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FAQs- परिवार से धोखा तो क्या करें 

क्या करें जब हमें पता चले कि हमारा जीवन साथी हमें धोखा दे रहा है ?  

इस विष्य पर परम पूज्यश्री महाराजश्री ने एक कहानी बताई – 

एक परिवार में दो लड़के व एक लड़की थे । बच्चे कुसंस्कारी थे। मेहनती नहीं थे । मुफ्त का पैसा मिल जाए इन चीज़ों में दिमाग़ रहता था। सो उन्होने एक योजना बनाई । लड़की का विवाह करने की सोची । और विवाह उपरान्त लड़के को मार कर विवाह की धन राशी ले जाने की योजना बनाई । 
विवाह हुआ । वर और वधु विवाह के पश्चात लड़की वालों के जब फेरा करने जाना होता है तो लड़की की जिद से जंगल से होते गए । बीच में लड़की के भाइओं ने वर पर आक्रमण किया और उसे पीट कर एक कुएँ में गेर दिया । 
जिसको राखे साइँया मार सके न कोए। 
लड़का बच गया । वह बहुत ही संस्कारी युवक था और साधक। वह वापिस ससुराल पहुँचा । भाई व बहन देख कर हैरान हो गए । वधु को सम्मान सहित घर लाया । 
कितने वर्ष पश्चात आज वे वृद्ध थे । घर में बेटे बहुओं व पोतों की रौनक़ । आज एक छोटी बहु ने प्यार से पूछा – बाबा! आजकल आप अधिकतम समय मौन रहते हैं और यह माला पकड़ी रखते हैं । 

बाबा बोले- बिटिया ! इस माला की क्या क्या बातें बताऊँ । इस माला ने मुझे नया जीवन दिया, धोखा व कपट के प्रति सहनशील बनाया, क्षमा करना सिखाया ! 
उन्होंने जब यह वाक्य कहे , उनकी पत्नी सब समझ गई कि इतने वर्ष मेरे पति को सब पता होते हुए भी वे कैसे शान्त रहे गृहस्थी चलाई और वह हर पल ग्लानि में तड़पती रही ! पति ने हर कर्तव्य निभाया ! सब जानते हुए भी ! 
सो बाबा बोले – हर वर्ष मैं यह माला करनी बढा देता और मुझे बहुत कुछ इससे मिला है । कि अब तो कुछ बोलने तक की आवश्यकता नहीं ! 
सो साधना , नाम जप बहुत बहुत बल देता है परिवार को बनाए रखने का , धैर्य देता है व क्षमा भी करना सिखाता है, पीडा से आरोग्यता भी देता है । 
यह एक साधक का नज़रिया गुरूजनों ने बताया है । कई बार बच्चों के ख़ातिर सदस्य परिवार नहीं तोड़ना चाहते । सो राम नाम बहुत चीज़ें सम्भव करवा देता है । 

FAQs – पारिवारिक नकारात्मकता

Aug 7, 2017


प्रश्न : मेरे परिवार में एक संबंधी जिनसे हमारा मिलना हर रोज होता है वह शरेआम ललकार कर गई कि मैं देखती हीं कि तेरा विवाह कैसे होता है । वे हर गलत जगह पर जाती हैं यह पता है । कल ध्यान में भी मुझे नकारात्मक चीज़ें दिखी न महसूस हुई । हमारे परिवार पर विपदा आई कोई मदद नहीं की । ऐसे में मुझसे उन्हें राम राम भी नहीं होती । फिर स्वामीजी महाराज जि के ” उपासक का आंतरिक जीवन” जीवन में नहीं लागू होता तो, मन में साधना पर प्रश्नचिह्न लग जाता है । 
पारिवारिक संबंधों की ऐसी कड़वाहट में यह जरूर समझना आवश्यक है कि इनसे बहुत लोग गुज़र रहे होते हैं। हम अकेले नहीं । लोगों को छोड़ कर दायरा छोटा करें तो बहुत साधक भी ऐसी नकारात्मक शक्तियों का शिकार होते हैं । 
पूज्यमहाराजश्री को जब दिल्ली लाया गया , उन्होंने क्या क्या सहा होगा यह उनकी कुछ माह पश्चात जालंधर में कही गई पंक्ति से पता चलता है – मुझे तो लगता है मुझे गोली से ही मार देंगे ! 

