नेही ।

श्रुति वचन में निश्चय ला के, होवे तृप्त सुज्ञान को पा के ।।१२।।

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री, श्रीभक्ति प्रकाश जी

हे सद्गुरू महाराजश्री सब आपका व सब आपसे

श्रीगुरूमिख से शब्दों के सुनकर मन में उन्हें धारण करना होता है। मानो कि उन दिव्य शब्दों को श्रवण करके उन्हें मन में बिठा लेना होता है । और मन में रखकर बार बार उन शब्दों के भेद जानने की कोशिश करनी होती है । गुरूदेव से प्रार्थना कंपनी होती है कि हमें जो उन्होंने कहा है उसके भीतर छिपे भेद कृपया बताएं । उन शब्दों का चिन्तन करके उन पर निश्चय धार कर , पूर्ण विश्वास करके, कभी न डावाँडोल होने वाले विश्वास से , भीतर उन्हें टिका लेना चाहिए ।

गुरूवचनों को बार बार श्रवण करके मनन करके व अनवरत, बार बार उस परम प्यारे सत्य स्नेही को स्मरण करना चाहिए । गुरुवचनों में जब पूर्ण निश्चय हो जाए तो जिज्ञासु उस परम पावन ज्ञान को पाकर तृप्त व संतुष्ट हो जाता है। उसे हर ओर से संतुष्टि प्राप्त होती है। वह अपने आप से सम्पूर्ण रूप में संतुष्ट हो जाता है ।

जो तार राम से जोड़े ऐसे हमें संत मिले

ब्रह्म ज्ञान ( ९-१०)

May 3, 2018

ऐसे हरि को मन से राधे, गुरू मुख से ले साधन साधे ।

वृत्ति नाम में खींच लगावे, सहज समाधि इसी से पावे।।९।।

अरणी मथन से अग्नि जैसे, जगे ध्यान से आत्मा तैसे ।

बारम्बार मन को टिकाना, अर्थ मर्म अभ्यास का माना ।।१०।।

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री

ओ सद्गुरू महाराज सब आपका सब आपसे

कैसे हरि को मन में बिठा कर आराधना है यह सब गुरू के श्रीमुख से ही विभिन्न साधन पता चलते हैं । हरि से प्रेम, हरि के पावन नाम को जपना, उसको ध्याना, अनेकों विधि केवल श्री गुरू के श्री मुख से ही मिल सकती है । नाम में अपना मन केंद्रित करके , सारी एकाग्रता से मन को परमेश्वर में खींच कर लगाने से सहज समाधि स्वयमेव ही प्राप्त हो जाती है । कोई भरसक प्रयास नहीं करना पडता ।

जिस तरह दो लकड़ियों को रगड़ने से अग्नि निकलती है उसी तरह ध्यान द्वारा आत्मा जगती है । बार बार मन को टिकाने से, अभ्यास करने से ही फिर सब समझ आने लगता है । क्यों अभ्यास इतना आवश्यक है यह पता लगने लगता है ।

नमो नम: गुरूदेव तुमको नमो नम:

ब्रह्म ज्ञान ( ७-८)

May 2, 2018

दया रूप वह देव दयाला, दिव्य रूप सुजन रखवाला ।

शून्य रूप वही है गाया , तेजोरूप कथन में आया ।।७।।

सभी ओर सब दिश में राजे, सभी लोक में एक विराजे।

देश काल से न्यारा सोहे, प्रिय रूप प्रेमी मन मोहे ।।८।।

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री

सर्व आपसे ओ सद्गुरू महाराज सर्व आपका

वे परमेश्वर दयामय है । दीन दयाला है । वह दिव्य है और सबसे निकटतम सुहृद है। बिन कारण संग देने वाला।बिन कारण रक्षा करने वाला ।

हर ओर हर दिशा हर देश में केवल वह ही विराजता है ।सभी लोकों का स्वामी केवल एक वह ही है । उसको देश व काल बाँध नहीं सकते । वह देश काल से पार है । एक वही इतना प्यारा है इतना प्रिय है कि ऐसा प्रीयतम कोई नहीं ! वह ऐसा प्रेमी है मन को अपनी ओर आकर्षित करके पूर्ण रूप सो मोहित कर लेता है । सुधि नहीं रहने देता ! बेसुध कर देता है । ऐसा प्रेमी जगत में कोई नहीं । केवल वह ही एक मात्र प्रेमी

है ।

रााााााओऽऽऽऽऽम

ब्रह्म ज्ञान ( ५-६)