उनके जीवन से हमें सीखना है कि उनके आस पास इतना घृणा ईर्ष्या की तरंगें मिलती होगी पर राम नाम समर्पण विनम्र भाव व सबमें राम के सिवाय कुछ देखना ही न , उनके ऐसे गुणों ने न केवल उन्हें साधकों के हृदयों पर राज करवाया बल्कि उन्होंने ऐसे देह त्यागा कि उन्हें पसंद न करने वाले व ईर्ष्या करने वाले उनसे अपने संबंध जोड़ने लग गए ! कोई कुछ न कह सका ! 
महाराजश्री ने स्वयं श्रीमुख से कहा है कि संतों को जितना नकारात्मकता का समाना करना पडता है वह सामान्य साधक ने सुना भी नहीं होता । 
पूज्यश्री महाराजश्री ने एक पल भी पूज्य़श्री स्वामीजी महाराजश्री के आदेशों का उल्लंघन नहीं किया । चाहे बाहर संसार ने उन्हें क्या क्या न कहा होगा । वे सदा हर एक से प्रेम से ही मिले । 
हमारे गुरूजन हमारे आदर्श हैं । उन्होंने सब भुगता है व करके दिखाया है कि राम नाम सुरक्षा कवच है , राम नाम हर नकारात्मक शक्ति को विध्वंस करने की क्षमता रखता है, चाहे वह सामान्य व्यक्ति में हो चाहे साधक में ! समर्पित साधक का बाल भी बाँका नहीं हो सकता । 

ऐसे में हम अपनी साधना और बढा दें और जो परिवारजन ऐसा करते हैं उनके लिए एक श्री अमृतवाणी का पाठ अवश्य समर्पित कर दें । 

हर पल तुझे सिमरूं 

क्या होगा यह सोच कर कि मेरे प्यारे मुझे हर पल प्यार कर रहे हैं ? क्या तात्पर्य है इस भाव का ! 

हम संसारिक जीवन में आए दिन अपने प्रियजनों से या अपने विचारों से जूझते रहते हैं । हम उनसे व अपने आप से स्वीकृति चाहते हैं । चाहते हैं कि वे हमें समझें और अपनाएँ और हमें बात बात पर गलत न ठहराएँ ! या हमारे विचार ! 
इन सब को हटा कर यदि हम भीतर नज़र डालें तो वे देवाधिदेव मुस्कुराते हुए मिलेंगे । कह रहे होंगे कि अरे ! मत परेशान हो ! मैं जानता हूँ सब ! मेरे बुद्धु ! मैं ही तो तुझे ऐसा बना रहा हूँ ! मुझे तू हर रूप में पसंद है । जैसे मर्जी तू दिखे, जैसी मर्जी तेरे विचार हों मुझे तू पसंद है और मैं तुझसे प्यार करता हूँ ! 
कितना सुखद होगा ! एक दम शान्ति मिलनी चाहिए ! पर क्योंकि हम परिपक्व नहीं हैं साधना में हम बाह्यमुखी हैं, हम सोचते हैं कि हमें संसार की स्वीकृति से चैन मिलेगा ! पर नहीं ! चैन, शान्ति तो केवल उस देवाधिदेव पर नज़र रखने से ही मिलेगा ऐसा गुरूजन कहते हैं ! शान्ति तो हर पल अंतर्मुखी होने से ही मिलेगी ! नहीं तो अशान्त रहते रहेंगे अपेक्षाओं में ! 
दूसरों से अपेक्षा सदा सदा पीड़ा ही देगी ! यह निश्चित है ! 
राम नाम ऐसी अपेक्षाएँ पर ठहराव लाते हैं ! राम नाम ऐसी कामनाओं पर रोक लगाते हैं ! 
तभी बस यही यातना करनी चाहिए 
हर पल हर घड़ी सुमिरन हो तेरा 