May 1, 2018

ब्रह्म एक अद्वैत कहावे, वेद उसे निरपेक्ष बतावे ।

साक्षी रूप सर्व का ज्ञाता, कर्ता पुरुष सृष्टि का त्राता ।।५।।

परम धाम सब पालन हारा, सब में सब है न्यारा सारा ।

शासक धारक जग का जाना, दाता परम वही है माना ।।६।।

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री

सर्व आपसे ओ सद्गुरू महाराजश्री व सर्व आपका

वह ब्रह्म ही है केवल और वेद कहते हैं कि वह भेद भाव नहीं करता , पक्षपात नहीं करता । जो कुछ भी संसार में हो रहा है उसका वह साक्षी है और सब कुछ जानने वाला है । वही है समस्त सृष्टि का कर्ता पुरूष । वही हर कार्य कर रहा है । हर चीज उसी से हो रही है ।

वही बाहर एक जीव का पालन हारा। वह सब मे रहता है पर है वह सब से न्यारा । समस्त ब्रह्माण्ड का स्वामी है सबकुछ उसी ने धारण किया हुआ है । वही एक दाता है सारे विश्व का । उसी का सब है और सब उसी से है।

ऐसे परम प्यारे परमेश्वर के श्री श्री चरणों में साष्टांग दण्डवत् नमन

ब्रह्म ज्ञान ( ३-४)

April 29, 2018

सकल जगत् में उसकी जोती, चमके सुजीवन सत्ता होती ।

अमूल मूल ही सर्वधारा, सब में रमा सभी से न्यारा ।।३।।

सब के पास दूर हरि जाना, भीतर बाहर एक समाना ।

कारण आदि जन्म जग का ही, है होगा पहले हरि था ही ।।४।।

परम पूज्य़श्री श्री स्वामीजी महाराजश्री

सर्व आपसे प्रभु हे सद्गुरू महाराजश्री

सकल ब्रह्माण्ड मे परम पावन परमेश्वर की है ज्योति जगमगा रही है । मानवों मे , वनस्पतियों में, पशु पक्षियों में , फूल पत्तियों में, हर एक चीज में केवल वे ही हैं । उन्हीं की उपस्थिति से ही जीवन में शुभ प्राणों का संचार है। जो जड़ है जैसे वृक्ष आदि उनके भी जो निराधार हैं उनका भी अस्तित्व उन प्राण प्यारे परमेश्वर से ही है।

वे सबके पास हैं, अति अति पास, स्वास से भी पास, पर सब श्री हरि को दूर समझते हैं ।वे जैसे भीतर विराजित हैं उसी तरह बाहर भी विराजित हैं । कोई भेद नहीं ! वे जग में हर के जन्म का कारण हैं । वे जिसमें विराजते हैं, उसी का जन्म होना माना जाता है । पर हरि का तो जन्म नहीं ! वे तो पहले भी थे, अब भी हैं और सदा सदा रहेंगे !

राम ही केवलम्

राम ही केवलम्

सब आपही से व आपही के श्री श्री चरणों में

ब्रह्मज्ञान

April 27, 2018

सत्य ही ज्ञान अनन्त स्वामी, सच्चिदानंद हि अन्तर्यामी ।

त्रिगुणातीत अचल अपारा, उस का ही है विश्व पसारा ।।१।।

शुद्ध विमल हरि है अविनाशी, पूर्ण पुरूष प्रभु प्रकाशी ।

अखण्ड अतुल अगोचर सोई, सत्ता परम सदृश नहीं कोई ।।२।।

परम पूज्यश्री श्री स्वामीजी महाराजश्री , श्री भक्ति प्रकाशी जी

हे सद्गुरू महाराज सर्व आप व आपसे ।

वह परम पुरुष सच्चिदानन्द परमात्मा सत्य व ज्ञान के भण्डार हैं , पर अंतर्यामी है, माएने अंत: करण में विराजित हैं, हृदय की हर बात जानने वाले हैं । तीनों गुणों के पार , सत्वगुण, रजोगुण व तमोगुण से पार। यह गुण इन्हें लेश मात्र भी छूते नहीं ! ऐसे परमेश्वर का यह समस्त संसार है सम्पूर्ण विश्व है !

हरि सदा सदा अनादि काल से हैं। इनका जन्म नहीं होता । ये पूर्ण पवित्र व पावन हैं । इन्हीं पूर्ण पुरुष द्वारा समस्त ब्रह्माण्ड में प्रकाश है।ये ही केवल पुरुष हैं ! हम देह रूपी पुरुष स्त्री के वे ही केवल सम्पूर्ण पुरुष परमेश्वर हैं । वे अखण्ड हैं, टुकड़ों में नहीं हैं , कहीं हैं कहीं नहीं, ऐसे नहीं ! उन जैसा कोई नहीं ! अद्वितीय हैं और हर जगह विराजमान हैं। आकाश पाताल अन्य लोक, सृष्टि के कण कण में , ज़र्रे ज़र्रे में।ऐसी सत्ता के मालिक कोई नजर नहीं आता ! उनके समान कोई नहीं ! उनके जैसा कोई है ही नहीं !

ऐसे परमेश्वर ऐसे पूर्ण पुरुष के श्री श्री चरणों में साष्टांग दण्डवत प्रणाम