ऐसा बनादो प्रभु जीवन मेरी

जब परिवार साधना में अवरोधक हो 

July 9, 2017


प्रश्न : मुझे मेरे ससुराल वाले कहते हैं कि राम नाम न जपा कर । तेरा घर टूट जाएगा !!! मेरे पति व अन्य सदस्य गुरूजनों के लिए अपशब्द उपयोग करते हैं । पर गुरूजन की असीम कृपा है कि मेरे कितने सवा करोड़ संकल्प ऐसे माहौल में भी उन्होंने पूर्ण करवाए ! 
प्रश्न : मेरे ससुराल वाले कहीं और आस्था रखते हैं । पर वे मेरे गुरूजनों व श्रीरामशरणम् को बहुत बुरा भला कहते हैं ! मैं विरोध नहीं कर पाती । क्या यह मेरे में दोष है ? 
परम पूज्यश्री महाराजश्री ने बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यदि परिवार वाले आपकी साधना में अवरोधक होते हैं और यदि आप उनके कहने से साधना बंद कर देते हैं तो वे पाप के भागी होंगे ! पर यदि आप साधना करते रहते हैं तो उनको पाप नहीं छूता । थोड़ी खिट पिट रहती है पर ठीक हो जाता है कालान्तर में ! 
राम तो सूत्रधार हैं । राम जोड़ते हैं ! राम सर्वशक्तिमान हैं वे शक्ति देते हैं । पीडा सहने की नज़रअंदाज़ करने की व साधना में डटे रहने की ! सो निश्चिन्त होकर व निडरता से कहिए कि मेरे राम घर नहीं टूटने देंगे जब तक कोई मुझे न निकाल दें ! 😃 नकारात्मक माहौल में सवा करोड़ संकल्प होते रहने मानो गुरूजन की शक्ति पूर्ण रूप से अंग संग है 
विरोध करने से कभी किसी को कुछ समझ नहीं आता ! मन में कह सकते हैं कि आप मेरे प्यारों को नहीं समझेंगे ! और यही पीड़ा हमें गुरूजनों के और निकट ले आती है । हम अपने प्यारे से कह सकते हैं कि आपके विरुद्ध सुना नहीं जाता ! आप सद्बुद्धी दीजिए न कि वे व्यर्थ पाप न एकत्रित करें ! और यहाँ समझ लेना चाहिए कि यह मेरी व्यक्तिगत यात्रा है और मुझे अकेले ही करनी है .. कोई संग चलना चाहे तो स्वागत है नहीं तो मैं व मेरे गुरूजन राम नाम के साथ खुश हैं ! 
न हम किसी के न कोई हमारा 

दख लिया दुनिया का सारा नज़ारा 
हम हैं राम के राम हैं हमारा 

संतों ने बार बार यही है पुकारा

परिवार के व्यर्थ तर्क में मौन 

June 4, 2017


प्रश्न : मेरे पत्नि की तरफ़ का परिवार,किसी पंथ को मानते हैं । वे मेरी श्रद्धा व भावना की क़दर न करते हुए मुझे विभिन्न आध्यात्मिक प्रलोभन देते हैं और मेरे राम व मेरे ईष्ट को नीचा दिखाते हैं । मैं घबराया हुआ हूँ । मुझे तर्क वितर्क के लिए बुलाया है । 
परिवार की औपचारिकताएँ एक तरफ़ और अपने ईष्ठ व गुरूजन से प्रेम एक तरफ़ । प्रेमी को कोई भी नहीं बहका सकता ! क्योंकि प्रेमी अपने प्यारे से प्रेम करता है । 

मन में गुरूजन कहते हैं कि बहुत पक्का विश्वास होना चाहिए ।मन से बहकना नहीं चाहिए । 
अब कोई स्वयं को बेहतर कहता है कहने दीजिए ।किसी के कहने से तो सत्य बदलता नहीं ! परिवार है और हम बहस नहीं करना चाहते तो मौन हो जाएँ । जो कोई दलील देना चाहता है देता जाए , पर हम अपनी श्रद्धा व निष्ठा व प्रेम अपने प्यारे से निभाते जाएँ । 
पर यदि वे बहुत परेशान करते हैं तो प्रार्थना सब से सुगम साधन है । प्रार्थना कीजिए – भगवन मेरे प्रभु ! कृपया मुझे कोई भी प्रलोभन न दिलाएँ ।मुझे तो बस आपका नाम चाहिए । आपके नाम में सदा मस्त रहूं यही चाहिए ! और कुछ नहीं !

कृपया मुझे शक्ति दीजिए कि मैं निडरता से इनका सामना कर सकूँ । मुझे बल दीजिए कि मेरा विश्वास देखकर मुझे मेरे राम से अलग करने की कोई हिम्मत न कर सके । कृपा कीजिए भगवन ! उनको भी शान्ति दीजिए जो मुझे आए दिन परेशान करते रहते हैं । कृपा कीजिए भगवन! आप की मेरे सहायक हैं ! मेरा आपके सिवाय कोई नहीं ।

सब आपका भगवन व सब आपसे 🙏

My wife’s family believes in some sect. They do not respect my feelings for my Gurujan or istha, and keep giving me varied spiritual lures and look down upon my sadhna. I am really tensed. They have asked me to come for arguments. 

Family formalities are One and love for one’s istha and Gurujan other. For a true lover, nobody can lure him as he is in love with his Lord! Gurujans say that in our hearts we need to be very strong. And not dwindle under any pressure. 

If somebody says we are better than you and your faith, let them say! By saying the truth does not change . If we do not want to argue with family, be silent. If one keeps giving arguments let them, but our faith, our dedication and love we must continue with our Lord. 

But if somebody is really troubling then Prayers our the easiest way! Pray – O Lord! Kindly let no lure attract me !i just need your name! I want to be engrossed only in You! Nothing else!

Kindly give me the strength that I may be so fearless in my faith that nobody can dare to approach me to make me separate from my RAM. Kindly give me strength to face these obstructions fearlessly. Kindly bless me my Lord. Give them peace too who keep on bothering me now and then! You are my savior my only One !Please help me ! 

स्वयं को बदलना व दूसरे को अपनाना 

May 20, 2017


स्वयं को बदलना व दूसरे को अपनाना 
वह ऐसा क्यों नहीं करता ! उसका ऐसा व्यवहार क्यों है ? 

आए दिन हम दूसरों को बदलने की सोचते हैं ! पत्नि / पति , बच्चे ! सब मेरे अनुसार चले ! जैसा हम चाहते हैं वैसा करे ! 
पर यदि हम बदल जाएँ ! हम परमेश्वर व गुरूजनों कि भाँति बिना अपेक्षा प्रेम करने लग जाएँ । बिन कारण प्रेम करने लग जाएँ । किसी ने कुछ दिया या न दिया किया या न किया फिर भी प्रेम करने लग जाएँ तो कैसा होगा जीवन !!! बहुत भिन्न !!! 
यह शायद तभी सम्भव है जब हम एक तरफ़ से सुरक्षित हो! कोई है जो मुझे बिन कारण संसार में बहुत ज्यादा प्रेम करता है । किसी को मेरी हर समय चिन्ता रहती है ! 
तब हम संसार में बिन अपेक्षा प्रेम दे सकते हैं । जो जैसा है उसे वैसा अपना सकते हैं । बिन चिढ़े कि यह ऐसा क्यों कर रहा है, यह मेरी क्यों नहीं सुन रहा ! प्रेम बिन कारण प्रवाहित होता जाएगा ! 
एक शिक्षक की कक्षा में बच्चों ने कहा – टीचर जी ! आपके विद्यार्थी देखिए पानी में किताब डुबो गए ! शिक्षक ने किताब उठाई और बोले – जब अपने बच्चों का पता हो वे कैसे हैं तो हम उन्हें वैसे ही अपनाते हैं !! न हैरानी होती है न क्रुद्ध होते हैं ! 
अपने कर्तव्य निभाते हुए दूसरे को स्वीकारना ! जैसा वह है उसे अपनाना और वहाँ से अपने लिए राह प्रशस्त करना ! इस तरह न हम परिस्थिति को दोष देंगे न लोगों को केवल प्रेम करते हुए स्वीकारते जाएंगे !! 
सब आपका व आपसे प्रभु !

FAQs for the week of March 4, 2017

March 3, 2017

साधकों के प्रश्न 

क्या महाराजश्री ने कोई ऐसी जगह बनाई है कि मैं वहाँ जाकर रह सकती हूँ ? मेरे परिवार वाले मुझे रखना नहीं चाहते । मेरे अब सिर्फ राम ही हैं । 
परम पूज्य महाराजश्री किसी भी परिस्थिति से पलायन करने को नहीं कहते । उनके अनुसार हम ऋण चुकाने आए हैं । यह जीवन राम नाम के सहारे ऋण चुकाने हेतु मिला है। माता पिता, सास ससुर, पति, बच्चे… सारे जीवन की लीला ही ऋण चुकाने की है । 
कैसे पता चले कि महाराजश्री की इच्छा क्या है ? जो बात स्वभाव से हो जाए । स्वभाव से सामने आ खड़ी हो और उसमें आपका हस्तक्षेप न हो । जैसे कि कोई बार बार कह दे कि निकल जाओ । तो निकल गए । पर यदि घर में तनाव है, हम परेशान हैं और हम स्वयं निकल जाएँ , यह ठीक नहीं । पहल कभी हमारी न हो । 
एक बार एक अधेड़ उम्र की महिला के वैवाहिक जीवन में उथल पुथल मच गई ! उनके पति ५० से ऊपर की उम्र में किसी छोटी उम्र की महिला से साथ संबंध रखने आरम्भ कर दिए। बहुत परेशान । उनको एक ऐसे ज्ञानी मिले जो यह सब घटना क्रम के कारण बता सकते थे । वे बोले – बिटिया, पिछले जन्म में तू अतिश्य धार्मिक थी । विवाह करना नहीं चाहती थी पर पिता ने विवाह कर दिया । यही पति तेरा तब भी पति था। और तब भी इसने बाहर संबंध रखे । खिन्न होकर तू घर छोड़ आई । अब तुझे फिर यही मिला ऋण चुकाने हेतु ! सो अबकी बार स्वयं पहल न करना । सह लेना । 
इसी तरह एक और महिला एक बाबा जी के पास गई । बोली – बाबा जी मेरा पति शराब पीकर मुझे बहुत भला बुरा कहता है, और पीटता भी है । बाबा जी चुप रहे । और बोले – खाना तो देता है न । वह महिला एक माह बाद फिर गई । बोली – बाबा जी ! कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ा । कुछ करिए । बाबा जी फिर बोले – खाना तो देता है न ! एक माह बाद फिर गई महिला और इस बार खीज कर बोली – बाबा जी कुछ नहीं हो रहा । बताइए न क्या कारण है । बाबा जी बोले – बेटी ! पिछले जन्म में तू उसकी सौतेली माँ थी । तू उसे बिना बात के बहुत पीटती थी । खाने को भी नहीं देती थी । वह खाने को तो दे रहा है न !!! 
सो स्वयं कभी न पहल कीजिए । सदा स्मरण रखिए कि गुरूजन स्वयं परिस्थितियां बना देंगे यदि निकालना होगा । पर यदि परिस्थिति नहीं बनती तो राम नाम को अंगीकार कर लीजिए और इस अमोघ मंत्र से स्वयं को कर्मों से जूझने के लिए शसक्त कीजिए । 
गुरूजन कहते हैं कि राम नाम से , भक्ति से हर घोर से घोर कर्म न्यून होता चला जाता है । 
श्री श्री चरणों में 

पारिवारिक तनाव में राम नाम के संग मौन 

Feb 28, 2017


प्रश्न : मेरे घर पर बहुत तनाव है । उसके ऊपर मेरी बिटिया के इम्तिहान । तनाव के कारण वह पढ भी नहीं पा रही । पति कहते हैं चले जाओ दोनों। कहां जाऊं मैं । क्या करूं ? श्री अमृतवाणी जी का पाठ करती थी ,बंद कर दिया कि आप सब ठीक कीजिए , अब तभी करूँगी । 
पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि परमेश्वर से परिस्थितियों को ठीक करने के लिए नहीं कहना बल्कि स्वयं बदल जाएँ , इसकी प्रार्थना अवश्य करनी है । 
पूज्य महाराजश्री कहते हैं कि इतना राम नाम लें कि कुछ और बोलने की आवश्यकता ही न पड़े । मौन हो जाएँ । जब प्रतिक्रिया नहीं होगी , तो एक तरफ़ा ही रह जाएगा और तनाव जल्दी समाप्त हो जाएगा । बहुत कठिन है पर असम्भव नहीं । 
जब परिस्थितियाँ प्रतिकूल हों तो हमें ज़बरदस्ती नाम जाप बढा देना है ! कम या बंद नहीं करना । जब तक नाम की डोरी पकड़े रखेंगे , तब तक सम्भले रहेंगे । वह छूटनी नहीं चाहिए ।  

जब कोई गलत बोल रहा हो तो मन में लम्बा राााााााओऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽऽम पुकारना है । जब तनाव लगे तो लम्बा रााााााओऽऽऽऽऽऽऽऽऽम पुकारते जाना है जब तक वह अपना अमृत न बक्शें ! 
बेटियों को यही सिखाना है कि खूब मेहनत करनी है । जैसी मर्जी परिस्थिति हो जैसा मर्जी वातावरण हो, पढ़ना है डट कर, अपने पैरों पर किसी भी हालत में खड़े होना है । 

बच्चे यदि नहीं सुनें तो गुरूजन से प्रार्थना कीजिए कि वे समझा दें ! कृपा करें । 
सो जब बच्चों की परीक्षाएँ हैं , और बाकि जन समझ नहीं रहे, तो राम नाम के संग मौन रहना ही तपस्या है । बहुत बड़ी तपस्या है । एक को अकेले ही बोलने दीजिए । 
परिस्थितियाँ बदलें या न बदले यदि हम बदल जाएँ तो बाहर धूप हो या बादल, हमारा कार्य चलता जाता है । 
खूब राम नाम जपना है ताकि बोलने की आवश्यकता ही न पड़े । राााााााााााओऽऽऽऽऽऽऽम 
सर्व श्री श्री चरणों में 

स्वयं का सुधार – आनन्द की कुंजी 

Dec 11, 2016


परम पूज्यश्री महाराजश्री कह रहे हैं कि यदि हम अपने घर को स्वर्ग बनाना चाहते हैं तो हमें स्वयं को ही सुधारने की आवश्यकता है । 

कहीं भी यदि तनाव है, मन अशान्त है तो समझ लेना आवश्यक है कि हमारी सोच में कहीं न कहीं गड़बड़ है । नहीं तो राम नाम , महा मंत्र जो हम जपते हैं वे तो आनन्द का स्त्रोत हैं । यदि वे आनन्दमय हैं तो हम क्यों नहीं । हम तो वही आनन्दमय नाम का उच्चारण कर रहे हैं । हमारी सोच , हमारी विचारधारा ही दोषी है ! 

उदाहरणतया , घर में सासुमां कहती है यह बना आज । हमारे मन को वह भाया नहीं । पर बच्चा वही कह दे बनाने को तो हम कितने भी व्यस्त या अस्वस्थ क्यों न हों ( अधिक्तर महिलाएँ कर दें ) हम बना देंगे । तो हमने क्या किया ? हमने रूप व संबंध के कारण भेद भाव कर दिया । सो अब यदि तनाव उठा तो किसके कारण उठा ? 

हमारी गहन इच्छाएँ , हमारी गुप्त लालसाएँ , जिनका कई बार हमें पता भी नहीं होता वे भी हमारे तनाव का कारण होती हैं । घर में या बाहर यदि हममें गुप्त इच्छा है सदा आगे रहने की अपना नाम हो, प्रशंसा मिले , तो भी हम दुखी रहते हैं । हमारी चले । जो मैं कहूँ चाहे घर में या बाहर , वही मानी जाए, तो तनाव हमारे ही मन में आता है । और यदि हम यहाँ स्वयं को सुधार लें , तो मन हल्का हो जाता है । और हम आनन्दित। 

एक साधक दम्पति में हर दम्पति कि तरह विचार धारा बहुत भिन्न । दोनों साधक । सो जब विचारों में भिन्नता तो खटपट तो हो ही जाती । एक बार साधिका को स्वप्न आया कि उसके पति महाराज बन गए । जब वे उठी तो इस स्वप्न का तात्पर्य ढूँढना चाहा तो चिन्तन कर गुरूदेव की कृपा से समझ आया कि महाराज कह रहे हों कि मैं इसमें हूँ । इससे व्यवहार जैसे मुझसे करते हो वैसे करो ! 

यह बात तो सही है । गुरूजन तो राम में समाए हुए हैं । जिस हृदय में राम वहाँ गुरूजन । सो अपनी सोच हम बदल सकते हैं । दूसरे को आदर सम्मान व प्यार हम जैसे गुरूजनों को देते हैं वैसे ही उनके साथ व्यवहार कर सकते  हैं । पर यहाँ एक बात स्पष्ट रखनी आवश्यक है कि कई बार भिन्नता विचारों में इतनी होती है, इसका मतलब यह नहीं कि हमें वैसा बन जाना है जैसा दूसरा चाह रहा है ! नहीं ! हमें तो अपने अहंकार, लालसाओं व इच्छाओं पर नज़र रखनी है । कि कहीं हममें उत्कृष्ट भाव तो नहीं आ गया ! कहीं मेरी ही चले या मैं ही ठीक हूँ , ऐसा तो नहीं मैं कर रही या कर रहा ! 

यदि हमें चिन्ता की आदत है, भय में ग्रस्त रहते हैं , संशय के कारण मन शान्त नहीं रहता तो प्रेम व सम्पूर्ण शरणागति ही इसकी कुंजी है । 

मन का कोई कोना खाली न रह जाए प्रभु जिससे कोई मिथ्या विचार घर कर सके । आपका नाम जो रस व अमृतधारा प्रदान करता है उसमें यह मन सदा भीगता रहे । यह नज़र स्वसुधार पर ही सदा सदा लगी रहे । दूसरे के गुण आपही की छवि है, वहाँ सदा सदा नतमस्तक हो जाएँ । 

श्री श्री चरणों में 

आध्यात्म में कुसंग 

Nov 2, 2016


परम पूज्य श्री डॉ विश्वामित्र जी महाराजश्री ने कहा कि जो आध्यात्मिक व्यक्ति नहीं है उसका संग कुसंग ! 

क्या तात्पर्य है गुरूदेव का यहाँ ? हम अपनी पिपासा ” आध्यात्मिक ” शब्द से आरम्भ करते है । मोटे शब्दों में जो राम से प्रेरित होकर कार्य करे वह आध्यात्मिक। जो अहंकार व स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करे वह कुसंग ! 

तो क्या राम नाम लेने वाला अपने आप आध्यात्मिक बन जाता है ? नहीं ! 

पूज्य गुरूदेव कहते हैं – आप बहुत अच्छे डॉक्टर हैं। बड़ा अच्छा व्यवहार है आपका बाहर पर घर आते ही, पत्नी व बच्चे को देखकर मुँह बना लेते हैं, ठीक व्यवहार नहीं करते!मानो राम नाम भीतर बसा ही नहीं ! आप पत्नी हैं। मंदिर में पाठ करके आई हैं, बहू पर , बच्चों पर चिल्लाना आरम्भ कर दिया ! मानो , राम नाम से जीवन अभी प्रेरित ही नहीं हुआ ! 

राम नाम लेने वाला जब तक राम के गुण अपने भीतर नहीं उतारता, तब तक वह आध्यात्मिक नहीं । आप राम नाम नहीं लेते, पर दूसरों को सम्मान देना, संवेदनशील रहना , सेवा करना, आपको आध्यात्मिक बना देता है । पर साधक का label लगा कर, अभिमान से प्रेरित होकर, स्वार्थ से प्रेरित होकर कार्य करना हमें कुसंगी बना देता है ! 

पूज्य गुरूदेव कहते हैं कि चाहे जितनी मर्जी अच्छा प्रवक्ता हो, ग्रंथ पाठ करने वाला हो, पर यदि उसका संग अभिमानी, स्वार्थी , अहंकारी व्यक्ति से हो जाए, तो उसका कुसंग भीतर आकर रहेगा! जो साधक, दूसरों के घर तोड़े, पति पत्नी में दूरियाँ करे, ईर्ष्या से प्रेरित होकर कर्म करे, अभिमान व प्रशंसा की चाह में कार्य करे, वह सब कुसंग है !! जो शान्त रहे, दूरियाँ मिटाए , प्रेम बढ़ाए, करुणा उपजे, दूसरों की पीड़ा जाने व समझे, विनीत रहे, राम को आगे रखे, वह राम से प्रेरित साधक है ! 

संग बहुत बहुत सोच विचार के चयन करना होता है! गलत संगति, बहुत बहुत गड़बड़ कर देती है। और सही संगति जीवन बदल देता है!! 

गुरूदेव कहते हैं राम नाम में रंगे हुए का संग, प्रभु प्रेम में रंगे हुए का संग, जागृत चैतन्य आत्मा का संग हमें उन जैसा ही बना सकता है ! 

पर उन परिस्थितियों का क्या जहाँ से बचा नहीं जा सकता ? जहाँ ऐसे संबंध जुड़ जाते हैं कि निकलना असम्भव है ? वहाँ भीतर डुबकी मारनी व गुरूजनों की शिक्षाएँ सबसे बड़ी संगति है! उनके अनुसार चलने की शक्ति राम नाम व गुरूजन स्वयं देते हैं । कमल बना देते हैं! बाहर के कुसंग का असर भीतर पड़ने नहीं देते! पर इसके लिए उनकी शिक्षाओं का अक्षारक्षर पालन करना आवश्यक! 

श्री श्री चरणों में